निश्चल मन B89
🕉️🌷 छल कभी न गुरु से न अपने - आप से ,🌷🕉️
🌹- व्यवहार को अपने जीवन में उतारना चाहिए 🌹
अपने जीवन की घटनाओं के साथ आप परिचित होते हैं ,
जो प्रायः हर आदमी के जीवन मे घटती रहती है । ऐसी घटना जिससे व्यक्ति की आत्मा पददलित होती है , उससे वह व्यक्ति जीते जी मृतक तुल्य हो जाता है । उसे पूजा - पाठ आदि की औषधि पचती ही नहीं । उसे अपने जीवन से ही अरुचि हो जाती है ।
जिसमें आत्मा है , उसे गुरु रूपी वैद्य का केवल पथ्य ही लाभ कर देता है , औषधि की आवश्यकता ही नहीं पड़ती । औषधि का भण्डार पड़ा ही रह जाता है । जो कुपथ पर है वह रोग रहित हो ही नहीं सकता । उसका रोग भयंकर ही होता रहता है । 🌺 जो आत्मविश्वासघाती है 🌺, उस मनुष्य से कामना करें कि सफ़लयोनि प्राप्त करेगा , तो व्यर्थ है । क्योंकि
वह मनुष्य जीवन जिसे देवयोनि कहा जाता है --- इसमें यदि उसकी आत्मा मर चुकी है तो उससे किसी प्रकार की आशा रखना व्यर्थ है ।
यदि किसी समय का पुण्य का संयोग हुआ या किसी महात्मा के चित्त में आ जाय कि अपनी कृपा का जल छिड़क दे तो उस व्यक्ति की आत्मा जागृत हो जाती है ।
🌷वैसे साधु - महात्मा विचित्र स्वभाव के होते हैं --- किसी से विशेष लगाव नहीं रखते । साधु - फकीर की स्थिति होती है कि आप आये और दण्ड प्रणाम किये , बस हो गया ।🌷
यह कहा जाता है कि साधु, गुरु को ढूँढ़ो ।
यह तो छल है । क्योंकि छल से प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।
🚩यदि आपमें छल है , तो गुरु अपने अन्तरात्मा की अभिव्यक्ति नहीं करते हैं 🚩जो गोप्य - से - गोप्य इष्ट का मार्ग है , उसे वह प्रकट नहीं करेंगे । आप आये , दण्ड प्रणाम किये , वह विदा कर देंगे ।
✡️🚩 अघोरेश्वराये नमः 🚩✡️ 🌹जयश्री कृष्ण🌹
साभार टाइम्स--- 15 अप्रैल 1976
Comments
Post a Comment