मनुष्य का जीवन B35
"मनुष्य का जीवन एकदम बीच समुद्र में किसी दुर्ग (किला) की भाति होती है , जो चारों ओर जल से घिरा होता है । तट से दूर - बीच समुद्र में खड़ा हुआ- चारों ओर खारे पानी से घिरा हुआ होता है । ज्वार - आता है , तो उमड़ती लहरें इसकी दीवारों से आ-आकर निरन्तर टक्करें मारती हैं , टक्करें मारकर इसे मिट्टी में मिला देना चाहती हैं । भाटा - आता है तो सागर की घटती हुई लहरें मानो पैर खींचकर इसे जल में बहा ले जाना चाहती हैं । समुद्र से उठनेवाला पहला बादल इसी पर बरसता है । समुद्री तूफानी हवाएँ दुर्ग की दीवारों से टकराती हैं । इन सभी मुसिबतों को झेलते हुए इसे अकेले ही खड़े रहना पड़ता है । वह भी मात्र अपने अंदर के भीतर बह रहे मीठे जल के स्रोत के आधार पर ।" प्रशांत जे के शर्मा ।। जय श्री कृष्ण ।।