सत्य का ज्ञान B113
यही हमारे इस मनुष्य जीवन का ज्ञान है इसको जान लेना ही भक्ति है और इसको जान लेना ही मुक्ति है। जो इस आत्मा के स्वरुप को जान लेता है वही मुक्त पुरुष हो जाता है। जीवन में ही मुक्ति पा लेता है यह नहीं कि शरीर छोड़ने के बाद मुक्ति मिले। जिसमें आत्मबोध हो गया वह मुक्त हो गया। वह शरीर के दुःखों से छूट गया।
चार प्रमुख दुःख कहे गये हैं-जन्म, मरण, जरा और व्याधी। जन्मते समय भी दुःख होता है मरते समय भी दुःख होता है बीमार होने से और बुढ़ापे में भी दुःख होता है। ये चारों शरीर के दुःख है जो देह बुद्धी से उपर उठ आत्म बुद्धी वाला हो जाता है उसे इन चारों प्रकार के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है।
यही हमारे मनुष्य जीवन का उद्देश्य होता है। हमारे संतो ने हमें यही समझाया है। हम संसार में रहते हैं गृहस्थ परिवार में हैं सन्यासी नहीं भी हैं फिर भी हमारा कर्तव्य है कि हम कार्यो को मर्यादा के अंदर ही रह कर करें। मर्यादा का उलंघन नहीं करे और यह समझे कि हमारे जीवन में किसी की आवश्यकता है हमारे जीवन का जो मूल श्रोत है उससे जुड़ कर ही हम वास्तविक सुख और आनन्द की अनुभूति कर सकते है।
इसी लिये हमें प्रातः और संध्या को जो भी हमारे पास समय है उसमें उसी मूल श्रोत से निरंतर जुड़ने का हमें अभ्यास करना चाहिये। मौन हो जाइये हर प्रकार के विचारों से स्वयं को रहित कर लिजिये। आखें बंद कर धीरे धीरे उस मूल श्रोत से अपने को जोड़ने का अभ्यास किजिये। आपका किया गया निरंतर अभ्यास एक दिन नहीं दो दिन नहीं चार दिन नहीं निरंतर, मतलब एक समय तय कर लिजिये उस समय में बैठ कर निरंतर जुड़ने का अभ्यास करिये। यह अभ्यास आपको सफलता की ओर ले जायेगा और जीवन में धीरे धीरे जितना ही आप उसके नजदिक जायेगें आप के जीवन में सुख शांति घुलता जायेगा।
सभी महापुरुष के उन विचारों को अपने जीवन में लाओ व महाप्रभु के शरण में जाओ अपने आप को पहचानों। सब कुछ पा जाओगे, परिपूर्ण हो जाओगे आवागमन से रहित हो जाओगे। यह अवश्य ही आपको परिपूर्ण करेगा। अतः उन महापुरुष को मैं नमन करता हूँ।
🙏🌹💓जय श्री कृष्ण💓🌹🙏
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