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Showing posts from March, 2021

शिव शक्ति B119

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                 🌺 जय श्री बाबा  कीनाराम भगवान 🌺                🌹🌹शक्ति के बिना शिव 'शव ' हैं । 🌹🌹 अर्थात्–समस्त पुरुष भगवान सदाशिव के अंश और समस्त स्त्रियां भगवती शिवा की अंशभूता हैं, उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त है।                     "शक्ति के बिना शिव ‘शव’ हैं।" शिव और शक्ति एक-दूसरे से उसी प्रकार अभिन्न हैं, जिस प्रकार सूर्य और उसका प्रकाश, अग्नि और उसका ताप तथा दूध और उसकी सफेदी। शिव में ‘इ’कार ही शक्ति है। ‘शिव’ से ‘इ’कार निकल जाने पर ‘शव’ ही रह जाता है। शास्त्रों के अनुसार बिना शक्ति की सहायता के शिव का साक्षात्कार नहीं होता। अत: आदिकाल से ही शिव-शक्ति की संयुक्त उपासना होती रही है। "भगवान शिव के अर्धनारीश्वररूप का आध्यात्मिक रहस्य" भगवान शिव का अर्धनारीश्वररूप जगत्पिता और जगन्माता के सम्बन्ध को दर्शाता है। सत्-चित् और आनन्द–ईश्वर के तीन रूप हैं। इनमें सत्स्वरूप उनका मातृस्वरूप है, चित्स्वरूप उनका पितृस्...

जैसी सोच वैसा जन्म B118

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                🚩🙏🙏🌹💖💓💖🌹🌹🙏🙏🚩                         🙏🌹💖 💓 💖🌹🙏 गीता में कहा है कि जो मनुष्य मरते समय जैसी ही चाह करे, वैसा ही वह दूसरा जन्म पा सकता है। _तो यदि एक मनुष्य उसका सारा जीवन पाप करने में ही गंवा दिया हो और मरते समय दूसरे जन्म में महावीर और बुद्ध जैसा बनने की चाह करे, तो क्या वह आदमी दूसरे जन्म में महावीर और बुद्ध जैसा बन सकता है?_ निश्चित ही, मरते क्षण की अंतिम चाह दूसरे जीवन की प्रथम घटना बन जाती है। जो इस जीवन में अंतिम है, वह दूसरे जीवन में प्रथम बन जाता है। इसे ऐसा समझें। रात आप जब सोते हैं, तो जो रात सोते समय आपका आखिरी विचार होता है, वह सुबह जागते समय आपका पहला विचार बन जाता है। इसे आप प्रयोग करके जान सकते हैं। रात आखिरी विचार, जब आपकी नींद उतर रही हो, जो आपके चित्त पर हो, उसे खयाल कर लें। तो सुबह आपको जैसे ही पता लगेगा कि मैं जाग गया हूं वही विचार पहला विचार होगा। मृत्यु महानिद्रा है, बड़ी नींद है। इसी शरीर में नहीं जागते हैं, फिर दूसरे शरीर में जागते ह...

श्रम करें B117

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                        🌼🌿  औघड़ वाणी  🌿🌼 🔱🚩"आश्रम" का अर्थ ही है कि आ कर हम लोग श्रम करें |       इस श्रम का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है | जो यहाँ आकर हम सीखते हैं , करते हैं , वही कार्य हम अपने छोटे से घरों में करें तो हमें भौतिक रूप से संतुष्टि मिलती है , उन्नति होती है और हम अपने परिवार को चलाने में,अपने कुनबे को चलाने में सक्षम होते हैं | 🌹 श्रम करने से यदि हम भागते रहेंगे,बचते रहेंगे तो हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे | लेकिन यहाँ आश्रम में आ कर,उन संत-महात्माओं के यहाँ जाकर , हम लोग यही सीख लेना चाहते हैं कि हम उस मानवता को प्राप्त करें |  🌷 हमारे जो भी कार्य हों , जितने भी कर्म हैं वह अपनी आत्मा से आत्मा के लिए हों न कि हमारा दृष्टिकोण केवल भौतिक उन्नति,आर्थिक उन्नति और ऐश आराम के लिए हो |🌷 🌼हमारे प्राचीन काल में और अभी भी कई संत-महात्मा हैं जिनके पास कुछ भी नहीं है,एक पेड़ के नीचे भी बैठे हैं,तो भी उनमे कितनी संतुष्टि है , कितनी शांति है,कितना आकर्षण है कि बहुत बड़े-बड़े लोग भी...

अवधूत गुरुपद सँभव राम जी B116

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                  🙏🌹🌹💖💖💓💖💖🌹🌹🙏               अघोरेश्वर भगवान राम जी : शिष्य समुदाय                   🌹अवधूत गुरुपद सँभव राम जी🌹  सन् १९८२ ई० में अर्ध कुम्भ पड़ा था । प्रयाग में त्रिवेणी स्थल पर अघोरेश्वर का केम्प लगा हुआ था । केम्प में अघोरेश्वर विराजमान थे । पूरे क्षेत्र में साधूओं का मेला लगा हुआ था । सभी सम्प्रदाय, अखाड़ा, मठ, आश्रम, आदि से साधुजन तथा धर्मप्रेमी, तीर्थवास के अभिलाषी श्रद्धालुजन पुण्यसलिला गँगा के तट पर बालुका पर छोलदारियों में निवास कर रहे थे । ध्यान, धारणा, प्रवचन, आशीर्वचन की अविरल धारा निरन्तर प्रवहमान हो रही थी । इस धारा में जिसकी जैसी मति, गति थी अवगाहन कर अपनी तृप्ति हेतु प्रयास रत था । एक दिन केम्प में प्रातःकालीन नित्यकर्म की चहल पहल शान्त हो चुकी थी । जगह जगह रात में जलाये गये अलाव शाँत हो चुके थे । कुछ साधुओं | मठाधीशों के स्थान पर प्रवचन सुनने के लिये श्रद्धालुओं का जुटना शुरु हो चुका था । लगभग सभी जगह भोग राँधने ...

संस्कार व विचार B115

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  🌷  ध्यान - धारणा पर एक कथानक ! महाराजश्री के        श्रीमुख से 🌷 एक साधु था | वह दिन भर गंगा किनारे एक पेड़ के नीचे बैठा रहता था |जहाँ उसका आसन था उसके ठीक सामने थोड़ी दूर पर एक वेश्या का घर था | वह साधु अपने दायीं तरफ गिट्टियों से भरा एक झोला रखता था | वह दिन भर यही देखता था की कौन- कौन आदमी उस वेश्या के यहाँ जाते हैं | जब भी कोई व्यक्ति उस साधु के सामने से होकर वेश्या के यहाँ जाता था तब साधु झोले में से एक गिट्टी निकाल कर दूसरी तरफ रख देता था | मन ही मन में वह उस व्यक्ति को गाली भी देता था कि देखो इस साले को समाज में तो कितना अच्छा और साफ सुथरा दीखता है , और यहाँ इस वेश्या के कोठे पर जा रहा है | दिन भर बैठे बैठे गिट्टी को इधर से उधर करना साधु का यही काम था | 🌼 उस कोठे में रहने वाली वेश्या भी बाहर ध्यान देती थी | वह देखती थी कि उसके घर के ठीक सामने वाले पेड़ के नीचे एक महात्मा जी बैठते हैं | वे दिन भर बिलकुल चुपचाप आसनस्थ बैठे रहते हैं किसी से कुछ बोलते नहीं बस ऐसा लगता है की जप करते रहते हैं | उस साधु को देख कर उस वेश्या के मन में बहुतअच्छे विचार उठते र...

जीने का ढंग B114

 🌹 भागने पर ग्रह पीछा करता है, रुकने पर रुक जाता है। 🌹 किसी का पीछा मत करो,यह अन्धे करते हैं। 🌹 सत्य को जानने वाले से ही सत्य बोलो । 🌹 संकल्प सिद्धि है ,संकल्प करो इच्छा नहीं । 🌹 किसी से सहायता की आशा मत करो । 🌹 तन मन से स्वस्थ रहने की कामना करो । 🌹 जो कुछ मिला है ,उसके लिए नित्य नमन करो । 🌹 कम बोलना सीखो , सही बोलना आ जावेगा । 🌹 भटको मत कोई स्थान तो अपना बनाओ । 🌹 क्या सोचते हो , चल दो पहुंच जावोगे । 🌹 जहां जाना चाहते हो , वहीं देखो , वहीं सोचो वरना भटक जावोगे । 🌹 सोच विचार कर निर्णय ,फैसला करो ,निर्णय लो तो निबाहो । 🌹 सोचो कि दुनिया में क्या तुम्हारा है , कौन तुम्हारा है। 🌹 सहारा उसका लो जो तुम्हें बेसहारा न बना दे । 🌹 किसी की बुराई न देखो ना सुनो । 🌹 बुरे के अच्छे काम में सहयोग करो , उसे सुधारने का अवसर मिल जावेगा । 🌹 किसी से मिलने के पहले अपने पर विचार करो । 🌹 साथ रहकर भी अकेला होना अच्छा है , सीखो । 🌹 गन्दा व्यवहार सबसे पहले गन्दा करने वाले को प्रभावित करता है , बाद में औरों को । 🌹 आतुरता भयानक है चाहे वह इस परिस्थिति में हो । 🌹 दूसरे के भरोसे किसी काम की श...

सत्य का ज्ञान B113

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  यही हमारे इस मनुष्य जीवन का ज्ञान है इसको जान लेना ही भक्ति है और इसको जान लेना ही मुक्ति है। जो इस आत्मा के स्वरुप को जान लेता है वही मुक्त पुरुष हो जाता है। जीवन में ही मुक्ति पा लेता है यह नहीं कि शरीर छोड़ने के बाद मुक्ति मिले। जिसमें आत्मबोध हो गया वह मुक्त हो गया। वह शरीर के दुःखों से छूट गया। चार प्रमुख दुःख कहे गये हैं-जन्म, मरण, जरा और व्याधी। जन्मते समय भी दुःख होता है मरते समय भी दुःख होता है बीमार होने से और बुढ़ापे में भी दुःख होता है। ये चारों शरीर के दुःख है जो देह बुद्धी से उपर उठ आत्म बुद्धी वाला हो जाता है उसे इन चारों प्रकार के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। यही हमारे मनुष्य जीवन का उद्देश्य होता है। हमारे संतो ने हमें यही समझाया है। हम संसार में रहते हैं गृहस्थ परिवार में हैं सन्यासी नहीं भी हैं फिर भी हमारा कर्तव्य है कि हम कार्यो को मर्यादा के अंदर ही रह कर करें। मर्यादा का उलंघन नहीं करे और यह समझे कि हमारे जीवन में किसी की आवश्यकता है हमारे जीवन का जो मूल श्रोत है उससे जुड़ कर ही हम वास्तविक सुख और आनन्द की अनुभूति कर सकते है। इसी लिये हमें प्रातः और संध्या...

भाव का आत्मा से संबंध B112

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 "भाव ही भाव होगा" और जहां भाव होता है वहीं भक्ति होती है। भक्ति में भाषा का महत्व नहीं होता है भाव का महत्व होता है। कहा गया है "भक्ति स्वतंत्र सकल गुण खानी, विनु सत्संग न पावही प्राणी।" और जब वह भाव विहवल होता है परमात्मा के लिये वह चिंतन शील होता है उसको यह समझ आ जाता है कि उसके बिना मेरा जीवन अधुरा है हमारे जीवन का श्रोत है जिसके इस शरीर से निकल जाने के बाद यह शरीर ज्यों का त्यों धरा का धरा रह जाता है। फिर इस शरीर को समाज तो छोड़ दिजिये परिवार के लोग भी २-४ घण्टे से अधिक घर में रखना नहीं चाहते क्योंकि इसके अंदर से जीवात्मा निकल गया है यह निर्जीव हो गया है यह बेकार हो गया है। ऐसा क्यों? तो मनुष्य प्रेम किस से करता है। शरीर से करता है तो शरीर को रखना चाहिये ? परन्तु वह प्रेम किससे करता है जो निकल गया उस जीवात्मा से जिसके रहने पर वह एक दूसरे से प्रेम करता है एक दूसरे से प्रेम करता है एक दूसरे को भाई समझता है, पति पत्नी समझता है, माता पिता समझता है। एक दूसरे से प्रेम करता है यह रिश्ता किसका, यह देह का नहीं आत्मा का रिश्ता है किन्तु वह आत्मा न तो किसी का भाई होता है ...

कार्य के प्रति सम्पूर्ण भाव B111

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                🚩🌹🌹🌹💖💓💖🌹🌹🌹🚩 🔱🚩 1 . " भगवती " को तो भाव से पूजना होगा , भाव से ही जानना होगा , भाव से ही देखना होगा । जहाँ भाव का अभाव होगा वहाँ पर तो वह बिल्कुल नहीं होंगी । 2 . आपकी भावना की भूखी हैं और भाव से  आप जो  जल - फल - फूल इत्यादिक अर्पण करते हैं, वह उसकी गंधमात्र , वायु के माध्यम से , अग्नि के माध्यम से उनतक पहुँचता है । 3 . हमारे और आपके बीच में , पृथ्वी और आकाश के बीच में जो खाली है , यह " खाली " उसी का स्रोत है । इसी को कहा गया है भगवती की , भवानी की सप्त - चण्डिका में । 3 . एक हैं जामनिक और दूसरे हैं मार्कण्डेय । मार्कण्डेय कहते हैं उसी मार्तण्ड को जो आकाश है । जामनिक कहते हैं इस जमीन     को । जमीन और आकाश के बीच मे जो खाली है---- यह आकाश है , इसमें न मालूम कितनी - कितनी आत्माएँ उतपन्न होती हैं , विलीन होती हैं । यह भगवती का उदर है । हम और आप या सभी प्राणिमात्र  की विकास - स्थली है । 4 . पृथ्वी पूछती है उस आकाश से कि हमारे और आपके बीच में जो यह खाली है , इसमें हम और आप जो दो किनारे हैं एक न...

असंतुष्ट न होना B110

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                       🙏🌹🌹🌹🌺🌹🌹🌹🙏 एक छोटे से गांव में एक बहुत संतुष्ट गरीब आदमी रहता था | वह संतुष्ट था इसलिए सुखी भी था | उसे पता भी नहीं था कि मैं गरीब हूँ | गरीबी केवल उन्हें पता चलती है जो असंतुष्ट हो जाते हैं | संतुष्ट होने से बड़ी कोई  सम्पदा  नहीं है,कोई समृद्धि नहीं है, लेकिन एक रात अचानक वह दरिद्र हो गया | न तो उसका घर जला,न उसकी फसल ख़राब हुई,न उसका दिवाला निकला | लेकिन एक रात अचानक बिना कारण वह गरीब हो गया था | उस रात एक आदमी उसके घर मेहमान हुआ और उस आदमी ने उससे हीरे कि खदानों कि बात की और उससे कहा कि ,पागल तू कब तक खेती-बारी करता रहेगा ? पृथ्वी पर हीरो कि खदाने भरी पड़ी हैं | अपनी ताक़त हीरो कि खोज में लगा,तो जमीन पर सबसे बड़ा समृद्ध तू हो सकता है | समृद्ध होने के सपनो ने उसकी नींद ख़राब कर दी | रात भर जागता रहा और सुबह उसने पाया कि वह एकदम दरिद्र हो गया है क्योंकि वह असंतुष्ट हो गया था | उसने अपनी जमीन बेच दी,अपना मकान  बेच दिया ,सारे पैसे लेकर हीरों कि खदान कि खोज में निकल पड़ा | १२ वर्षो तक उसने ...

तीन प्रकार के अन्न B109

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  तीन प्रकार के अन्न को ग्रहण नहीं करना चाहिए ,अतः उन्हें अभीष्ट नहीं समझना । ये हैं ----- (१) मृत्यु के उपरांत श्राद्ध के त्रयोदशा के लिए पका हुआ अन्न। (२) जो स्त्री रजस्वला है  उसके द्वारा तैयार किया हुआ या स्पर्श किया हुआ अन्न और  (३) जो विश्वाशघाती है उसका अन्न । यह बात तुमसे इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ये अनुभूत सत्य है । पांडवों में श्रेष्ठ युद्धिष्ठिर ने श्राद्ध का अन्न खाया था इसलिए जब उनकी पत्नी का चीर-हरण हो रहा था तब वो कुछ नहीं कर सके और मूक द्रष्टा बने रहे । उसी  तरह रजस्वला स्त्री को किसी का लोटा, जल तक नहीं छूना चाहिए । यदि तुम्हे ऐसा कुछ दिखाई दे तो उस पात्र या भोजन  को कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए । ऐसी स्त्री का दिया हुआ अन्न पुण्य के छह भाग में से पांच भाग ले लेता है । ऐसी स्त्री अगर अपने पति को भी छू ले तो उसके पति का तेज, बल कांति सब गायब हो जाता है। वह दुर्बल और शिथिल सा महसूस करता है । विश्वाशघाती का अन्न ग्रहण करने से उसका भी मन व कर्म विश्वासघाती हो जाता है । 🌹परम् पूज्य् अवधूत भगवान राम जी 🌹 🌹जय श्री कृष्ण🌹

अन्नपूर्णा का महत्व B108

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                       🚩🙏🌹🌹🌹🌹🌹🙏🚩     🌼🌷  घर - घर अन्नपूर्णा  ------ मार्मिक उद्गार  🌷🌼 🚩इसे सरसरी तौर पर नहीं,दिल की गहराई में उतर कर देखें🚩                         🚩🌷  औघड़  -  वाणी  🌷🚩 🚩🔯 अन्नपूर्णा सब प्राणियों की जीवन शक्ति है जिसका आदर सारा संसार करता है। भारत वर्ष में एक विग्रह के रूप में भी अन्नपूर्णा का आदर होता है। परन्तु जब से मैंने होश संभाला है , यही देखता आया हूँ कि घर - घर अन्नपूर्णा की उपेक्षा होती है , उसका अपमान होता है। साधु - संत और किसान भी अन्नपूर्णा की उपेक्षा करते हैं , अनादर करते हैं।                                      हमारे देश की जनसंख्या बहुत है। इस देश के सब लोग मिल कर जितना अन्न रोज फेंकते हैं उतने अन्न से एक छोटे मोटे राष्ट्र की जनसंख्या का महीनों तक  भोजन हो सकता है। हम जब भ...

मूर्ति पूजा B107

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                🙏🌹🌹🌹💖💖💖🌹🌹🌹🙏 मूर्ती पूजा का रहस्य जरूर पढ़े :- कोई कहे की हिन्दू मूर्ती पूजा क्यों करते हैं तो उन्हें बता दें मूर्ती पूजा का रहस्य :-  स्वामी विवेकानंद को एक राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला, “तुम हिन्दू लोग मूर्ती की पूजा करते हो! मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ती का.! पर मैं ये सब नही मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।” उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी कि नजर उस तस्वीर पर पड़ी।  विवेकानंद जी ने राजा से पूछा, “राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?” राजा बोला, “मेरे पिताजी की।”स्वामी जी बोले, “उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये।”राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।स्वामी जी राजा से : “अब आप उस तस्वीर पर थूकिए!” राजा : “ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामी जी.? “स्वामी जी : “मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..!”राजा (क्रोध से) : “स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।”  स्वामी जी बोले, “क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, न...

सच्चा धन B106

                      💖🎄धन की परिभाषा:🌳💖 💖जब कोई बेटा या बेटी ये कहे कि मेरे माँ बाप ही मेरे भगवान है ... ये है "धन"💖 💖जब कोई माँ बाप अपने बच्चों के लिए कि ये हमारे कलेजे की कोर है .....ये है "धन"💓 💖शादी के 20 साल बाद भी अगर पति पत्नी एक दूसरे से कहे  I Love You..... ये है "धन"💓 💖कोई सास अपनी बहू के लिए कहे ये मेरी बहु नहीं बेटी है और कोई बहू अपनी सास के लिए कहे ये मेरी सास नहीं मेरी माँ है..... ये है "धन"💖 💖जिस घर में बड़ों को मान और छोटो को प्यार भरी नज़रों से देखा जाता हो ... ये है "धन"💖 💖जब कोई अतिथि  कुछ दिन आपके घर रहने के पश्चात् जाते समय दिल से कहे आपका घर ....घर नहीं एक मंदिर है ..... ये है धन💖  💝मैं " ये दुआ करता हूँ कि आपको ऐसे "परम धन"  की प्राप्ति हो ।💖💖💖 जय श्री कृष्ण💖💖💖