कार्य के प्रति सम्पूर्ण भाव B111
2 . आपकी भावना की भूखी हैं और भाव से आप जो
जल - फल - फूल इत्यादिक अर्पण करते हैं, वह उसकी गंधमात्र , वायु के माध्यम से , अग्नि के माध्यम से उनतक पहुँचता है ।
3 . हमारे और आपके बीच में , पृथ्वी और आकाश के बीच में जो खाली है , यह " खाली " उसी का स्रोत है । इसी को कहा गया है भगवती की , भवानी की सप्त - चण्डिका में ।
3 . एक हैं जामनिक और दूसरे हैं मार्कण्डेय । मार्कण्डेय कहते हैं उसी मार्तण्ड को जो आकाश है । जामनिक कहते हैं इस जमीन को । जमीन और आकाश के बीच मे जो खाली है----
यह आकाश है , इसमें न मालूम कितनी - कितनी आत्माएँ उतपन्न होती हैं , विलीन होती हैं । यह भगवती का उदर है । हम और आप या सभी प्राणिमात्र की विकास - स्थली है ।
4 . पृथ्वी पूछती है उस आकाश से कि हमारे और आपके बीच में जो यह खाली है , इसमें हम और आप जो दो किनारे हैं एक नदी की या इस ब्रह्माण्ड की , यह " खाली " क्या है ?
5 . यह आप भी समझते हैं और प्रायः सभी प्राणी , बुद्धिमान लोग समझते हैं । यही खाली में सबकुछ , सर्वत्र महान शक्ति छिपा हुआ है जिसमें हम हाथ चलाते हैं , पाँव चलाते हैं , फिरते हैं , श्वाँस लेते हैं , श्वाँस छोड़ते हैं । यह हमारे सामने अवरुद्ध हो जाएगा तो हमारी जीवन - शक्ति समाप्त हो जायेगी और जीवन लीला भी समाप्त हो जायेगी । हमारे जीवन की जो लीला है वह इस " खाली " से है ।
6 . यह " खाली " ही चारो तरफ से घेरा हुआ है । मगर बीच में खोखला है । खाली है इसीलिये हमलोग इसमें बैठ कर अपने हर कार्य , कर्म कर रहे हैं ।
7 . 💗 उनका आहार - विहार या उनके जो कुछ भी पदार्थ हैं ,
उस पदार्थ का एक कण भी वह न स्वीकार करती है , न लेती है
और न भोगती है 💗 यह हमारा विचार भोगता है , हमारी भावना भोगती है , हमारा जो अपना संकल्प और विकल्प हैं वही भोगता - भागता है ।भगवती यह दोनों के बीच का वह खाली जगह है जिसमें प्राणी जीवन - शक्ति पाया हुआ है ।
8 . इसको प्राप्त करने के लिए हमें बहुत कुछ त्याग भी करना होगा और बिल्कुल नहीं भी करना होगा । नहीं ; हम उस परिस्थिति में कर सकेंगे जब कि हम अपने अच्छे आचार्य - गुरु के सान्निध्य प्राप्त कर चुके हैं । वहाँ वह नहीं करना होगा । और यदि मुझे नहीं है , तो मुझे बहुत से पाप - पुण्य , स्वर्ग - नर्क , कर्ता - अकर्त्ता , भोक्ता - अभोक्ता , यह सबकुछ लगा हुआ है ।
यह सब जबतक चित्त में भासता रहेगा तबतक यह चित्त
दूषित रहेगा । दूषित रहेगा , तो उनमें दोष उतपन्न होते रहेंगे और वह जीवन उसके बिल्कुल '' मन एवं मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः '' यह मन ही बन्धन और मोक्ष का कारण होता है । सो हम सभी प्राणीमात्र को भासता है । यह एक ऐसा भासता है कि
' है नहीं ' , ' है ' सरीखे भासता है । होता नहीं होने सरीखे भासता है । आकाश को कोई पकड़ नहीं सकता । मगर आकाश को देखता है , अनुभव करता है । किसी सुगन्ध का , गन्ध का , रंग और रूप कुछ नहीं है ; मगर वह भासता है ।
9 . इसी तरह 💗 उस भगवती की यह जो व्यापकता है , उस व्यापकता को हम कहें कि हम दर्शन कर लेंगे , उस व्यापकता को हम समझ जायेंगे , तो उसका कोई ओर - छोर नहीं है , कैसे कोई उसकी थाह लगा सकेगा कि इसका यही मापदण्ड है । नहीं तौला जा सकता है । उसको कैसे तौल सकते हैं जो अतौल
है ?
10 . वह भगवती महाभैरव लीला , क्रीड़ा और उनके उत्साह
का , आह्लाद का एक अंग है । उस भगवती को जानने के लिये , सुनने के लिये , समझने के लिये हमलोगों के पास वह स्थिरता नहीं है , जिस स्थिरता में वह प्राप्त किया जाता है ; क्योंकि इतना हमलोग चंचल हैं , क्षोभित हैं कि उससे कुछ कह नहीं जा सकता ।
11 . यह जो भगवती हैं उसके कृत्यों को और उसकी पकड़ को समझने के लिये अपना बहुत - बहुत कुछ करना पड़ता है ।
12 . हमलोग अनेकों जन्मों से असिद्धि को प्राप्त हुआ हूँ । क्या कारण है असिद्धि को प्राप्त होने के ? उन्हें हमने सही ढंग से स्वीकार नहीं किया है । जब मेरे सामने वह आती हैं , तब हमलोग बिल्कुल पर्दा कर लिया करते हैं । उसका यह नतीजा होता है कि तमाम हम उनसे वंचित हो जाते हैं , तमाम अवगुणों की याद होने लगता है , तमाम हमारी मन में बड़ा ही दूषित चित्त हो जाता है । चित्त अपने उस ब्रह्म - सत्ता की तरफ , अपनी आत्मा की तरफ वह नहीं प्रवेश कर पाता कि मैं बिल्कुल इन सभी से निर्लिप्त हूँ , निर्विकार हूँ , निरहंकार हूँ और मैं अपने - आप को वचन देता हूँ कि मैं आज के दिन से कोई भी ऐसा आचरण नहीं करूँगा जिससे मैं ही खुद दुःखी हूँ ।
13 . 🌼 वचनबद्धता ही गुरुदीक्षा ------- आजतक , जब से आपलोग जन्म लिये हुए हैं , पृथ्वी पर हैं , आप अपने लिये कभी वचन नहीं दिये और दिये भी तो , तोड़ दिये हैं । 🌼
🌺 जब वचन को आप खुद ही दे कर तोड़ चुके हैं तो आपके वचन का क्या विश्वास किया जा सकता है ? आपके मंत्र का , आपके ध्यान का , आपके जाप का क्या विश्वास करें ? आप संकल्प - सिद्ध कैसे होइएगा ?🌺
जब मैंने अपने को वचन दे चुका हूँ ----- '' ऐ मैं , तुम्हें वचन देता हूँ ----- तुम्हारे साथ मैं अच्छे व्यवहार करूँगा , तुम्हे कभी मैं धोखा नहीं दूँगा , तुम्हें कभी मैं गर्त में न ले जाने का संकल्प करता हूँ , मैं वचन देता हूँ '' । जो ऐसा वचन देता है वह भगवती को वचन देता है । वह भगवान को वचन देता है । उसके वचन की बहुत कीमत होती है , मूल्यवान होता है ।
🌿उसके वचन सुनकर वह तुरन्त आते हैं , मिलते हैं । 🌿
थोड़ी - थोड़ी बात पर लोग करोड़ों , अरबों रुपयों का बिजनेस , व्यापार कर लेते हैं । थोड़ी से विश्वास के ऊपर जब यहाँ यह होता है , व्यावहारिक दुनिया में , तो वह जो भगवती की दुनिया है , भगवान की दुनिया है , वहाँ कितनी वचनबद्धता की जरूरत होती है ?
सारांश में कहे तो किसी भी प्रकार के कार्य करने के लिए आप का सम्पूर्ण भाव से उस कार्य के प्रति सौ प्रतिशत समर्पण होना चाहिए । तभी सौ प्रतिशत सफलता प्राप्त होगी ।
🌹जय श्री कृष्ण🌹
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