Shri.Kedar ek vritant yatra B225
श्री केदार एक वृतांन्त यात्रा
जय श्री केदार , यात्रा के एक माह पूर्व सर्वप्रथम केदारनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन उत्तराखण्ड के चारधाम यात्रा साइड पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर लिया गया। इसके बाद रेलवे का रिर्जवेशन किया गया, लखनऊ से देहरादून के लिये, आप हरिद्वार तक का भी करा सकते है। इसके पश्चात् देहरादून से श्री केदारनाथ यात्रा के लिये टैक्सी की बुकिंग चार दिनों के लिये सोलह हजार रुपये में किया गया। वैसे हरिद्वार से ही सीधा रास्ता है, हरिद्वार से- ऋषिकेश से-देवप्रयाग- से श्रीनगर से- रुद्रप्रयाग से- तिलवाड़ा-से अगस्तमुनि- से गुप्तकाशी-से सोनप्रयाग- से गौरीकुंड- से 22 कि.मी. की चढ़ाई के बाद श्रीकेदारनाथ जी का द्विव्य दर्शन प्राप्त होता है। लखनऊ में 31 मई 2024 को सुबह 3:30 पर उठकर में तैयार होने लगा। परिवार के सभी सदस्यों को मैंने जगा दिया। सभी लोग पैकिंग के साथ 4:20 तक तैयार हो कर ई-रिक्शा के माध्यम से लखनऊ रेलवे स्टेशन छोटी लाइन पर प्लेटफार्म नम्बर 6 पर पहुँच कर वन्दे भारत ट्रेन से देहरादून के लिये यात्रा आरंभ कर दिये ट्रेन में नाश्ता चाय की व्यवस्था थी। भोजन का अलग से पेमेंट किया गया। 104 कि.मी. प्रतिघण्टे की गति से ठिक 1:30 दोपहर में देहरादून स्टेशन पहुँच गये । हमारी टैक्सी का ड्राइवर उमेश पहले से स्टेशन पर खड़ा था उसी ने आठ माह पूर्व हम सभी को श्री बद्रीनाथ धाम की यात्रा करायी थी। स्टेशन से बाहर आते ही हम श्री केदारनाथ धाम यात्रा के लिये चल पड़े। देहरादून से हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग श्रीनगर, रुद्रप्रयाग से तिलवाड़ा वाले रास्ते पर मुड़ गये । शाम के 5 बज चुके थे। छः बजे तक तिलवाड़ा नामक स्थान पर पहुँच गये। अंधेरा होते देख मैंने उमेश ड्राइवर से कहा तिलवाड़ा में कोई अच्छा होटल, देखो, क्योंकी साथ में परिवार था। सबकी सुरक्षा व स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना था। होटल गौरी में दो हजार का एसी रुम मिल गया । साथ में वहाँ का स्टाफ का व्यवहार और भोजन दोनों अच्छे थे। मैं तो कहूँगा की तिलवाड़ा में जब भी कोई रुके, तो होटल गौरी में ही रुके गर्म पानी, साफ सफाई, ताजा भोजन, सब कुछ बहुत ही अच्छा था , वापसी में भी हम दुबारा इसी होटल के उसी रूम में रुके। एक जून सुबह 3.30 पर उठ कर हम सभी तैयार होकर सुबह 4.50 पर श्री केदारनाथ जी की यात्रा आरम्भ कर दिए , लगभग 90 किमी. की यात्रा तय करनी थी। सुबह अंधेरे में पहाड़ो पर बसे गाँवों के घरों की लाइटें चमक रही थी। सूर्य देव दर्शन देने वाले थे । बहुत ही सुन्दर प्राकृतिक छटा थी। अगस्तमुनी होते हुए गुप्तकाशी से फाटा पहुँचे। फाटा में ट्रैफिक जाम मिला । इसी जाम में रेनकोट, उलेन टोपी बेचने वालों से हम लोगों ने खरीददारी कर ली क्योंकी सौ रुपये में रेनकोट,उलेन टोपी मिल गई , चढ़ाई के दौरान इन्हीं वस्तुओं का दाम तिगुना महंगा हो जाता है। हर साल एक जून से सात जून तक का मौसम बहुत अच्छा रहता है। सूर्य भगवान आज सोनप्रयाग से ही चमक रहे थे। श्री केदारनाथ की कृपा बरस रही थी ।। भीड़ इतना ज्यादा था की सीतापुर से सोनप्रयाग तक पैदल यात्रा करनी पड़ी सभी गाड़ीयों को पुलिसवालों ने सीतापुर कार पार्किंग पर ही रुकवा दिया। सीतापुर से रुद्रप्रयाग लगभग दो किमी. पैदल लाइन में चलना पड़ा। फिर रुद्रप्रयाग में प्रशासन ने रजिस्ट्रेशन यात्रा का पास चेक किया फिर गौरीकुण्ड के लिये आगे जाने दिया गया , सोनप्रयाग से आगे फिर मन्दाकीनी नदी पर लोहे के पुल के ऊपर से आगे जाना पड़ा लगभग एक कि.मी. की पैदल यात्रा करनी पड़ी। पुल पार करने के बाद सरकारी टैक्सी प्रती व्यक्ति पचास रुपये लेकर गौरीकुण्ड तक यात्रियों को जाना पड़ता है। गौरीकुण्ड की यात्रा लगभग पांच किमी.की होती है यहां पर सरकारी टैक्सी ही गंतव्य स्थान तक पहुँचाती है। टैक्सी गौरीकुण्ड घोडा पड़ाव तक पहुंचा देती है। यहीं से चढ़ाई की यात्रा प्रारंभ होती है , यहां से बाइस कि.मी. की पैदल चढ़ाई या यही पर घोड़े वाले आपको अपना कार्ड देते है वही कार्ड लेकर आपको घाड़े से चढ़ना हो तो सरकारी ऑफीस से घोड़े. वाले का कार्ड जितना घोड़ा लेना हो उतना कार्ड वो देते है, उतना ही कार्ड काउण्टर पर देकर प्रती घोड़ा सरकारी फ़ीस (तीन हजार दो सौ रूपये) देकर रसीद कटा लें , और कार्ड अपने गले में टांग लें , रसीद घोड़े वाले आप से ले लेते हैं , यात्रा के पश्चात वे रसीद दिखाकर सरकारी ऑफिस से अपना फ़ीस का रुपया ले लेते हैं , वो भी उन्हें एक दिन बाद मिलता है। क्योंकी यात्री को कोई दिक्कत हो तो उन्हें वो रुपया नहीं दिया जायेगा। खैर यदि आप को पिट्ठू से जाना हो तो सात हजार, पालकी से जाना हो तो दस हजार तक देना पड़ेगा। हम सभी ने चार घोड़े कर लिये घोड़े भी अपने-अपने जोड़ा के साथ चलते हैं। ताज्जुब की बात है की यात्रा के दौरान एक घोडा पीछे रह जाय या आगे चला जाए तो वे आवाज देने लगते है या पानी पीने की जगह पानी पिकर इंतजार करते है घोड़े वाले भी अपने दूसरे घोड़े व साथी का इंतजार कर लेते है जब वे साथ में आ जाते है तभी एक साथ वे फिर से आगे बढ़ते है। यात्रा के दौरान मैंने देखा जैसे परिवार के सदस्य एक साथ चलना पसंद करते है। उसी तरह जानवर भी एक साथ अपने साथी के साथ चलना पसंद करते है। गौरीकुण्ड घोडा पडाव पर घोडे वाले ने चार घोड़ो के साथ चार सारथी दिये। ये सभी लड़के सोलह साल से बीस साल के आयु के थे व्यवहार कुशल के साथ हँसी मजाक करते हुए , चढ़ाई की यात्रा सम्पूर्ण करायी। यात्रा के आरंभ में बहुत डर लग रहा था अपने से ज्यादा परिवार के सदस्यों के सकुशल बाइस कि.मी. की चढ़ाई करने की थी। चढ़ाई के दौरान रास्ते के बीच में जंगलचट्टी नामक स्थान पर घोड़ो को पानी पिलाया गया यहाँ पर हम लोग लगभग आधे घण्टे तक रुक कर विश्वाम के साथ खाना पीना किया गया। दोपहर के लगभग दो बज रहे थे। खाने में आलू का पराठा अचार , चाय, ठण्डा , पानी ,पिया गया। आलू का एक पराठा बड़े आकार का था इसकी किमत एक सौ सत्तर रुपये थी, पर बड़ा स्वादिष्ट लग रहा था। जैसे ही लडकों ने कहा घोड़े तैयार है चलने के लिये , तभी आसमान घने बादल से घिर गया और तेज हवाओं के साथ बारिश शुरू हो गयी। मौसम के साथ यहाँ का सौन्दर्य देखते ही बन रहा था पर पहाड़ पर बारिश तेज हवाओं के चलने से डर भी लग रहा था। करीब बीस मिनट तक बारिश हुई फिर मौसम ठिक हो गया। जंगलचट्टी से आगे बढ़े तो खड़ी ऊँचाई मिलने लगी कही कहीं पर एकदम खड़ी चढ़ाई थी खड़ी उतरान थी। भीमवली, रामवाड़ा , लिनचोली होते हुए करिब शाम साढ़े पाँच बजे हम सभी लोग छानीकैंप पहुंच गये। यहाँ पर सभी घोडे वालों को सौ-सौ रुपये की बक्शीश देकर उनसे विदाई ली इन सभी ने बहुत मेहनत की थी। यहाँ से मन्दिर लगभग दो कि.मी. की दूरी पर है। । फिर पैदल यात्रा आरंभ कर 'हेलीपैड, तक पहुंचे हाल ही में एक हेलीकॉपटरकी दुर्घटना हुई थी वह हेलीकॉफ्टर ढका हुआ रख्खा था। वहाँ पर फोटो सेशन किया गया। दो सौ मीटर आगे बढ़ते ही यात्रा पास दिखाकर मन्दिर दर्शन का टिकट प्राप्त किया गया। यही पर एक पंडित जी के जान पहचान से रुद्राभिषेक पूजा के लिये बात की और मन्दिर का रसिद रुपये पाँच हजार पाँच सौ का रसीद प्राप्त किया। जैसे ही हम सभी मन्दिर के सामने पहुँचे तो विश्वास ही नहीं हुआ की जिन श्री केदारनाथ बाबा के बारे सोचते थे टी.वी. पर देखते थे वे आँखों के सामने थे। हमें आश्चर्य हो रहा था , फिर एक बार हम सभी ने फोटो सेशन किए। शाम हो रही थी पाँच डिग्री का तापमान था ठण्ड के कपडे से हम सभी ढके थे। पड़ित जी को कॉल किया गया वे आयें और एक कमरा दिलाया कमरें में रजाई दो बेड, बाथरूम सभी सुविधा से युक्त था। सभी लोग रजाई में हो लिये। मुश्कील से 15 मिनट बाद भगवान श्रीकेदार जी की आरती देखने पहुँच गए । आरती देखने के समय परिवार के सदस्यों को वीडियो कॉलींग पर दर्शन करा रहा था। तीन डीग्रीसेल्सीयस का तापमान था । ठण्डी भी चरम पर थी । श्रीकेदारजी में ऊँचाई के कारण ऑक्सीजन की कमी होती है। इसी समय बेटी भी थोड़ी सी बेहोश होने लगी। आरती के बीच में ही दुकान के किनारे एक महीला से मैंने निवेदन किया कि उसने बैठने के लिये कुर्सी दि उसी महीला के पास एक महिला डॉक्टर श्री केदार जी के कृपा से खड़ी थी , उसने दुकानदार से ऑक्सीजन सिलेण्डर लिया मैंने बेटी को ऑक्सीजन के दो पफ दिया फिर डॉक्टर ने सीने की मालीश कर पानी पिलाया श्रीमती ने बगल से चाय लाकर दिया । प्रभु की कृपा से बेटी स्वस्थ हो गयी। फिर बच्चों को खाना दिलाया गया। सभी ने कुछ न कुछ खा लिया। फिर रुद्राभिषेक दर्शन के लिये वी.आई.पी. लाइन में खड़े हो गये। रात एक बजकर तीस मिनट पर नम्बर आया। तापमान लगभग तीन डिग्री से शून्य डिग्री तक था , मन्दिर के अन्दर दर्शन करने का सौभाग्य एक स्वप्न जैसा था। माथा टेककर मन्दिर में प्रवेश किया गया एक अकाल्पनिक विचार मन में चल रहा था , द्वापर युग में क्या हुआ होगा कैसे पाण्डव यहाँ आये होंगे. श्री केदारनाथ कितने विराट रूप में दिखे होंगे, कई तरह के विचार मन में आ रहे थे दो हजार तेरह की घटना में कैसी भयंकर प्राकृतिक आपदा हुई होगी। जैसे, मन्दिर में पहुँचे सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण, भीम, अर्जुन, लक्ष्मीनारायण, द्रोपदी, युधिष्ठीर, नकुल, सहदेव सब की प्रतिमा लगी है हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियां एक लाइन से थीं ।यह मंदिर का अग्र भाग है , दूसरा भाग गर्भगृह में जाने का है जाने से पूर्व माँ पार्वती की प्रतिमा स्थापित है तत्पश्चात् परमपिता श्रीकेदारनाथ (भोलेनाथ) बैल की पीठ (शिव लिंग) बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक , के रूप में दर्शन देते हैं। यह एक अदभुत अनुभव था , जिनके बारे में सोचते थे वे आज नेत्रों के समक्ष उपस्थित थे पंडित जी ने रुद्राभिषेक कराया श्री केदारनाथ जी को अपने हाथों से देसी घी , हल्दी का लेप लगाया, बेलपत्र , अंगवस्त्र, धूप , मधु , प्रसाद , रुद्राक्ष की माला, गुलाब जल से अभिषेक, किया गया । परम सौभाग्य से लगभग 20 मिनट के दर्शन में कई बार श्रीकेदारनाथ महाप्रभु को कई बार स्पर्श करने का अवसर प्राप्त हुआ। परम आनन्द की अनुभुती हो रही थी। दिप (दिया) दिखाया गया। मन कर रहा था की यहि पर प्रभु , के सामने बैठा रहूँ। प्रदक्षिना कर के बाहर आये यहाँ पर माँ पार्वती का पूजा अर्चना पण्डित जी ने करवाया। इसके पश्चात् मन्दिर के बाहर आ गये फिर मन्दिर के पीछे जाकर पवित्र जल दो छोटे डिब्बे में भरा गया। मन्दिर के पीछे भीम शीला को प्रणाम किया गया। वापस कमरे पर आकर सो गये और दूसरे दिन सुबह मन्दिर का छः बजे बाहर से दर्शन किया गया । सभी लोग वापसी के लिये हेलिकॉफ्टर के लिये टिकट की व्यवस्था में लग गये परन्तु टिकट नहीं मिला फिर हम सभी ने पैदल उतरने का निर्णय लेकर वापसी का पैदल यात्रा आरम्भ की ऊपर पहाड़ी पर भैरोनाथ जी को प्रणाम कर यात्रा आरम्भ हुई। लगभग सुबह के सात बजे यात्रा आरम्भ किया गया। रास्ते भर में कई होटलों पर नाश्ता करते हुए नीचे उतरा जा रहा था । रास्ते के बीच में झरना, बर्फ की पहाड़ियों का आनंद लेते हुए यात्रा चल रही थी । बीच रास्ते में बेटी थक गई तो इसके लिये पिट्ठू किया गया। चार हजार रुपये में पिट्ठू वाला तैयार हुआ, गौरीकुण्ड तक तीन बजे तक पिट्ठू वाला बेटी को लेकर नीचे पहुंच गया । मैं, पत्नी, मेरा लड़का पैदल ही चल रहे थे। बेटा रास्ते भर दीदी कहाँ तक पहुंची देखता रहा झाकता रहा बहुत ही चिन्तीत था। शाम लगभग पाँच तीस पर हम सभी गौरीकुण्ड घोड़ापडाव पर पहुँचे बेटी को लेकर वापस टैक्सी द्वारा गौरीकुण्ड से सोनप्रयाग तक आये फिर सोनप्रयाग में हमारी टैक्सी आ गई , उमेश ड्राइवर से मैंने कहा की तिलवाड़ा तक चलिये फिर होटल गौरी मैं रुकेंगे। रात नौ बजे तक हम सभी होटल गौरी तिलवाड़ा पहुंच गये रात्रि विश्राम यहीं पर किया गया । सभी लोग बहुत थक गये थे। सुबह नौ बजे तक तैयार होकर आगे कि यात्रा आरम्भ की गई। इसके बाद हम सभी को देहरादून पहुँचना था , शाम को देहरादून में रोबर्स केव (सुल्तान डाकू की गुफा) घुमने पहुंचे शाम को यहाँ पर परिवार के साथआनंद लिया गया । शाम को होटल पहुंच कर विश्राम किया गया। होटल तुलसी विला ई.सी. रोड, रेस कोर्स 21/2 पर था, काफी साफसुथरा रिजनेबल रेट पर अच्छे भोजन सुविधा के साथ उपलब्ध है, यहीं पर रात्री विश्राम के पश्चात् सुबह आराम से उठकर तैयार होकर हम सब सहस्त्र धारा घूमने गये यहाँ पर सभी लोगों ने सहस्त्र धारा में स्नान किया। शाम चार बजे खरिददारी करते हुये होटल पहुँच कर खाना खाकर छः बजे शाम को रेलवे स्टेशन पहुंच गए । ट्रैन में बैठ गये सुबह ट्रेन लखनऊ पहुंची वहाँ से टेम्पो कर के घर पहुंचे नहा धोकर सब प्रसाद मन्दिर में चढ़ाया भगवान शिव, श्री केदारनाथ , धारीदेवी माता के आर्शिवाद से एक सुखद धाम यात्रा सम्पूर्ण हुई।
🌹जय श्री केदार 🌹
लेखक :- प्रशांत जे के शर्मा
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