DEV BHUMI UTTRAKHAND B223



आज वर्तमान काल कलयुग में  बद्रीनाथ धाम , केदारनाथ धाम ,  गंगोत्री धाम , यमुनोत्री धाम के दर्शनों के लिए इतनी भीड़ क्यों है , ऊँचाई के साथ दुर्गम रास्ते , और कहीं कहीं पर ऑक्सीजन की कमी ,ठंडी ,बारिश,तेजधूप, भूस्खलन को देखते हुए भी लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर पवित्र देवभूमि उत्तराखंड के चारधाम की यात्रा क्यों करते हैं  , एक तो कहावत है कि स्वर्ग की हवा (शुद्ध वातावरण) चाहिए तो देवभूमि उत्तराखंड चार धाम की यात्रा पर चलिए । जो कि मनुष्य के आयु को बढ़ाता है और निरोगी काया कल्प मनुष्य को उत्तराखंड की पावन भूमि हमें देती है तो आइये जानते हैं इसके महात्म्य को हिमालय पांच खंडों बटा है इनमें नेपाल, कुर्मांचल, कुमायूं, केदारखंड, जालंधर, कश्मीर हैं । इसमें उत्तराखंड के केदारखण्ड में बद्री क्षेत्र की रमणीय पर्वत श्रेणियां, कल- कल बहती भगवती गंगा अलकनंदा का मनोरम छटा देखते ही बनता है । बद्रीनाथ से लगभग 33 किलोमीटर की दूरी पर दूसरे पर्वत पर भगवान शिव व माता पार्वती ने अपना बद्रीनाथ धाम का घर भगवान विष्णु को सौंप कर अपना नया निवास स्थान श्री केदारनाथ धाम केदारखण्ड पर्वत पर बनाया जो कि केदारनाथ के नाम से विख्यात हैं । बात करते हैं श्री बद्रीनाथ धाम की , श्री बद्रीनाथ धाम के दर्शन मात्र से भक्त को उसे माता के गर्भ में दुबारा नहीं आना पड़ता और भगवान श्री विष्णु उन सब भक्तों की मनोकामना सम्पूर्ण करते हैं । वहीँ श्री केदारनाथ धाम के दर्शन मात्र से ब्रम्ह दोष से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होती है । महाभारत युद्ध के पष्चात पाचों पांडवों को भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति केवल भगवान शिव ही आप सभी को मुक्त कर सकते हैं तब भीम व पांडवों  ने भगवान शिव का आशिर्वाद यहीं पर पाकर मोक्ष को प्राप्त हुए थे । भगवान शिव का घर बद्रीनाथ धाम में था परन्तु भगवान श्री विष्णु के चाहने से उन्हें सौप कर केदारनाथ धाम में जा बसे थे । इस कारण बद्रीनाथ धाम में दर्शन के समय ॐ नमः शिवाय बोलते हैं और केदारनाथ धाम में दर्शन के समय ॐ विष्णुदेवाय नमःबोलते हैं क्योंकि की विधाता (श्री विष्णु) के लिखन्त के कारण केदारनाथ धाम में भगवान शिव व माँ पार्वती को यहाँ पर आना पड़ा जिसके कारण स्वर्ग की हवा मनुष्य जाति को आसानी से प्राप्त हो गई एवं ब्रम्ह हत्या से मुक्ति का उपाय भी मनुष्य जाति को प्राप्त हुआ है ।दोनों धाम में दर्शन के समय दोनों मंत्र बोलने से दोनों ईश्वर के आर्शीवाद भक्तों को समान रूप से मिलता है एवं मोक्ष की प्राप्त होती है । बद्रीनाथ मन्दिर के बारे में मुख्य कहावत है, जो जाये बद्री वो ना आए औद्री अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ जी के एक बार दर्शन कर लेता है, उसे माता के गर्भ में दुबारा नहीं आना पड़ता। बद्रीनाथ मन्दिर की मान्यता है कि जो भी व्यक्ति बद्रीनाथ के दर पर आता है, उन सब भक्तों की मनोकामना सम्पूर्ण होती है। बद्रिकाश्रम- प्राचीन शिवभूमि श्री बद्रीविशाल मन्दिर में तप्तकुण्ड के बाई ओर भगवान आदि केदारेश्वर का मन्दिर है। बद्रिकाश्रम में आदि केदारनाथ का मन्दिर होने के संबंध में पौराणिक कथा है। (स्कंध पुराण के केदारखण्ड नामक भाग में बद्रिकाश्रम को शिवजी का प्राचीन निवास कहा गया है।) इसका प्रत्यक्ष प्रमाण श्री बद्रीधाम के समीप श्री आदिकेदार के मन्दिर का होना है।

"श्री तत्र केदाररूपेण ममलिंग प्रतिष्ठितम्। केदार दर्शनात् स्पर्श दर्शनात् भक्तिभावतः॥ कोटि जन्मकृतंपापं भस्मी भवति तत्क्षणात्। कलामात्रेण तिष्ठामि तत्र क्षेत्रे विशेषतः ॥"

 (स्क.पु. व 2 अ.13-14 श्लोक) जब भगवान नारायण तप करने का निश्चय कर यहाँ आये तो उन्होंने देखा कि यहाँ शिवजी का आधिपत्य है, वे देवी पार्वती के साथ यहाँ निवास करते हैं। भगवान समझ गये कि यह शिवजी का निवास स्थल है और वे सरलता से यह स्थल नहीं देंगे। अतः उन्होंने युक्ति से काम लिया और वे नन्हें शिशु का रूप धारण करके शिवजी के द्वार पर हाथ-पैर मारकर रोने लगे, उस समय शिवजी देवी पार्वती के साथ तप्तकुण्ड में स्नान करने जा रहे थे। जब वे अपने भवन से बाहर निकले तो देखा द्वार पर नन्हा शिशु व्याकुल होकर रो रहा है। नन्हें शिशु को रोता देखकर देवी पार्वती का वात्सल्य जागा, ममतामय दया और प्रेम से परिपूर्ण होकर उन्होंने शिशु को उठा, लिया परन्तु शिवजी समझ गए कि यह बालक साधारण नहीं है। उन्होंने देवी पार्वती को शिशु को गोद में लेने से मना किया। वे उपेक्षा से बोले- "हे देवी! तुम इस बालक को न उठाओ, तुम्हें इन झंझटों से क्या मतलब? यह तो संसार है, कोई हँसता है तो कोई रोता है। यह शिशु जिसका पुत्र होगा वह इसे ले जाएगा। आओ हम चलें, स्नान में विलम्ब हो रहा है।" परन्तु दया से परिपूर्ण हृदय वाली मां, जननी भला कब मानने वाली थी। उन्होंने बड़ी दीनता से कहा- "हे! नाथ! क्या आपमें थोड़ी भी दया नहीं? देखिए तो, कैसा सुन्दर शिशु है, यह ठण्ड से व्याकुल है। क्या संसार के आश्रयदाता आप इसे आश्रय न देंगे?" पार्वती के उलाहना से भरे दया मिश्रित स्वर को सुनकर शिवजी हँसकर बोले- "हे देवी ! यह नन्हा शिशु बहुत चमत्कारी है। अगर तुम इसे लोगी तो सब दया भूल जाओगी। यह सब जगह कब्जा कर लेगा। तुम इसके चक्कर में न फँसो।" पर भला पार्वती जी कहाँ मानने वाली थीं। वे बोली- 'नही भगवन् ! चाहे जो हो मैं तो इस शिशु को आश्रय अवश्य दूंगी।' उनकी बात सुनकर शिवजी मुस्कराये और सोचने लगे ईश्वर की इच्छा को कौन मिटा सकता है और पार्वती से बोले- 'तुम्हारी मर्जी। उठा लो, किन्तु बाद में तुम्हें पछताना पड़ेगा।' शिवजी के मना करने पर भी पार्वती जी नहीं मानीं। वे शिशु को अपने भवन में सुला आयीं और शिवजी के साथ स्नान करने तप्तकुण्ड चली गयीं। उनके जाते ही भगवान नारायण ने किवाड़ अन्दर से बन्द कर दिये। जब शिव-पार्वती जी लौटकर आये तो देखा किवाड़ अन्दर से बन्द हैं। उन्होंने किवाड़ खोलने की चेष्टा की परन्तु किसी प्रकार भी किवाड़ खोलने में असमर्थ होने पर शिवजी मुस्कराते हुए देवी पार्वती से बोले- 'क्यों देवी ! देखी इस नन्हें बालक की चतुराई। शिशु का रूप धारण करके यहाँ आने वाला और कोई नहीं स्वयं भगवान नारायण हैं। अच्छा, अब वे यहीं रहें, हम किसी अन्य स्थान पर रहेंगे।' तब शिव- पार्वती जी ने यहाँ से लगभग ढाई योजन की दूरी पर दूसरे पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया। वहाँ शिवजी 'श्रीकेदारनाथ' नाम से विख्यात हुए। दोनों स्थानों पर देवता गण छः महीने और छः महीने मनुष्य श्री केदारनाथ धाम , श्री बद्रीनाथ धाम में पूजा अर्चना करते हैं । ईश्वर चारों धाम में वर्तमान में भी जागृत रूप से विराजमान हैं , यहीं कारण है कि उत्तराखंड के देवभूमि पर दर्शन के लिए आज इतना उत्साह है और ये उत्साह दिनों दिन लाखों की संख्या में बढ़ती ही जा रही है । 🚩जय बद्रीविशाल जय केदार🚩

राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र स्पष्ट आवाज़ 24 मई 2024 चार धाम यात्रा का उत्साह । लेखक :- प्रशांत शर्मा




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