मीठे बोल B91


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प्रिय वचन ( मिठे बोल )  ही तो साधुता है। यही महापुरुषों, सन्तों, सज्जनों, औघड़ अघोरेश्वरों की महान तपश्चर्या है, रे! यह बिल्कुल ईश्वर का सानिद्धय प्राप्त करने सरीखा होता है, कपालेश्वर के सानिद्धय के समान होता है। 

 जब तुम किसी को प्रिय वचन बोलते हो तो जितना आह्लाद उसे होता है उससे सौ गुना आह्लाद तुम्हें होता है। जब तुम कठोर वचन का सहारा लेते हो तो जीभ ऐंठनी पड़ती है। मुँह बनाना पड़ता है। हृदय दुष्कर्म में लगे सरीखा हो जाता है। दूसरों को तुम्हारी कटुवाणी वाक-बाण की तरह, तीर की तरह, छेदन करने सरीखे लगती है। यह अशोभनीय, त्याज्य कृत्य है। यह अहित का जन्मदाता होता है। यह हितकारी नहीं है। सुखकारी नहीं है, शान्तिदायक नहीं है। यह संबंधों में कड़वाहट लाता है । प्रिय वचन ( मीठे बोल ) को जीवन में लायें ।


    ।।प, पू, अघोरेश्वर।।      🌹जयश्री कृष्ण🌹


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