आचरण B95

तुमने सुना है, देखा है, काल के डर से अपनी सुरक्षा की अभिलाषा से सेना इकट्ठी की गयी। धनराशि का संग्रह किया गया। किलों का निर्माण किया गया। अपने विद्रोहियों को नष्ट किया गया। फिर भी, काल के समक्ष किसी की नहीं चली। न मालूम, कितना सूक्ष्मातिसूक्ष्म मार्ग है उसका। उस मार्ग से पकड़कर उसने प्राणियों को अपने गाल में डाल दिया है, डाल देता है, चबा गया है। पचा गया है। आने वाले समय में भी चबा जायेगा, पचा जायेगा। ऐसे प्राणियों के प्रियजनों की रुलाई, कातरता, आतुरता की वह रंचमात्र की चिन्ता नहीं करता। उसकी कितनी भी दुहाई देकर तुम बचना चाहोगे, कदापि नहीं बच सकते। मेरी समझ से बचने का एकमात्र उपाय है-- 'अपने आप पर, अपने व्यवहार और आचरण पर, अपने आदर्श पर ध्यान केन्द्रित करना। अपने आप को नियंत्रित करना।' यह परमावश्यक है। इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है। तू सिर्फ अपने से डर और किसी से मत डर। यह महानता की ओर पहुँचायेगा। अरे बाबा! इसी को साधुताई कहते हैं, इसी को अपनाने वालों की महापराक्रमी, इन्द्रियजित, आत्मा के समान सम्मानजनक कहते हैं। जो अपनी आत्मा को पददलित कर देता है, वह अनेक प्रकार के कुकृत्य कर सकता है। ऐसे लोगों के संग के भीषण दुष्परिणाम अवश्यम्भावी है। अपने ही पांवो से कुचल-कुचल कर अपनी आत्मा को पददलित करने वालों की संख्या बहुत है।  जो महान अघोरेश्वर हो चुके हैं, महामानव, महापुरुष, महान संत और महान सज्जन हो चुके हैं, उनके मापदण्ड से ही अपने को बराबर तौलो। तू भी उन गुणों को प्राप्त करोगे जो परा-प्रकृति के गुण हैं। 'का दो करन्ती को का द करत है, खाली भरत, भरत ढलकावत और फिर चाहत तो फिर भरत है।' तू दूसरे की पूजा का अधिकारी बिल्कुल नहीं है। तुम अपनी ही पूजा के अधिकारी हो। अपने को पूजो, पूर्ण होओगे और उस पूर्णता को पाकर 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' के परम लक्ष्य को परिलक्षित करोगे।
  ।।प, पू, अघोरेश्वर।।     
🌹जय श्री कृष्ण🌹

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