पुरुषार्थ B82

 सुधर्मा ! प्रयत्न के बगैर पुरुषार्थ रूपी दिव्य-गुण नहीं प्राप्त होता है। प्रयत्न करने वाला मनुष्य अपने को अन्धकार में नहीं रखता है, प्रकाश की तरफ ले जाता है। चाहे जैसी परिस्थिती भी उपस्थित हो जाय, शरीर भी सुखाना पड़े तो सुखाता है। अपने को लोलुपता से छुड़ाना पड़े तो लोलुपता से छुड़ाता है। मन को मारता है तो तन को वश में करता है। सुधर्मा, वही पुरुष पुरुषार्थी कहा जाता है। पुरुषार्थ ही मनुष्य का जीवन है, मोक्ष का मार्ग है, अर्थ का मार्ग है, धर्म का मार्ग है।

सुधर्मा ! जिसका चित्त विषय-अनुरक्त है उस प्राणी का जीवन नरक में पड़े हुए के सरीखा है। वह बिना पगहा नाथ के बैल 

के सरीखा है कहीं उसको शरण नहीं है। न अपने पास शरण है, न किसी अन्य के पास शरण है। इस खेत से उस खेत, इस बस्ती से उस बस्ती मारा-मारा फिरता है। उसका न कोई मालिक है न मउआर है। चाहे जो कोई मारे चाहे जो कोई उसे दुत्कारे, चाहे जो कोई उसे अपशब्द कहे, कोई उसे पूछने वाला नहीं है। सुधर्मा! इस तरह का जीवन जो साधु-औघड़ जीता है, वह पुरुषार्थ हीनता के कारण मारा-मारा घूमता है। सुधर्मा ! ऐसा ही मैं देख रहा हूं।

पुरुषार्थ, संयोजिनी- काया को कृत-कृत्य करता है। साधु औघड़ों को चाहिये कि इसे संजोये, संग्रह करे और जो संग्रह है उसे व्यय न होने दें, तो वह काया कृत-कृत्य जायगा, सुधर्मा। कोई मनुष्य कुकृत्य रूपी खाझा बनावे तो हमारा धर्म नहीं है कि उसके खाझा को हम सब जगह बयना बांटते फिरें। यदि हम सब जगह उसके कुकृत्य-रूपी खाझा को बांटते हैं तो हम भी उस अपराध का, बगैर उत्पाद कर ( कस्टम ड्यूटी ) दिये माल की तस्करी करने वाले सरीखे होंगें। किसी भी अपराध को यदि हमने चक्षु से देखा है, हमारे कान ने सुना है तो श्रवण-चक्षु और वाणी के माध्यम से, उसके अपराध को ढोकर, एक जगह से दूसरी जगह तक पहूंचाने का यह व्यायाम, यह श्रम व्यर्थ और निरर्थकता की तरफ ले जाता है।🚩।। जय श्री कृष्ण।।🚩

          🚩🌺परम् पूज्य् अवधूत भगवान राम जी 🌺🚩



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