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Showing posts from February, 2021

गुरु गोरक्षनाथ जन्मोत्सव B105

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         🚩🙏🌹💖गुरु गोरखनाथ जन्मोत्सव💖🌹🙏🚩                           💓25 फरवरी 2021💓 एक मानव-उपदेशक से भी ज्यादा श्री गोरक्षनाथ जी को काल के साधारण नियमों से परे एक ऐसे अवतार के रूप में देखा गया जो विभिन्न कालों में धरती के विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए। सतयुग में वह लाहौर पार पंजाब के पेशावर में रहे, त्रेतायुग में गोरखपुर में निवास किया, द्वापरयुग में द्वारिका के पार भुज में और कलियुग में पुनः गोरखपुर के पश्चिमी काठियावाड़ के गोरखमढ़ी(गोरखमंडी) में तीन महीने तक यात्रा की। एक मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को श्री गोरक्षनाथ जी का गुरू कहा जाता है। कबीर गोरक्षनाथ की गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी  में उन्होनें अपने आपको मत्स्येंद्रनाथ से पूर्ववर्ती योगी थे, किन्तु अब उन्हें और शिव को एक ही माना जाता है और इस नाम का प्रयोग भगवान शिव अर्थात् सर्वश्रेष्ठ योगी के संप्रदाय को उद्गम के संधान की कोशिश के अंतर्गत किया जाता है। गोरक्षनाथ के करीबी माने जाने वाले मत्स्येंद्रनाथ में मनुष्यों की दिलचस्पी ज्या...

आत्मा की आवाज B104

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 🌼🌿 "आत्मा में रमण करें , आत्म बोधि  बनें "            श्वास - प्रश्वास पर ध्यान केंद्रित करें  ।। 🌿🌼 🚩अघोरेश्वर शरणम गच्छामी , सवात्माराम शरणम गच्छामी! 🌼🌿 औघड़ वाणी ------------------ ! 🔱🚩 हमारी जो प्रार्थना है उसमें कहा जाता है कि मेरुदण्ड सीधा करो, सिर को ऊँचा करो, नासिका को सामने रखो, चक्षु को भृकुटी के मध्य मे  रखो, सीना को ताने रहो और सिद्धासन मे बैठे रहो, अच्छे से सांस लो अच्छे से सांस छोड़ो और मन में किसी तरह का कोई विचार तब तक न आने दो जब तक कि अपना आत्मा स्वच्छ और निर्मल न हो जाय। अपनी संकल्प सिद्धि अच्छी न हो जाय। 🚩 🌼 मगर हम नहीं कर पाते हैं। जैसे बैठेंगे, अकुलाहट शुरू हो जायेगी। बुरी-बुरी बातें याद होंगी। बुरी नहीं तो, न बुरी न अच्छी बल्कि कुछ विध्वंसक बातें याद आने लगेगी। कुछ लोभ की श्रेणियाँ , तथा कुछ अजीब-अजीब सी आकृतियाँ उत्पन्न होने लगेंगी तथा कुछ अजीब-अजीब सी तरंगे उत्पन्न होने लगेंगी, जिन तरंगों मे हम अपने आपको डुबोये-डुबोये रहेंगे।🌼                      ...

कर्म प्रधान B103

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                🚩🙏🐚🐚🌹🌹🌹🐚🐚🙏🚩 कर्म प्रधान विश्व करि राखा,जो जस करई सो तस फल चाखा ।। 🌷  औघड़ वाणी ---------------------- ! 🔱🚩यह संसार एक कर्म क्षेत्र है | जब तक हम लोग कुछ उठ के कर्म नहीं करेंगे ,श्रम नहीं करेंगे तब तक हमें कुछ भी हासिल नहीं होना है | जैसे की आज कल लोग कर रहे हैं ,सभी लोग उसके अधिकारी हैं ,पहले ऐसा नहीं हुआ करता था ,पहले कुछ ही लोग उसके अधिकारी हुआ करते थे | आज वह अधिकार सबको प्राप्त है , 🌷जो कर्म करेगा , श्रम करेगा , उसको ही वह अधिकार प्राप्त होगा |🌷 चाहे वह ईश्वर ही क्यों न हो , उसमे भी हमें वह करना पड़ता है | उसकी प्राप्ति के पहले वह सब करना पड़ता है | वह सब क्रिया-कलाप करने पड़ते हैं जो हमारे लिए आवश्यक हैं | फिर हमारा उत्तरदायित्व होता है कि इस पर ध्यान दें की हमारा आचरण कैसा है , व्यवहार कैसा है , हमारी वाणी कैसी है, हमारा जो मन बहुत कुटिल है वह सुधरा की नहीं। अपने मन्त्रों द्वारा या जैसे भी हम लोग अपने आप के शुद्धिकरण का प्रयत्न कर रहे हैं - तो वह मन्त्र इसलिए होता है की हमारी आन्तरिक शुद्धि हो |  🌺हमलोग...

औघड़दानी भोले भण्डारी B102

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 🙏🌹 प्रत्येक मनुष्य को कर्म फल भोगना ही पड़ता है,  मृत्यु - उपरान्त भी  -   - - !🌹🙏   🌹प्रस्तुत है, परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु के मुखारविंद से 🌹         🔱🚩 शिव को संहार का देवता कहा गया है ।  अर्थात जब  🌼मनुष्य अपनी सभी मर्यादाओं को तोड़ने लगता है तो शिव उसका संहार कर देते हैं । 🌼  जिन्हें अपने पाप कर्मों का फल भोगना बचा रहता है वे ही प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं । चूंकि शिव संहार के देवता हैं , इसलिए इनको दण्ड भी वही देते हैं । इसलिए शिव को भूत - प्रेतों का देवता भी कहा जाता है । दरअसल यह जो भूत - प्रेत है वह कुछ और नहीं बल्कि सूक्ष्म शरीर का प्रतीक है । भगवान शिव का यह संदेश है कि हर तरह के जीव जिससे सब घृणा करते हैं या भय करते हैं , वे भी शिव के समीप पहुँच सकते हैं , केवल शर्त है कि वे अपना सर्वस्व शिव को समर्पित कर दें ।  🌹औघड़दानी भोले भण्डारी के श्रीचरणों में कोटिश नमन🌹 🌺जय श्री कृष्ण🌺

बारह ज्योतिर्लिंग B101

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                 🐚 🙏🚩💖🌹🌹🌹💖🚩🙏🐚               🚩 जानिए कहां स्थित हैं प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग🚩 1- सोमनाथ सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। शिवपुराण के अनुसार जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है। हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।  2- मल्लिकार्जुन यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। एक पौराणिक कथा क...

शंख का महत्व B100

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     🌹हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा :🌹          🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚 शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है।धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शंख बजाने से भूत-प्रेत, अज्ञान, रोग, दुराचार,पाप, दुषित विचार और गरीबी का नाश होता है। शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया गया था। आधुनिक विज्ञान के अनुसार शंख बजाने से हमारे फेफड़ों का व्यायाम होता है, श्वास संबंधी रोगों से लडने की शक्ति मिलती है। पूजा के समय शंख में भरकर रखे गए जल को सभी पर छिड़का जाता है जिससे शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है। साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हमारी हड्डियों, दांतों के लिए बहुत लाभदायक है। शंख में कैल्शियम, फास्फोरस और गंधक के गुण होते हैं जो उसमें रखे जल में आ जाते हैं|… 🌹🐚जय श्री कृष्ण🐚🌹

ईश्वर का कार्य B99

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  ईश्वर का कार्य ................ एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते देखा.... अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दे दी।  जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर लौट चला। किन्तु उसका दुर्भाग्य उसके साथ चल रहा था, राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली। ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा। ब्राहमण ने सारा विवरण अर्जुन को बता दिया, ब्राहमण की व्यथा सुनकर अर्जुन को फिर से उस पर दया आ गयी अर्जुन ने विचार किया और इस बार उन्होंने ब्राहमण को मूल्यवान एक माणिक दिया। ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा उसके घर में एक पुराण घड़ा था जो बहुत समय से प्रयोग नहीं किया गया था,ब्राह्मण ने चोरी होने के भय से माणिक उस घड़े में छुपा दिया।  किन्तु उसका दुर्भाग्य, दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी... इस बीच ब्राहमण की स्त्री नदी में जल लेने च...

उंगलियों से उपचार B98

 *हाथ की पांच उंगलिया* हमारे हाथ की पांचो उंगलिया शरीर के अलग अलग अंगों से जुडी होती है | इसका मतलब आप को दर्द नाशक दवाइयां खाने की बजाए इस आसान और प्रभावशाली  तरीके का इस्तेमाल करना करना चाहिए | आज इस लेख के माध्यम  से हम आपको बतायेगे के शरीर के किसी हिस्से का दर्द सिर्फ हाथ की उंगली को रगड़ने से कैसे दूर होता है | हमारे हाथ की अलग अलग उंगलिया अलग अलग बिमारिओ और भावनाओं से जुडी होती है | शायद आप को पता न हो, हमारे हाथ की उंगलिया चिंता, डर और चिड़चिड़ापन दूर करने की क्षमता रखती है | उंगलियों पर धीरे से दबाव डालने से शरीर के कई अंगो पर प्रभाव पड़ेगा | *1. अंगूठा* *– The Thumb* हाथ का अंगूठा हमारे फेफड़ो से जुड़ा होता है | अगर आप की दिल की धड़कन तेज है तो हलके हाथो से अंगूठे पर मसाज करे और हल्का सा खिचे | इससे आप को आराम मिलेगा | *2. तर्जनी* *– The Index Finger* ये उंगली आंतों  gastro intestinal tract से जुडी होती है | अगर आप के पेट में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा रगड़े , दर्द गयब हो जायेगा। *3. बीच की उंगली* *– The Middle Finger* ये उंगली परिसंचरण तंत्र तथा circulation sy...

गुरु व ईश्वर B97

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  ईंश्वर अनजाने ही बहुत सा काम कराता है । जो अपने सुविधा तथा कार्यक्रम के अनुसार होता है उसे कहते हैं कि हमने किया जो अनायास होता है उसे ईंश्वर की दुहाई देते हैं , परन्तु हर काम उसी की इच्छा से होता है ।  ईंश्वर जब तक प्रेरणा नहीं देता , तब तक सुबुध्दि नहीं होती अवसर नहीं पहचान सकता कोई । ईश्वर की कृपा जिस पर होती है वही सामाजिक कार्य में सफलता प्राप्त करता है । अघोरेश्वर बाबा कीनाराम के पास उनके जीवन पर्यन्त कुबड़ी, कमण्डल और कुश की चटाई के अतिरिक्त कुछ नहीं था। उन्हें इतना अपरिमित दूसरों को देते देखकर श्री (लक्ष्मी) भी और श्रद्धा (सरस्वती) भी लजा जाती थी। अपनी कुबड़ी से उन्होंने अनगिनत निष्प्राण जीवों को प्राणदान दिया। अपने कमण्डल के जल से उन्होंने अकालग्रस्त क्षेत्रों के असंख्य निरीह लोगों को जल और अन्न प्रदान किया। उनकी फटी हुई कुश की चटाई से अनेक सम्राटों के राजप्रासादों और उनमें सुसज्जित पलंगों और सुशोभित बिछावन को लज्जित किया है। उनकी कमर की लंगोटी ने अगणित अबलाओं को वस्त्र देकर उनकी लज्जा ढंकी है। द्वार-द्वार के श्वान होने से श्रेयस्कर है- इन महापुरुषों के चरणों में पड़े ...

कर्म भोग B96

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🌅प्रेरक प्रसंग🌅 -  "एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों?" एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया- मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था, मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों? इसका क्या कारण है? राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये। अचानक एक वृद्ध खड़े हुये बोलें - "महाराज! आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे, उनसे आपको उत्तर मिल सकता है।" राजा ने घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला) खाने में व्यस्त हैं। राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा- “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं, वे दे सकते हैं।” राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा। राजा हक्का बक्का रह गया, दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थें। राजा को महात्मा न...

आचरण B95

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तुमने सुना है, देखा है, काल के डर से अपनी सुरक्षा की अभिलाषा से सेना इकट्ठी की गयी। धनराशि का संग्रह किया गया। किलों का निर्माण किया गया। अपने विद्रोहियों को नष्ट किया गया। फिर भी, काल के समक्ष किसी की नहीं चली। न मालूम, कितना सूक्ष्मातिसूक्ष्म मार्ग है उसका। उस मार्ग से पकड़कर उसने प्राणियों को अपने गाल में डाल दिया है, डाल देता है, चबा गया है। पचा गया है। आने वाले समय में भी चबा जायेगा, पचा जायेगा। ऐसे प्राणियों के प्रियजनों की रुलाई, कातरता, आतुरता की वह रंचमात्र की चिन्ता नहीं करता। उसकी कितनी भी दुहाई देकर तुम बचना चाहोगे, कदापि नहीं बच सकते। मेरी समझ से बचने का एकमात्र उपाय है-- 'अपने आप पर, अपने व्यवहार और आचरण पर, अपने आदर्श पर ध्यान केन्द्रित करना। अपने आप को नियंत्रित करना।' यह परमावश्यक है। इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है। तू सिर्फ अपने से डर और किसी से मत डर। यह महानता की ओर पहुँचायेगा। अरे बाबा! इसी को साधुताई कहते हैं, इसी को अपनाने वालों की महापराक्रमी, इन्द्रियजित, आत्मा के समान सम्मानजनक कहते हैं। जो अपनी आत्मा को पददलित कर देता है, वह अनेक प्रकार के कुकृत्...

चरैवेति B94

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                           🙏🌺🌺🌺🌺🌺🙏 🌼🌿 चरैवेति - चरैवेति - चरैवेति ----- चलते रहें , बढ़ते रहें     कर्तव्य पथ पर क्रियाशील रहें ! क्रियाशीलता ही जीवन है ! 🌹 न पृथ्वी रुक रही है , न चाँद रुक रहा है न  सूरज रुक रहा      हैं , तो हम क्यों रुकें ! हम क्यों विमुख हों कर्तव्य पथ से ! 🌷🌿  निराशा को जन्म न दें अघोरेश्वर द्वारा स्थापित आश्रमों में, महापुरुष के सान्निध्य में, शक्तिपीठ में निवास करने वालों को अपने कर्तव्य, विचारधारा, मनोदशा, आचरण और व्यवहार पर अवश्य ध्यान देना चाहिए🌷 अघोरेश्वर द्वारा बताई गयी बातें हमारे साहित्यों में लिपिबद्ध हैं। अपने जीवन में उसका लाभ उठायें। हमारी यह संस्था मानव सेवा के लिए है। जो भी दैहिक, दैविक, भौतिक विपत्तियाँ आती हैं उसका हम धैर्य के साथ सामना करें। लेकिन मोह, लोभ, ईर्ष्या व घृणावश मनुष्य की कमजोरी सामने आकर उसके चित्त को दबोच लेती है। 🌺जो लोग ध्यान-धारणा या अपने साहित्यों का अध्ययन करते हैं या कर्त्तव्य में निष्ठा, श्रद्धा और विश्वास के स...

बांस की लकड़ी का उपयोग B93

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     🌹बांस_की_लकड़ी को क्यों नहीं जलाया जाता है ?🌹        इसके पीछे धार्मिक कारण है या वैज्ञानिक कारण ? हम अक्सर #शुभ (जैसे हवन अथवा पूजा-पाठ आदि) और #अशुभ (दाह संस्कारादि) कामों के लिए विभिन्न प्रकार की लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है, लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी जलती देखी है ? नहीं ना? भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, 'हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहां तक की हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है, लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं।'  आर्य (हिन्दू) धर्मानुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे। क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है? बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है । हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जि...

असत्य न बोल B92

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 हमारा एक शिक्षित, विद्वान शिष्य है। उसने 22 वर्ष की उम्र में यह संकल्प किया वह कभी झूठ नहीं बोलेगा। अपनी माता के जीवित रहने के कारण उसने घर-गृह का परित्याग नहीं किया था। उनकी वृद्धावस्था के कारण वह उनकी सेवा-सुश्रूसा में लगा हुआ था। उसने निश्चय किया कि अपनी माता के स्वर्गवास के बाद वह घर छोड़ देगा। इसिलिए सदाचरण करते हुए वह अपने गृह में रहता था। एक दिन उसके ग्राम की एक अशिक्षित स्त्री उसके पास आयी और एक पोस्टकार्ड देते हुए उस पर पत्र लिख देने का अनुरोध किया। महिला ने बतलाया कि उसका पुत्र बहुत दिनों से कलकत्ता में नौकरी कर रहा था और न घर ही आ रहा था और न घर खर्च ही भेजता था। महिला ने कहा लिख दो--'तुम्हारी माँ की साँस चल रही है। वह मरणासन्न है। अब उसका स्वर्गवास हो जायेगा। जल्दी चले आओ।' मेरे शिष्य ने उस महिला को ये सब बातें नहीं लिखवाने का परामर्श दिया। उसने कहा कि वह महिला स्वस्थ थी, निरोग घूम रही थी और यदि उसने उस महिला के कथनानुसार ही लिख दिया और कुछ हो गया तो उसे कलंक लग जायेगा। उस महिला ने मेरे उस शिष्य को अभद्र शब्दों में सम्बोधित करते हुए, डाँटकर पत्र लिखने पर बल देते हुए...

मीठे बोल B91

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                        🚩🙏🌹🌹🌹🙏🚩 प्रिय वचन ( मिठे बोल )  ही तो साधुता है। यही महापुरुषों, सन्तों, सज्जनों, औघड़ अघोरेश्वरों की महान तपश्चर्या है, रे! यह बिल्कुल ईश्वर का सानिद्धय प्राप्त करने सरीखा होता है, कपालेश्वर के सानिद्धय के समान होता है।   जब तुम किसी को प्रिय वचन बोलते हो तो जितना आह्लाद उसे होता है उससे सौ गुना आह्लाद तुम्हें होता है। जब तुम कठोर वचन का सहारा लेते हो तो जीभ ऐंठनी पड़ती है। मुँह बनाना पड़ता है। हृदय दुष्कर्म में लगे सरीखा हो जाता है। दूसरों को तुम्हारी कटुवाणी वाक-बाण की तरह, तीर की तरह, छेदन करने सरीखे लगती है। यह अशोभनीय, त्याज्य कृत्य है। यह अहित का जन्मदाता होता है। यह हितकारी नहीं है। सुखकारी नहीं है, शान्तिदायक नहीं है। यह संबंधों में कड़वाहट लाता है । प्रिय वचन ( मीठे बोल ) को जीवन में लायें ।     ।।प, पू, अघोरेश्वर।।      🌹जयश्री कृष्ण🌹

पुण्य लाभ B90

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  जो किसी को वस्त्र देता है, वह उस व्यक्ति को सिर्फ वस्त्र ही नहीं देता है, उसकी लज्जा ढंकने और उसे ठंडक शीत से सुरक्षा देने में सहायक होता है और समाज में उसे प्रतिष्ठा सम्मान दिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है। वस्त्र दान से कतिपय अन्य उद्देश्य भी सिद्ध होते हैं। उसी प्रकार से अन्न दान से उदर पूर्ति तो होती ही है, साथ ही अन्न खाने वाले को बल पौरुष देता है। कर्म करने की प्रेरणा देता है। पौरुष पाकर कर्तव्य पालन करने के लिए उत्साहित भी करता है। उसी तरह कोई किसी को जल देकर, सिर्फ जल ही नहीं देता शीतलता भी प्रदान करता है। साथ ही शीतल करता है। इन्द्रियों को विपरित दिशा में जाने से रोकता है। इसके अतिरिक्त, जल तितिक्षा, जो भीतर की प्यास है, को भी शान्त करता है, शरीर के ताप को शीतल करता है। इन्द्रियों को विपरित दिशा में जाने से रोकता है। इसके अतिरिक्त, जल पीने वाले को महान सुख पहुँचाता है जिसे पाकर वह व्यक्ति अपने आप में खिल उठता है। तृप्त हो जाता है। जो निष्काम  भावना से किसी रोगी की सुश्रूसा करता है, समय से उसे पथ्य देता है, समय से उसे औषधि देता है, वह हम अघोरेश्वरों के पूजन जैसा कार्य...

निश्चल मन B89

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       🕉️🌷 छल कभी न गुरु से न अपने - आप से ,🌷🕉️       🌹- व्यवहार को अपने जीवन में उतारना चाहिए 🌹 अपने जीवन की घटनाओं के साथ आप परिचित होते हैं ,  जो प्रायः हर आदमी के जीवन मे घटती रहती है । ऐसी घटना जिससे व्यक्ति की आत्मा पददलित होती है , उससे वह व्यक्ति जीते जी मृतक तुल्य हो जाता है । उसे पूजा - पाठ आदि की औषधि पचती ही नहीं । उसे अपने जीवन से ही अरुचि हो जाती है ।      जिसमें आत्मा है , उसे गुरु रूपी वैद्य का केवल पथ्य ही लाभ कर देता है , औषधि की आवश्यकता ही नहीं पड़ती । औषधि का भण्डार पड़ा ही रह जाता है । जो कुपथ पर है वह रोग रहित हो ही नहीं सकता । उसका रोग भयंकर ही होता रहता है । 🌺 जो आत्मविश्वासघाती है 🌺, उस मनुष्य से कामना करें कि सफ़लयोनि प्राप्त करेगा , तो व्यर्थ है । क्योंकि वह मनुष्य जीवन जिसे देवयोनि कहा जाता है --- इसमें यदि उसकी आत्मा मर चुकी है तो उससे किसी प्रकार की आशा रखना व्यर्थ है ।    यदि किसी समय का पुण्य का संयोग हुआ या किसी महात्मा के चित्त में आ जाय कि अपनी कृपा का जल छिड़क दे तो उस व्यक्ति ...

गुरु तत्व B88

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 गुरु तत्व जिसमे विद्यमान है,उसमे गुरुत्वाकर्षण शक्ति विद्यमान है,जो आपके भीतर के अहंकार,अभिमान को आकर्षित कर खींच लेता है।आपमें स्वाभिमान को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के मैं भाव को गुरु समाप्त कर देता है।ऐसे सद्गुरु पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम को नमन है। गुरु जननी की तरह होता है,जो अपनी सभी संतानो से समान भाव से प्रेम करने वाला होता है।गुरु पूर्ण तभी होता है,जब वह माँ का प्रतिरूप हो जाता है।माँ के समान गुरु अर्थात माँ गुरु सरकार को नमन। गुरु तत्व दूसरे के भीतर विद्यमान गुरु तत्व का रहस्योद्घाटन कर देता है।गुरु, गुरु बनाता है,इस सत्य को प्रकाशित करने वाले अघोर पथ प्रदर्शक महाकापालिक अवधूत भगवान राम जी को नमन। "कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि,कुमाता न भवति" को अपने आचार, विचार एवम व्यवहार से चरितार्थ करने वाले पूर्ण माँ रूप माँ गुरु सरकार को नमन। गुरु तत्व आपसे सिर्फ श्रद्धा की दक्षिणा मांगता है,शेष भौतिक वस्तुएं, व्यवहार और विचारों को सौ गुना आपको आशिर्वाद स्वरूप लौटा देता है।श्रद्धा सहेली के साथ दत्त व शिव स्वरूप माँ गुरु सरकार को नमन, वंदन। एक अखंड किनाराम,माँ गुरु अघोरेश्वर भगवान राम। अ...

श्वेत बकुला B87

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                           🙏🚩🌹🌹🌹🚩🙏 एक कथा का अल्पांश मुझे स्मरण हो रहा है।  बकुले श्वेत रंग के होते हैं। वे आज के श्वेत वस्त्रधारी कहे जाने वालों के द्योतक हैं। यह कहा जाता है कि जिस वृक्ष पर जिस वृक्ष की डाल पर बकुले बैठने लगते हैं। वह वृक्ष, वह डाल सदैव के लिए दूषित हो जाती है। मलिनता से भर जाती है, सड़ जाती है, टूट कर गिर जाती है। ये बकुले नदी, नालाओं के किनारे बहुत ध्यान से बैठकर साधुओं का रुप बनाकर जल प्राणियों की हत्या करते हैं। आप देख ही रहे हो, इन श्वेत पर वाले बकुलों का आगमन अंचल से लेकर जिला तक, जिला से लेकर प्रान्त तक, प्रान्त से लेकर देश तक। नदी-नालों के किनारे यानि अंचलों एवं जिलों में प्रसन्नचित्त, खेलने-कूदने एवं हंसने वाले उदार चरित्र वाले आगे भी उनके शिकार होते हैं। प्रान्त से लेकर देश तक उनके शिकार होते हैं, हो रहे हैं।" जिस वृक्ष पर जिस वृक्ष की डाल पर, इनका बाहुल्य होता है, वह समूल नष्ट हो जाता है। "    🌹।।प, पू, अघोरेश्वर।। 🌹    ।।🌹जय श्री कृष्ण🌹।।

साधु और शैतान B86

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                                जय श्री बाबा कीनाराम                🚩🌹"सत्य घटना पर आधारित"🌹🚩   एक दिन एक युवक मेरे पास नौकरी की याचना के साथ आया और निवेदन किया कि बाबा मैं पढ़-लिख कर कई वर्षो से बेकार बैठा हूँ, कोई नौकरी नहीं मिल रही। चपरासी की भी नौकरी मिल जाती तो "हिल्ले रोजी, बहाने मौत" अपना गुजारा कर लेता। मैंने अन्यमनस्क भाव से कहा कि किसी बड़े व्यक्ति से मिले तो वह उसकी मदद करेगा।    वह युवक प्रणाम कर राज-दरबार कि दिशा में चला गया। उसने राज दरबार में बैठे वरिष्ठ लोगो पर दृष्टि डाली तो कोई उसे बाघ, कोई लोमड़ी, कोई गदहा, कोई बिल्ली, कोई भालू की तरह दिखने लगा। मेरे पास से जाने के बाद उसे कोई मनुष्य दिखाई ही नहीं दे रहा था। वह भागते-भागते मेरे पास आया और सारा बात बता कर बोला कि बाबा ऐसा कैसे हो गया, मुझे दृष्टि भ्रम कैसे हो रहा है।   मैंने पास से एक लकड़ी तोड़कर उसके कान पर रख दी और कहा, जाओ देखो इस बार कोई मनुष्य दिखाई देगा तो नौकरी की प्रार...

अघोरेश्वर वंदना B85

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                        🌼अघोरेश्वर वंदना🌼 ॐ तत्सत •••••• श्री अघोरेश्वर तूँ, पुरूषोत्तम गुरू तूँ  शुद्ध-बुद्ध तूँ, पवन रूप तूँ, क्षिति, जल पावक तूँ। रूद्र-विष्णु तूँ, राम-कृष्ण तूँ, माँ सर्वेश्वरी तूँ। ॐ तत्सत....... कालूराम तूँ, कीनाराम तूँ, राज राजेश्वर गुरू तूँ । आत्मानन्द तूँ, विश्व रूप तूँ, ब्रह्म रूप गुरू तूँ ।  ॐ तत्सत.....  अद्वितीय तूँ, अकाल-निर्भय, सत् चित आनन्द तूँ। समदर्शी तूँ, समवर्ती तूँ, प्रियदर्शी गुरू तूँ।  ॐ तत्सत......🙏🏻🌼

जन्मदिवस स्वामी विवेकानंद B84

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    🚩स्वामी जी को जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं🚩                          🙏🚩🌹🚩🌹🚩🙏                             🚩०४-०२-२०२१🚩 श्रीरामकृष्ण देव कहा करते थे -  🚩 " त्याग , विश्वास , तथा तेज, ; धर्मलाभ का परिचायक है- नरेंद्र ( स्वामी विवेकानंद देव ) " ।- श्री रामकृष्ण परमहंस🚩 🚩 " अब भावसमाधि को लेकर देखों  नरेंद्र को ( स्वामी विवेकानंद को ) तो प्रायः इस प्रकार के दर्शनादि नहीं होते ;किन्तु देख न - उसका त्याग , विश्वास , निष्ठा , तथा मानसिक तेज कितना अपूर्व है । "- श्री रामकृष्ण परमहंस🚩 159th Birthday Anniversary of Swami Vivekanand dev 🙏🚩🌺🚩🙏 Faith in themselves was in the he arts of our ancestors , this faith in themselves was the motive power that pushed them forward and forward in the march of civilisation ; and if there has been degeneration , if there has been defect , mark my words , you will find that degradation ...

गुरु व भक्त B83

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" भक्त और गुरु के बीच प्रेम और विश्वास का सम्बंध होता है "                               🚩औघड़ वाणी 🚩 🔱🚩 संत - महात्माओं के किसी भी कार्य से समाज को कोई क्षति नहीं होती । साधु - संत तो सिर्फ मार्ग दिखाते हैं , उस पर चलना न चलना तो भक्तों पर निर्भर करता है । एक व्यक्ति के लिए कौन सा कार्य उचित है और कौन सा कार्य अनुचित है इस बात का ज्ञान मनुष्य को होता है ।  जो कार्य हमारे लिए , हमारे परिवार के लिए एवं हमारे देश के लिए उचित है उसे अवश्य करना चाहिये और जो कार्य हमारे लिए , हमारे परिवार के लिए एवं हमारे देश के लिए अनुचित है उसे कदापि नहीं करना चाहिए । चाहे तो इस कार्य को करने का आदेश आपके गुरु ही क्यों न दें । जिस कार्य को करने के लिए आपकी अन्तरात्मा रोके , ऐसे कार्य को न करना गुरु आदेश की अवहेलना न माना जायेगा । एक बार एक महात्मा ने भगवान बुद्ध के एक शिष्य से पूछा कि आप तो भगवान बुद्ध के सच्चे शिष्य हैं ,🌷 अगर वह आपको अपने देश पर आक्रमण करने की बात करें तो आप क्या करेंगे ? 🌷 इस पर वह शिष्य बोला कि उन...

पुरुषार्थ B82

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 सुधर्मा ! प्रयत्न के बगैर पुरुषार्थ रूपी दिव्य-गुण नहीं प्राप्त होता है। प्रयत्न करने वाला मनुष्य अपने को अन्धकार में नहीं रखता है, प्रकाश की तरफ ले जाता है। चाहे जैसी परिस्थिती भी उपस्थित हो जाय, शरीर भी सुखाना पड़े तो सुखाता है। अपने को लोलुपता से छुड़ाना पड़े तो लोलुपता से छुड़ाता है। मन को मारता है तो तन को वश में करता है। सुधर्मा, वही पुरुष पुरुषार्थी कहा जाता है। पुरुषार्थ ही मनुष्य का जीवन है, मोक्ष का मार्ग है, अर्थ का मार्ग है, धर्म का मार्ग है। सुधर्मा ! जिसका चित्त विषय-अनुरक्त है उस प्राणी का जीवन नरक में पड़े हुए के सरीखा है। वह बिना पगहा नाथ के बैल  के सरीखा है कहीं उसको शरण नहीं है। न अपने पास शरण है, न किसी अन्य के पास शरण है। इस खेत से उस खेत, इस बस्ती से उस बस्ती मारा-मारा फिरता है। उसका न कोई मालिक है न मउआर है। चाहे जो कोई मारे चाहे जो कोई उसे दुत्कारे, चाहे जो कोई उसे अपशब्द कहे, कोई उसे पूछने वाला नहीं है। सुधर्मा! इस तरह का जीवन जो साधु-औघड़ जीता है, वह पुरुषार्थ हीनता के कारण मारा-मारा घूमता है। सुधर्मा ! ऐसा ही मैं देख रहा हूं। पुरुषार्थ, संयोजिनी- काया को...

मंत्र शक्ति B81

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.                        🙏🌹🌹🌹🌹🌹🙏  🔱  मंत्रो का असाध्य लोगो से साध्य नहीं हो पाता,जो वीर्यवान नहीं हैं, बलवान नहीं है, श्रद्धा-विश्वाश विहीन है, उद्योगी नहीं हैं, उन्हें मंत्र तथा मंत्र का देवता बहुत काल बाद हस्तगत होता है | अघोरेश्वर के यानि मेरे उपदेशों को, विचारों को अंगीकार कर यदि वर्ष भर भी अभ्यास करे , तो जो पंद्रह साल में होने वाला है , वह पंद्रह दिन में ही होगा | जो संसार सागर में डूब रहा हो, वह अघोरेश्वर को याद करे, तो हाथ ऊपर आते ही,सर ऊपर आते ही अघोरेश्वर उपदेश रुपी डोरी से उसे बाँध लेते हैं और संसार सागर से उसे उबार देते हैं |             "गुरु का दिया हुआ मंत्र ही शक्तिशाली होता है"            🙏🌺परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु🌺🙏                    🌹भगवान अवधूत राम जी🌹                           🌹जय श्री कृष्ण🌹

वास्तविक संत B80

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              औघड़ वाणी -" संत की कोई परिभाषा नहीं होती "              🌹  संत का हाल तो भगवान भी न जाने 🌹  संत की कोई परिभाषा नहीं होती , वरन संत एक अवस्था होती है । जो समय , काल और परिस्थितियों केअनुसार समाज को मार्गदर्शित करते हैं वही सन्त हैं ।जो स्वयं मार्ग से भटक जाय वो कैसे संत कहला पायेगा । संत समय और परिस्थिति के अनुसार लोगोंको अच्छा कर्म करते रहने और बुरे कार्य से बचने के लिए प्रेरणा प्रदान करता है ।                    जैसे एक बंधे हुए तालाब में पानी न निकलने और नए पानी न आने के कारण वह  गंदा पड़ा रहता है , ठीक उसी तालाब की भांति मनुष्य  के हृदय की सफाई भी तभी संभव है जब उसे धर्म , आध्यात्म व कर्म का बोध कराया जाय और मन में बैठे लोभ , क्रोध , काम जैसी गन्दगी को बाहर निकाला जाए , संत यही कार्य करता है ।                                   -परमपूज्य अघोरेश्वर ब...