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Showing posts from October, 2020

महाजनपद युग भाग-३ B47

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  अश्मक (महाजनपद) -  अश्मक महाजनपद नर्मदा नदी , गोदावरी नदी , के बीच इसकी राजधानी 'पाटन' थी। वर्तमान में महाराष्ट्र कहते है , इसका उल्लेख बौद्ध साहित्य में मिलता है । वहीं कूर्म पुराण , बृहतसंहिता में अश्मक को उत्तर भारत का अंग माना गया है । इसके अनुसार पंजाब के समीप का क्षेत्र आता है परन्तु        राजशेखर जी ने अपनी काव्य-मीमांसा में इसकी स्थिति दक्षिण भारत में माना गया है । जिसमें महाराष्ट्र , विदर्भ , कुंतल , कांची , केरल , क्रथेशिक , सुर्पारक , चोल , पांडय , कोंकण , आदि जनपदों का समावेश बतलाया गया है ।  ।। जय श्री कृष्ण ।।        - प्रशान्त जे के शर्मा  @Copyright

महाजनपद युग भाग-२ B46

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अवंती (महाजनपद) - ६१५-६३०ई. में कहा जाता है शंकराचार्य के समकालीन अवंती-नरेश सुधन्वा ने जैनधर्म का उत्कर्ष सूचित करने के लिए प्राचीन अवंतिका का नाम उज्जयिनी कर दिया था , यह केवल कपोल कल्पना मात्र है , मध्यकाल में इस नगरी को मुख्यतः उज्जैन ही कहा जाता था । १७५०-१८१०ई. तक सिंधिया नरेशों का शासन स्थापित था और उज्जैन इनकी राजधानी थी बाद में ग्वालियर को राजधानी बनाया गया ।              आधुनिक मालवा का प्रदेश जिसकी राजधानी उज्जयिनी और महिष्मति थीं । उज्जैन मध्यप्रदेश का एक प्रमुख नगर है , प्राचीन संस्कृत में एवं पाली साहित्य में अवंति , उज्जयिनी का सैकड़ों बार उल्लेख है । पुराणों के अनुसार अवंति की स्थापना यदुवंशी क्षत्रियों द्वारा की गई थी ।महाभारत काल में सहदेव द्वारा अवंति पर विजय का उल्लेख है ।             उज्जैन में ही भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा भी हुई थी ।               ।। जय श्री कृष्ण ।।  - प्रशान्त जे के शर्मा . @Copyright               ...

महाजनपद युग भाग-१ B45

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डॉ. वासुदेवशरण का मत है कि लगभग एक सहस्त्र ईस्वी पूर्व से पांच सौ ईस्वी तक के युग को भारतीय इतिहास में जनपद या महाजनपद युग कहा जाता है l हर एक भाग में एक एक जनपद या महाजनपद के विषय में बताया जाएगा ।  अंग देश (महाजनपद) :-  अंग देश वर्तमान में बिहार राज्य के भागलपुर एवं मुंगेर जिलों का समवर्ती था । अंग कि राजधानी चंपा थी । आज भी भागलपुर के एक मुहल्ले का नाम चंपा नगर है , राजा दशरथ के मित्र लोमपद और अंगराज कर्ण ने यहाँ राज किया था । अंगदेश का उल्लेख अथर्ववेद में भी मिलता है । महाभारत काल में अंग और मगध साम्राज्य एक ही राज्य के दो भाग थे ।           मगध के राजकुमार बिंबसार अपने पिता की मृत्यु तक अंग देश के शासक भी रहे । बिंबसार ने अंगराज ब्रह्मदत्त को मारकर उसका राज्य मगध में मिला लिया था ।           महाभारत के समय जरासंघ से जीतकर अंगदेश के राजा घोषित हुए थे ,महारथी कर्ण । दुर्योधन ने महारथी कर्ण को अंगदेश का राजा घोषित किया था । ।। जय श्री कृष्ण ।।   - प्रशान्त जे के शर्मा. @Copyright

श्राप का प्रभाव B44

श्राप का प्रभाव ईश्वर तक को सहना पड़ता है - माता गान्धारी द्वारा दिया गया श्राप भगवान श्रीकृष्ण को भी सहना पड़ा था ।अब बात करते हैं - महापंडित रावण कि, इनको भी श्राप मिला था। जिसके कारण रावण भी श्राप से अछूते नहीं रहे । महाज्ञानी रावण का श्राप के ही कारण सर्वनाश हो गया ।रघुवंश भगवान श्रीराम के पूर्वज थे । उनका नाम अनरण्य था , जब रावण विश्व विजय होने निकला तो राजा अनरण्य से युद्ध हुआ।युद्ध में अनरण्य की मृत्यु हो गई परन्तु मरने से पूर्व अनरण्य ने रावण को श्राप दे दिया की मेरे ही वंश में उत्त्पन्न व्यक्ति तेरी मृत्यु का कारण बनेगा ।भगवान श्रीराम ने इसी वंश में जन्म लेकर रावण का वध किया ।  दूसरी घटना है -महाज्ञानी रावण की सगी बहन सूर्पणखा के पति का नाम विद्युत जिव्ह था । वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था । रावण जब विश्व विजय होने निकला तो कालकेय से युद्ध हुआ , इस युद्ध में रावण ने विद्युत जिव्ह का वध कर दिया । तब सूपर्णखा ने मन ही मन अपने भाई रावण को श्राप दे दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा । रामायण में हुआ भी यही सूर्पणखा ने रावण को भड़काकर युद्ध करा अपना बदला ले लिया । इसी कार...

हाय और श्राप में अंतर B43

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।। जय श्री कृष्ण ।।  -  प्रशांत जे के शर्मा  

श्री रामकृष्णदेव B42

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 यदि ईसा मसीह व बुद्ध की पूजा करने में कोई हानि नहीं है , तो इस मनुष्य ( श्री रामकृष्ण परमहंस ) को पूजने में क्या हानि हो सकती है , जिसके विचार या कर्म को अपवित्रता कभी छू तक नहीं गयी ,  जिसकी अन्तदृष्टिप्रसूत बुद्धि से अन्य पैगम्बरों - जिनमें से सभी एक देश दर्शी रहे हैं - की बुद्धि में आकाश पाताल का अंतर है ?  जिन्हें साक्षात माँ काली दर्शन दें एवं उनके हाथ से भोजन ग्रहण करें , साथ में खेल भी खेलें जब चाहें बात कर लें । वह स्वयं कोई ईश्वर के अवतार ही हैं ।  ।। जय श्री राम कृष्ण देव भगवान ।।                  -   स्वामी विवेकानंद जी @Copyright

ईश्वर दर्शन B41

 एक बार स्वामी श्रीरामकृष्ण भगवान ने अपनी पत्नी (माँ) सारदामणि को मानव - जीवन के उद्देश्य तथा कर्तव्य के सम्बन्ध में सभी प्रकार की शिक्षा प्रदान करने लगे ।इन्हीं दिनों उन्होंने पत्नी से कहा था , " जैसे चाँद मामा सभी बच्चों के मामा हैं , वैसे ही ईश्वर भी सबके अपने हैं ; सभी को उन्हें पुकारने का अधिकार है । जो भी उन्हें पुकारेगा उसे वे दर्शन देकर कृतार्थ करेंगे । तुम पुकारो तो तुम्हें भी उनका दर्शन प्राप्त होगा । "            -  जीवन की रूपरेखा पेज - ७ श्री रामानन्द चटोपाध्याय           - माँ की बातें  ।। जय श्री कृष्ण ।।            प्रशांत जे के शर्मा @Copyright

महामाया B40

 गृहिणी पेज - २४१ ( संक्षेप में ) दिसम्बर१९१८ के अन्त में एक दिन श्रीमाँ सारदा देवी अपने मायके जयरामवाटी में सदर दरवाजे पर बैठी थीं । उनके दो भाइयों में आपसी तनातनी हो गई ।बात छोटी सी थी । धान को खेत से लाने के लिए एक भाई ने रास्ता संकरा कर दिया था । दूसरे भाई ने आपत्ति जताई , दोनों भाइयों के आपसी झगड़े को श्रीमाँ ने शान्त कराया ।  फिर जब श्रीमाँ ने अपने  क्रोध को पलभर में शान्त किया तब वे सोचने लगी । क्रीड़ा भूमि के समान इस संसार के स्वार्थ - संघर्ष के पीछे जो शाश्वत शान्ति विराजमान है , वह उनके आ जाने से वे मुस्कुराकर कहने लगीं , "महामाया की कैसी माया है ! यह अनन्त संसार पड़ा हुआ है; ये वस्तुएँ भी पड़ी रहेंगी - क्या लोग इतना भी नहीं समझते ?" इतना कहकर वे हँसते - हँसते लोटपोट हो गईं , वह हँसी रोके नहीं रुकती थी ।                                              - स्वामी गम्भीरानन्द                         ...

विष्णु भगवान B39

*"पुरुषोत्तम मास"*  भगवान विष्णु के १६ नाम  इसमें मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए, इसका उल्लेख किया गया है :- (१) औषधि लेते समय - विष्णु ; (२) भोजन के समय - जनार्दन ; (३) शयन करते समय - पद्मनाभ : (४) विवाह के समय - प्रजापति ; (५) युद्ध के समय - चक्रधर ;  (६) यात्रा के समय - त्रिविक्रम ; (७) शरीर त्यागते समय - नारायण;  (८) पत्नी के साथ - श्रीधर ; (९) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद ; (१०) संकट के समय - मधुसूदन ; (११) जंगल में संकट के समय - नृसिंह ; (१२) अग्नि के संकट के समय - जलाशयी ; (१३) जल में संकट के समय - वाराह ; (१४) पहाड़ पर संकट के समय - रघुनंदन; (१५) गमन करते समय - वामन;  (१६) अन्य सभी शेष कार्य करते समय - माधव ।। औषधे चिंतयते विष्णुं , भोजन च जनार्दनम | शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजपतिं || युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं | नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे || दु:स्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् | कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम || जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् | गमने वामनं चै...