असत्य न बोल B92


 हमारा एक शिक्षित, विद्वान शिष्य है। उसने 22 वर्ष की उम्र में यह संकल्प किया वह कभी झूठ नहीं बोलेगा। अपनी माता के जीवित रहने के कारण उसने घर-गृह का परित्याग नहीं किया था। उनकी वृद्धावस्था के कारण वह उनकी सेवा-सुश्रूसा में लगा हुआ था। उसने निश्चय किया कि अपनी माता के स्वर्गवास के बाद वह घर छोड़ देगा। इसिलिए सदाचरण करते हुए वह अपने गृह में रहता था। एक दिन उसके ग्राम की एक अशिक्षित स्त्री उसके पास आयी और एक पोस्टकार्ड देते हुए उस पर पत्र लिख देने का अनुरोध किया। महिला ने बतलाया कि उसका पुत्र बहुत दिनों से कलकत्ता में नौकरी कर रहा था और न घर ही आ रहा था और न घर खर्च ही भेजता था। महिला ने कहा लिख दो--'तुम्हारी माँ की साँस चल रही है। वह मरणासन्न है। अब उसका स्वर्गवास हो जायेगा। जल्दी चले आओ।' मेरे शिष्य ने उस महिला को ये सब बातें नहीं लिखवाने का परामर्श दिया। उसने कहा कि वह महिला स्वस्थ थी, निरोग घूम रही थी और यदि उसने उस महिला के कथनानुसार ही लिख दिया और कुछ हो गया तो उसे कलंक लग जायेगा। उस महिला ने मेरे उस शिष्य को अभद्र शब्दों में सम्बोधित करते हुए, डाँटकर पत्र लिखने पर बल देते हुए कहा कि इससे कुछ नहीं होगा। उसने शिष्य की भत्सर्ना करते हुए कहा कि वह बड़ा सिद्ध पुरुष बन रहा है। विवश होकर उसने उस महिला की इच्छानुसार पत्र लिख दिया। पत्र पाते ही पुत्र आ पहुँचा। जैसे ही उसने घर की चौखट पर पाँव रखा, उसके घर की एक अन्य महिला ने उसे सूचना दी कि उसके माता स्वर्गवासिनी हो चुकी थी। तो यह समझ लो कि एक बार संकल्प कर लिया कि सच बोलोगे तो तुम्हारी सच्चाई इतनी व्यापक हो सकती है कि यदि तुम किसी असत्य बात को भी सत्य कह देते हो तो वह सत्य निकल आती है।" 
।।प, पू, अघोरेश्वर।।      

🌹जय श्री कृष्ण🌹

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