Sri.Kedarnath dham yatra B224

                 

            


🌹श्री केदारनाथ धाम यात्रा🌹

जय श्री केदार,यात्रा के प्रारम्भ में गर्म कपड़ों को खरिद लेनी चाहिए क्योंकि जीरो डिग्री से 3 डिग्री ठंडक में गर्म वस्त्र से ही काम चल पाएगा  इसके लिये जीरो डिग्री के वाले गर्म वस्त्र  की खरीददारी कर लेना चाहिए । रेलवे से यात्रा के लिए रिजर्वेशन एक माह पूर्व में कर लें , या कार टैक्सी की बुकिंग  फिर उत्तराखंड चार धाम यात्रा का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन आवेदन कर लें , यह सभी कार्य एक माह पूर्व कर लें जिससे कि कोई असुविधा न हो , अब जानते हैं कि श्री केदारनाथ जी कौन हैं ? श्री केदारनाथ से श्री बद्रीनाथ पर्वत की दूरी लगभग 33 किलोमीटर की है ,  भगवान शिव व माता पार्वती ने अपना बद्रीनाथ धाम का घर भगवान विष्णु को सौंप कर अपना नया निवास स्थान श्री केदारखण्ड पर्वत पर बनाया जो कि केदारनाथ जी के नाम से विख्यात है। इसके पीछे एक कथा है बद्री क्षेत्र में भगवान नारायण (विष्णु) एक बार इस क्षेत्र में पहुंचे तब उन्होंने ने यहाँ की सुन्दरता शांत वातावरण को देख तप करने का निश्चय कर लिया। लेकिन इन्होंने देखा कि यहाँ शिवजी का आधिपत्य है; वे देवी पार्वती के साथ यहाँ निवास करते हैं। भगवान विष्णु जान गये की यह स्थल आसानी से इन्हें नहीं मिलेगा। फिर विष्णु जी ने छोटे बच्चें का रूप धारण कर लिया और भोलेनाथ के द्वार पर हाथ-पैर मारकर रोने लगे, उसी समय शिवजी और देवी पार्वती  तप्तकुण्ड में स्नान करने जा रहे थे। जब वे भवन के बाहर निकले तो देखा की द्वार पर नन्हा सा बालक रो रहा है। माता ने ममतामय दया से भोलेनाथ से कहा बालक को घर में जगह दे देते हैं। लेकिन शिवजी समझ गये यह बालक साधारण नहीं है। शिव जी ने देवी पार्वती से कहा कि इस बालक को गोद में न लें  तुम इस बालक को न उठाओ, यह तुम्हें  झंझटों में डाल देगा । देवी ने कहा प्रभु आप तो आश्रयदाता हैं क्या आप इसे आश्रय नहीं देंगे ? शिव जी  हँसकर बोले कि हे देवी यह नन्हा बालक बहुत चमत्कारी है , यदि तुम इसे लोगी तो सब दया भूल जाओगी । यह सब जगह कब्जा कर लेगा । तुम इसके चक्कर में न फसों । पर माँ पार्वती न मानी, बोली इस बाल‌क को अवश्य आश्रय दूंगी। शिवजी मुस्कराये और सोचने लगे की होनी को कौन टाल सकता है। पार्वती जी से बोले जैसी तुम्हारी मर्जी । बालक को उठालो किन्तु बाद‌ में तुम्हें पछताना पड़ेगा। शिव जी के मना करने पर भी पार्वती जी ने बालक को अपने भवन में सुला आयीं और शिव जी के साथ तप्तकुण्ड में स्नान करने चली गयी। इनके जाते ही भगवान नारायण ने किवाड अन्दर से बन्दकर लिया। जब शिव पार्वती जी लौटकर आये तो देखा किवाड अन्दर से बन्द है। किवाड खोलने, की कोशिश की लेकिन किवाड नहीं खुला । शिव जी मुस्कराते हुए पार्वती जी से बोले - क्यों देवी ! देखी इस नन्हे बालक की चतुराई । बालक का रूप धारण करके यहाँ आने वाला और कोई नहीं स्वयं भगवान नारायण हैं। अच्छा, अब ये यहीं पर रहें, हम किसी अन्य स्थान पर रहेंगे। तब शिव-पार्वती ने यहाँ से लगभग ढाई योजन की दूरी पर केदारखण्ड पर्वत पर अपना नया निवास स्थान बनाया यहाँ शिवजी श्री केदारनाथ नाम से विख्यात हुए। दोनों स्थानों पर देवतागण छः महीने और छः महीने मनुष्यगण केदारनाथ धाम, श्री ब‌द्रीनाथ धाम में पूजा अर्चना करते हैं। माहात्म्य जानने से किसी भी तीर्थ स्थान की विशेषता हमें मालूम पड़‌ती है। दूसरी कहानी द्वापर युग से है महाभारत के युद्ध के पश्चात् ब्रम्ह हत्या, भातृ हत्या का दोष लग चुका था। तब श्रीकृष्ण भगवान के राय से हत्या दोष से मुक्ती पाने का उपाय पता चला की भोलेनाथ ही हत्या के श्राप की मुक्ती पाण्डवों को दे सकते थे। पाण्डवों ने श्रीकृष्ण भगवान के राय से शिव जी को खोजने के लिये कैलाश पर्वत पर गये परन्तु वहाँ ना पाकर पाण्डव दुःखी हुए। पाण्डवों के पुकार से श्रीकृष्ण भगवान प्रकट हुये तो उन्होंने बताया की शिवजी केदारखण्ड पर्वत पर समाधि लिये हुये है। वहाँ पर जाओ। जब पाण्डवों ने केदारखण्ड पर्वत पर कद‌म रखें तो शिवजी ने भांप लिया की पांडव यहाँ क्यों आये है एवं शिवजी पांडवों से नाराज भी थे। क्योंकी इसके दो कारण थे एक तो पाण्डवों ने अपने भाईयों की हत्या की दूसरा कौरव व उनकी माता गांधारी परम शिवभक्त थे। पाण्डवों के पास आते देख शिवजी गाय के झुण्ड में बैल का रूप धारण कर लिये इधर पाण्डव परेशान होकर शिवजी को खोजने में लगे थे। इस बीच भीम ने एक युक्ति सोची और उन्होंने अपना विकराल रूप धारण कर दोनों पैर दो पहाड़ों के बीच फैला दिया। शाम होते ही सभी जानवर अपने गंतव्य स्थान पर जाने लगे पर एक बैल भीम के पैर के नीचे से नहीं गया क्योंकी स्वयं भगवन शिव किसी के पैर के नीचे से कैसे जा सकते थे। भीम भांप गये की यहि भगवान शिव जी है। भीम ने अपना रूप साधारण कर शिव जी (बैल) के पीछे दौड़े वह बैल जमीन में समाने लगा भीम ने बैल की पीठ के हिस्से को जकड़ लिया।(यही वह स्थान है जहाँ भगवान शिव बैल के पीठ के आकार में बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री केदारनाथ जी के रूप में दर्शन दे रहे हैं), तब भगवान शिव पाण्डवों के भक्ति से प्रसन्न हुये और अपने मुल स्वरूप में पाण्डवों को दर्शन देकर पाप से मुक्त किया। तभी से केदारनाथ धाम में भगवान केदारनाथ के दर्शन मात्र से ब्रम्ह हत्या से मुक्ति व मोक्ष की प्राप्ती होती है। कैसे पहुंचे ?  देश के किसी भी कोने से हरिद्वार  पहुँचे वहाँ से कार, ट्रेवेलरबस, टैक्सी द्वारा  ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग से पहले तिलवाड़ा होते हुए  अगस्तमुनी, गुप्तकाशी, फाटा,सीतापुर, सोनप्रयाग , गौरीकुंड फिर गौरीकुंड घोड़ापडाव से चढ़ाई शुरू होती है चिरबासा, मीठापानी, जंगलचट्टी , भीमबली, रामबाड़ा, लिनचोली, छानीकैंप , श्री केदारनाथ जी तक पहुंचे। इसके अलावा गौरीकुण्ड से पैदलयात्रा के लिए घोड़े की सवारी, पिट्ठू की सवारी , पालकी की सवारी या हेलीकॉप्टर से 22 कि०मी० की चढ़ाई कर सकते है। पैदल यात्रा 4 से 5 घंटे में कर सकते है स्वास्थ को देखते हुए अधिक समय भी लग सकता है। चढ़ाई के समय खाने पीने की दुकानें रास्तेभर सजी रहती है। खाते पीते यात्रा करने से ठण्डी नहीं लगती है। मन्दिर के पास टेन्ट होटल की व्यवस्था है , भविष्य में कॉटेज भी उपलब्ध रहेंगे। ऊपर चढ़ने पर प्रवेश द्वार पर ही रजिस्ट्रेशन पास दि‌खाकर मन्दिर के दर्शन का टिकट प्राप्त करेंगे यहाँ से मन्दिर की दूरी 500 मीटर की रह जाती है। टोकन दिखाकर दर्शन कर सकते । भगवान श्री केदारनाथ के दर्शन मात्र से स्वर्ग की अनुभुति भक्तगणों को मिलती है ।  🌹जय श्री केदारनाथ।🌹

लेखक:- प्रशांत शर्मा



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