Posts

Showing posts from August, 2020

मनुष्य का जीवन B35

 "मनुष्य का जीवन एकदम बीच समुद्र में किसी दुर्ग (किला) की भाति होती है , जो चारों ओर जल से घिरा होता है । तट से दूर - बीच समुद्र में खड़ा हुआ- चारों ओर खारे पानी से घिरा हुआ होता है । ज्वार - आता है , तो उमड़ती लहरें इसकी दीवारों से आ-आकर निरन्तर टक्करें मारती हैं , टक्करें मारकर इसे मिट्टी में मिला देना चाहती हैं । भाटा - आता है तो सागर की घटती हुई लहरें मानो पैर खींचकर  इसे जल में बहा ले जाना चाहती हैं । समुद्र से उठनेवाला पहला बादल इसी पर बरसता है । समुद्री तूफानी हवाएँ दुर्ग की दीवारों से टकराती हैं । इन सभी मुसिबतों को झेलते हुए इसे अकेले ही खड़े रहना पड़ता है । वह भी मात्र अपने अंदर के भीतर बह रहे मीठे जल के स्रोत के आधार पर ।" प्रशांत जे के शर्मा ।। जय श्री कृष्ण ।।

ॐ शब्द का महत्व B34

 *ॐ का महत्व * ॐ , ओउम् तीन अक्षरों से बना है,  अ उ म्  "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना,  उड़ना अर्थात् विकास,  "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना, ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। जानिए ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक  और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग... *1. ॐ और थायराॅयडः-*  ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। *2. ॐ और घबराहटः-*  अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं। *3. ॐ और तनावः-*  यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है। *4. ॐ और खून का प्रवाहः-*  यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है। *5. ॐ और पाचनः-*  ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है। *6. ॐ लाए स्फूर्तिः-*  इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है। *7. ॐ और थक...

बारिश B33

Image
    चित्त मन में हो रहा उथल पुथल बादल की गरज, बारिश की     झमाझम ने कर दिया मन में उथल पुथल । मोर की नाच ने मन     को किया प्रसन्न। तब जाकर मन हुआ प्रशांत ।                     प्रशांत जे के शर्मा     ।। जय श्री कृष्ण ।। @Copyright

श्री ८ पत्नियां (श्रीकृष्ण भगवान) B32

 जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं । श्री कृष्ण भगवान को पुष्पों में पारिजात का पुष्प अधिक प्रिय है । उसमें भी शरद ऋतु की शीतल प्रभात - पवन में ओस से भीगा पारिजात पुष्प अधिक प्रिय है ।  फलों में आम्र फल अच्छा लगता है - पका हुआ ,अधपका सिन्दूरी रंग का आम्र फल वृक्ष के सिरे पर धूप में चमकता हुआ । पक्षियों में - मृग पर्जन्य पंख । रसों में - गोरस । खाने में - दधि-मिश्रित नमक डाला हुआ । भगवान श्री कृष्ण जी के श्री आठ श्रीपत्नियों के नाम क्रमशः है- १- माँ रुक्मिणी २- माँ जाम्बवती ( आदिवासी वन कन्या ) ३- माँ सत्यभामा ( यादव कन्या  ) ४- माँ सत्या ५- माँ मित्रविन्दा ६- माँ लक्ष्मणा ७- माँ भद्रा ८- माँ कालिन्दी ( जल कन्या ) ।। जय श्री कृष्ण ।। प्रशांत जे के शर्मा 

स्वामी विवेकानंद वचन B31

Image
१- ईर्ष्या एक राष्ट्रीय पाप है । २- मैंने एक बहुत बड़ी गलती की थी दूसरे पर निर्भर रह कर जीने की । ३- कोई मदत करें इसकी अपेक्षा करना मूर्खता है । ४- सबसे बड़ा त्याग महत्वाकांक्षाओं का त्याग करना है । ५- सुख क्या है , सुख मानव जाती का चरम लक्ष्य "ज्ञान" लाभ   है । मनुष्य का अन्तिम धेय सुख नहीं वरन ज्ञान है । सुख व आनंद का तो एक न एक दिन अंत हो ही जाता है ।अतः यह मान लेना की चरम लक्ष्य सुख है । यह हमारी भूल है । " वह चरम सुख 'सुख' नही वरन "ज्ञान" है । संघर्ष के दिनों में । ।। स्वामी विवेकानंद जी ।। जय श्री कृष्ण ।। प्रशांत जे के शर्मा

अन्तः करण B30

चाँदनी रात में चन्द्रमा की ओर ताकती हुई  मैं हाथ जोड़कर कहती , ' अपनी ज्योत्स्ना की भाँति  मेरा अन्तः करण निर्मल कर दो ।'... फिर रात्रि में जब चन्द्रमा उठता , तब गंगा के स्थिर जल में उसका प्रतिबिंब देख  सजल नयनों से भगवान से प्रार्थना करती  ,  ' चन्द्रमा में भी कलंक है , पर मेरे मन में कोई दाग न रहे । ' -  श्री माँ सारदा देवी । राम कृष्ण मठ , माँ की बातें । प्रशांत जे के शर्मा ।। जय श्री कृष्ण ।।

जीवन के सफलता का मूलमंत्र B29

आप जीवन में तभी सफल होंगे जब आप अपने कार्य के प्रति जागरूक एवं ईमानदार , परिश्रमी होंगे ।आपका ' व्यवहार ' अपने साथियों के साथ अच्छा रहेगा । उन्हें आपको साथ में लेकर चलना होगा । सबसे बड़ी बात आपको अपने साथियों पर विश्वाश करना पड़ेगा । एक बात और आपको भी आपके " भाग्य " से ईमानदार परिश्रमी साथी मिले । यही आपके सफलता का रहस्य होगा ।  तो जीवन में सफल होने का मूलमंत्र है, सभी के साथ अच्छा व्यवहार , आपके जीवन में आने वाले व्यक्ति पर विश्वास करना होगा एवं साथ ही साथ आपका अपना भाग्य की कैसा व्यक्ति आप को मिलेगा ।  संक्षेप में कहें तो जीवन में सफलता का मूलमंत्र है - १- सभी से अच्छा व्यवहार । २- अपने साथियों पर विश्वास । ३- आपका अपना भाग्य । ४- आपका कर्म ( अपने कार्य  के प्रति ईमानदारी से कठिन परिश्रम करना ) । प्रशांत जे के शर्मा ।। जय श्री कृष्ण ।।

आजमगढ़ भाग - २ - B28

आजमगढ़ तीर्थों का भी स्थान है - अत्रि मुनि और सती अनसुइया के तीनों बेटे - ऋषिवर दुर्वासा , ऋषिवर चंद्रमा , ऋषिवर दत्तात्रेय ने इस शहर को अपने तप और धाम के लिए ऐसे ही नहीं चुना होगा । तीनों भाइयों ने अपने पिता व माता की आज्ञा से इसी जिले के तमसा नदी के पावन तट पर यज्ञ किया । यही नहीं , राजा परीक्षित की सर्पदंश से हुई मृत्यु के बाद इनके बेटे जनमेजय ने इसी जिले के अवंतिकापुरी में सर्प यज्ञ किया था । कहा जाता है कि सर्प यज्ञ के लिए बनाया गया हवन कुंड आज भी विशाल सरोवर के रूप में मौजूद है । मान्यता यह भी है कि भगवान शिव के मना करने के बावजूद उनकी पत्नी सती जब अपने पिता के यहां बिना बुलाए धार्मिक आयोजन में गई तो उपेक्षा होने पर हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी । गुस्साए शिव जी जब सती का शव लेकर ब्रम्हांड का चक्कर काट रहे थे तो सती के पैर का कुछ हिस्सा इस जिले के पल्हना में गिरा। इसी स्थान को पालहमेश्वरी धाम के नाम से जाना जाता है । सिखों के गुरु तेग बहादुर ने भी आजमगढ़ आना जरूरी समझा । निजामाबाद में वे बीस दिन रुके । तपस्या की। यहां पर सिखों का १४ वां हस्तलिखित धार्मिक ग्रंथ आज भी मौजूद है । ...

आजमगढ़ भाग- १ - B27

तमसा नदी के तट पर आजमगढ़ बसा है। आजमगढ़ ' आजम ' गढ़ है , बहु विधि कार्यकलापों का । नगर महान लोगों का संगम है । इसका इतिहास बेजोड़ है । ऐतिहासिक आईने में आजमगढ़ का अक्स देखने के लिए हमें पन्द्रहवीं सदी में जाना होगा । इस कालखंड में फतेहपुर के पास एक गांव में चंद्रसेन सिंह नाम के एक राजपूत थे । उनके दो बेटे सागर सिंह और अभिमन्यु सिंह हुए । इनमें अभिमन्यु मुगल सेना में सिपाही हो गया । उसकी प्रतिभा और योग्यता की चर्चा जहांगीर के दरबार तक जा पहुंची थी । उन्हीं दिनों जौनपुर के पूर्वी क्षेत्रों में कई विद्रोह हुए । इन विद्रोहों पर काबू पाने के लिए सम्राट ने इसे ही लगाया । जहांगीर के प्रेम से अभिभूत होकर अभिमन्यु सिंह इस्लाम कबूल कर दौलत खां हो गये । उन्हें जौनपुर के पूर्वी भागों के 22 परगने देकर जागीरदार बनाया गया , फिर १५०० घुडसवारों का सालार बनाकर मेहनगर राज्य का राजा बना दिया गया । शाहजहां के काल में भी दौलत खां एक सम्माननीय सिपहसालार थे । उनकी मौत कब कहां हुई , इसका कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है , पर यह जरूर पता चलता है कि वह निःसंतान थे । उन्होंने अपने भाई सागर सिंह के बड़े बेटे हरिवंश स...