संस्कार व विचार B115

 


🌷  ध्यान - धारणा पर एक कथानक ! महाराजश्री के 

      श्रीमुख से 🌷

एक साधु था | वह दिन भर गंगा किनारे एक पेड़ के नीचे बैठा रहता था |जहाँ उसका आसन था उसके ठीक सामने थोड़ी दूर पर एक वेश्या का घर था | वह साधु अपने दायीं तरफ गिट्टियों से भरा एक झोला रखता था | वह दिन भर यही देखता था की कौन- कौन आदमी उस वेश्या के यहाँ जाते हैं | जब भी कोई व्यक्ति उस साधु के सामने से होकर वेश्या के यहाँ जाता था तब साधु झोले में से एक गिट्टी निकाल कर दूसरी तरफ रख देता था | मन ही मन में वह उस व्यक्ति को गाली भी देता था कि देखो इस साले को समाज में तो कितना अच्छा और साफ सुथरा दीखता है , और यहाँ इस वेश्या के कोठे पर जा रहा है | दिन भर बैठे बैठे गिट्टी को इधर से उधर करना साधु का यही काम था |

🌼 उस कोठे में रहने वाली वेश्या भी बाहर ध्यान देती थी |

वह देखती थी कि उसके घर के ठीक सामने वाले पेड़ के नीचे एक महात्मा जी बैठते हैं | वे दिन भर बिलकुल चुपचाप आसनस्थ बैठे रहते हैं किसी से कुछ बोलते नहीं बस ऐसा लगता है की जप करते रहते हैं | उस साधु को देख कर उस वेश्या के मन में बहुतअच्छे विचार उठते रहते थे | इस प्रकार दोनों ही प्राणी अपने अपने विचार के साथ अंतरतम के ध्यान में जीते थे | 🌼

🌺 साधु उस वेश्या के कलुषित जीवन के ध्यान में जीता था और वेश्या उस साधु के दिव्य जीवन की धारणा में जीती 

थी | वैसे ही दोनों के संस्कार बने |संयोग से कुछ दिन बाद उस साधु की मृत्यु हो गयी | साधु के दिव्य जीवन की धारणा करते करते वह वेश्या बहुत अच्छे विचारों का पोषण करने लगी थी | अपने अगले जीवन में वह उच्च कोटि की साधिका बनी | उस वेश्या के निकृष्ट जीवन का ध्यान करने वाला वह साधु कलुषित विचारो का पोषण करने लगा था | वह अगले जीवन में एक निकृष्ट कीट बना |🌺

🌿बंधुओं ! ऐसे संस्कार- विचार से आदमी स्वयं ही अपना जीवन बनाता और बिगाड़ता है |🌿

🌹जय श्री कृष्ण🌹

🌺परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु राम  !🌺

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