श्वेत बकुला B87
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एक कथा का अल्पांश मुझे स्मरण हो रहा है। बकुले श्वेत रंग के होते हैं। वे आज के श्वेत वस्त्रधारी कहे जाने वालों के द्योतक हैं। यह कहा जाता है कि जिस वृक्ष पर जिस वृक्ष की डाल पर बकुले बैठने लगते हैं। वह वृक्ष, वह डाल सदैव के लिए दूषित हो जाती है। मलिनता से भर जाती है, सड़ जाती है, टूट कर गिर जाती है। ये बकुले नदी, नालाओं के किनारे बहुत ध्यान से बैठकर साधुओं का रुप बनाकर जल प्राणियों की हत्या करते हैं। आप देख ही रहे हो, इन श्वेत पर वाले बकुलों का आगमन अंचल से लेकर जिला तक, जिला से लेकर प्रान्त तक, प्रान्त से लेकर देश तक। नदी-नालों के किनारे यानि अंचलों एवं जिलों में प्रसन्नचित्त, खेलने-कूदने एवं हंसने वाले उदार चरित्र वाले आगे भी उनके शिकार होते हैं। प्रान्त से लेकर देश तक उनके शिकार होते हैं, हो रहे हैं।" जिस वृक्ष पर जिस वृक्ष की डाल पर, इनका बाहुल्य होता है, वह समूल नष्ट हो जाता है। "
🌹।।प, पू, अघोरेश्वर।। 🌹 ।।🌹जय श्री कृष्ण🌹।।
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