अन्तः करण B30
चाँदनी रात में चन्द्रमा की ओर ताकती हुई
मैं हाथ जोड़कर कहती ,
' अपनी ज्योत्स्ना की भाँति
मेरा अन्तः करण निर्मल कर दो ।'...
फिर रात्रि में जब चन्द्रमा उठता ,
तब गंगा के स्थिर जल में उसका प्रतिबिंब देख
सजल नयनों से भगवान से प्रार्थना करती ,
' चन्द्रमा में भी कलंक है ,
पर मेरे मन में कोई दाग न रहे । '
- श्री माँ सारदा देवी ।
राम कृष्ण मठ , माँ की बातें ।
प्रशांत जे के शर्मा
।। जय श्री कृष्ण ।।
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