आजमगढ़ भाग- १ - B27

तमसा नदी के तट पर आजमगढ़ बसा है। आजमगढ़ ' आजम ' गढ़ है , बहु विधि कार्यकलापों का । नगर महान लोगों का संगम है । इसका इतिहास बेजोड़ है । ऐतिहासिक आईने में आजमगढ़ का अक्स देखने के लिए हमें पन्द्रहवीं सदी में जाना होगा । इस कालखंड में फतेहपुर के पास एक गांव में चंद्रसेन सिंह नाम के एक राजपूत थे । उनके दो बेटे सागर सिंह और अभिमन्यु सिंह हुए । इनमें अभिमन्यु मुगल सेना में सिपाही हो गया । उसकी प्रतिभा और योग्यता की चर्चा जहांगीर के दरबार तक जा पहुंची थी । उन्हीं दिनों जौनपुर के पूर्वी क्षेत्रों में कई विद्रोह हुए । इन विद्रोहों पर काबू पाने के लिए सम्राट ने इसे ही लगाया । जहांगीर के प्रेम से अभिभूत होकर अभिमन्यु सिंह इस्लाम कबूल कर दौलत खां हो गये । उन्हें जौनपुर के पूर्वी भागों के 22 परगने देकर जागीरदार बनाया गया , फिर १५०० घुडसवारों का सालार बनाकर मेहनगर राज्य का राजा बना दिया गया । शाहजहां के काल में भी दौलत खां एक सम्माननीय सिपहसालार थे । उनकी मौत कब कहां हुई , इसका कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है , पर यह जरूर पता चलता है कि वह निःसंतान थे । उन्होंने अपने भाई सागर सिंह के बड़े बेटे हरिवंश सिंह गौतम को गोद ले लिया । वह भी अपने चाचा से प्रभावित होकर मुसलमान हो गया । नतीजन , १६२९ में उसे दौलत खां की जागीर ही नहीं, राजा की पदवी भी मिल गयी । इसने मेहनगर को अपनी राजधानी बनाया लेकिन इस्लाम कुबूल करने के नाते इसकी पत्नी रत्न ज्योति कुंवर इससे अलग रहने लगी । इन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा । रानी ने हरवंशपुर कोट से मेहनगर जाने वाले रास्ते पर पड़ने वाले सेतवल गांव में ५२ एकड़ भूमि पर राजा से माफी ली और वर्ष १६२९ में यहीं आ बसी । इसे आज रानी की सराय के नाम से जाना जाता है ।
गम्भीर सिंह , राजा हरिवंश सिंह एवं रानी रतन ज्योति कुंवर के बड़े पुत्र थे । हरिवंश सिंह की मृत्यु के बाद वही मेहनगर के राजा बने । गंभीर सिंह के तीन पुत्र  - विक्रमाजीत सिंह , रुद्र सिंह , एवं नारायण सिंह थे । विक्रमाजीत सिंह अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बने । राजपाट के चक्कर में उन्होंने अपने छोटे भाई रुद्र सिंह की हत्या करवा दी । रुद्र सिंह की विधवा रानी भवानी कुंवर ने न्याय पाने के लिए औरंगजेब के दिल्ली दरबार में फरियाद की । उसकी फरियाद पर विक्रमाजीत को दिल्ली बुलवाकर जेल में डाल दिया गया लेकिन इस्लाम कुबूल करने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया । इस्लाम कुबूल करने के चलते उनकी हिन्दू पत्नी ने उनसे नाता तोड़ लिया । बाद में उन्होंने इस्लाम कबूल कर चुके चंदेल राजा की पुत्री से विवाह किया । इनसे दो बेटे - आजम खां और अजमत खां हुए । बाद में विक्रमाजीत और औरंगजेब में ठन गयी । औरंगजेब ने सेना भेजकर विक्रमाजीत को मरवा डाला । १६५० में विक्रमाजीत के छोटे भाई रुद्र सिंह की विधवा रानी भवानी कुंवर की मृत्यु हो गयी । १६६५ तक आजमगढ़ मेहनगर राज्य में पड़ता था लेकिन औरंगजेब के शासनकाल में मेहनगर राज्य दो भागों में हो गया । पश्चिमी भाग आजम खां को मिला ।उन्होंने १६६५ में आजमगढ़ शहर बसाया और इसे ही अपनी राजधानी बनाया । पूर्वी भाग अजमत खां को मिला । अजमत खां ने अजमतगढ़ बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया । आजम खां की युद्ध कला से प्रभावित होकर औरंगजेब ने उसे जयपुर के राजा जयसिंह के साथ दक्षिण में शिवाजी राजे से संधि करने के लिए भेजा । शिवाजी महाराज का दिल्ली में अपमान होने पर राजा आजम खां सम्राट से विद्रोही हो गये । अंततः औरंगजेब ने आजम खां को मरवा दिया ।
अजमत खां ने भी औरंगजेब के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया । औरंगजेब ने अजमत खां को सबक सिखाने की नीयत से इलाहाबाद के सूबेदार हिम्मत खां की अगुवाई में सेना भेजी । आजमगढ़ के बड़े पुल के पास दोनों सेनाओं में घमासान हुआ । अजमत खां पराजित हुए । अजमत खां के चार पुत्र - एकराम , मुहब्बन , न्नौबत , सरदार खां थे । अजमत खां ने चारों पुत्रों को साथ लेकर प्राण बचाने के लिए दोहरीघाट के पास घाघरा नदी में छलांग लगाई । चारों बेटे तो नदी के पार पहुँच गये पर अजमत खां की नदी में डूबने से मौत हो गयी । अजमत खां की मौत के बाद उनके बड़े पुत्र एकराम खां राजा बने । उन्होंने अपनी सेना को मजबूत किया । तथा खुद को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया । ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासनकाल में वाराणसी व गाजीपुर जिले के कुछ हिस्से को काटकर १८ सितम्बर , १८३२ को आजमगढ़ को जिले का दर्जा प्रदान किया गया ।
-  समय से संवाद 
प्रशांत जे के शर्मा.
।। जय श्री कृष्ण ।।

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