गुरु व ईश्वर B97
ईंश्वर अनजाने ही बहुत सा काम कराता है । जो अपने सुविधा तथा कार्यक्रम के अनुसार होता है उसे कहते हैं कि हमने किया जो अनायास होता है उसे ईंश्वर की दुहाई देते हैं , परन्तु हर काम उसी की इच्छा से होता है ।
ईंश्वर जब तक प्रेरणा नहीं देता , तब तक सुबुध्दि नहीं होती अवसर नहीं पहचान सकता कोई । ईश्वर की कृपा जिस पर होती है वही सामाजिक कार्य में सफलता प्राप्त करता है ।
अघोरेश्वर बाबा कीनाराम के पास उनके जीवन पर्यन्त कुबड़ी, कमण्डल और कुश की चटाई के अतिरिक्त कुछ नहीं था। उन्हें इतना अपरिमित दूसरों को देते देखकर श्री (लक्ष्मी) भी और श्रद्धा (सरस्वती) भी लजा जाती थी। अपनी कुबड़ी से उन्होंने अनगिनत निष्प्राण जीवों को प्राणदान दिया। अपने कमण्डल के जल से उन्होंने अकालग्रस्त क्षेत्रों के असंख्य निरीह लोगों को जल और अन्न प्रदान किया। उनकी फटी हुई कुश की चटाई से अनेक सम्राटों के राजप्रासादों और उनमें सुसज्जित पलंगों और सुशोभित बिछावन को लज्जित किया है। उनकी कमर की लंगोटी ने अगणित अबलाओं को वस्त्र देकर उनकी लज्जा ढंकी है। द्वार-द्वार के श्वान होने से श्रेयस्कर है- इन महापुरुषों के चरणों में पड़े रहना। दरिद्र होकर लोग इनकी शरण में जाते हैं और सम्राट होकर लौटते हैं। मैंनें सुना है कि अघोरेश्वरों के चरणों में शरण पाने के पूर्व निष्काम भावनाओं से प्रेरित होना चाहिए। निस्पृह होना चाहिए। तत्पश्चात तू जाकर देख कि कैसे लोग अपनी दरिद्रता को उन महापुरुषों के चरणों में छोड़ कर सम्राट बन कर लौटते हैं।
गुरु वह है जो सामने न होते हुए भी प्रत्यक्ष रहे ।गुरु की उत्पत्ति शिष्य के ह्रदय से होती है ।न सभी गुरु के पात्र हैं ,और न सभी मनुष्य शिष्य के पात्र है । गुरु इतना बताता है --- बैठिये , अपने आप सोचिये ।संकेत पर नहीं चलने पर गुरु भी साथ देने में असमर्थ हो जाता ।
ईंश्वर जिसकी भी सहायता करना चाहता है , बतलाता नहीं सहायता कर ही देता है । अनजाने वह कहीं भी भेज देता है , बाद में काम मालूम पड़ता है अरे ये काम तो हो गया ।
" ईंश्वर कुकर्म का फल अवश्य देते हैं , परन्तु लोगों को माया के जाल में फंसे रखें हैं , दीखता नहीं है ।
* ईंश्वर न्यारी है वह अन्याय नहीं करता ।
* सामाजिक गलती से ईंश्वर को कोई मतलब नहीं फिर से तैयार हो जानो वह अपनायेगा ।
* ईंश्वर नाम की कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम पकड़ ले " वह बोध है "
" ईंश्वर के पीछे मत भागो , क्योंकि उसका कोई पता ठिकाना नहीं है। तुम ठीक रहो वह तुम्हारे पीछे रहेगा ।
" हम अपनी मति - गति को स्थिर रखें !
चंचलता और आतुरता को तिरोहित करें ! " "परमपूज्यअघोरेश्वराय,देवाधिदेव - महादेवाय शरणम गच्छामि "
🌹प, पू, अघोरेश्वर🌹जय श्री कृष्ण🌹
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