MSP-Minimum Support Price B221

एम.एस.पी. पर क्यों किसान आंदोलन कर रहे हैं ?

किसानों की मांग है कि MSP को नये कृषि कानून 2020 में जगह दी जाए ।

न्यूनतम समर्थन मूल्य MINIMUM SUPPORT PRICE (MSP)  एक न्यूनतम मूल्य है जो केंद्र सरकार द्वारा किसानों के लिए लाभकारी समझी जाने वाली किसी भी फसल के लिए निर्धारित किया जाता है। एम.एस.पी. एक प्रकार का बाजार हस्तक्षेप है जिसका उपयोग भारत सरकार द्वारा किसानों को कृषि कीमतों में भारी गिरावट से बचाने के लिए एक बीमा के रूप में किया जाता है। यदि अत्यधिक उत्पादन और बाजार में अधिकता के कारण वस्तु का बाजार मूल्य घोषित न्यूनतम मूल्य से कम हो जाता है तो सरकारी एजेंसियां किसानों द्वारा उत्पादित फसलों को निर्धारित न्यूनतम मूल्य पर खरीद लेती हैं। यह सरकारी संस्थाओं द्वारा एक निश्चित फसल खरीदने पर भुगतान की जाने वाली राशि भी है। खरीद मूल्य वह मूल्य है जिस पर फसल खरीदी जाती है। एम.एस.पी. की घोषणा फसल बुआई से पहले की जाती है जबकि खरीद मूल्य का निर्धारण फसलों की कटाई के बाद किया जाता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पहली बार केंद्र द्वारा 1966-67 में स्थापित किया गया था। पहली बार गेहूं का एमएसपी 54 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था। वर्तमान में 23 फसलों में 7 अनाज जैसे धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ और रागी, चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर जैसे 5 दालें, 7 तिलहन (मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, कुसुम, नाइजरके बीज) और 4 व्यावसायिक फसलें जैसे खोपरा, गन्ना, कपास और कच्चा जूट शामिल हैं। किसान जिन तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं, वे ये हैं- 1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020, 2. कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020, 3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020, किसान तीन कृषि बिलों (कानून) से नाखुश हैं क्योंकि उनमें से किसी में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य  MSP (Minimum Support Price ) शामिल नहीं है। सरकार द्वारा प्रस्तावित तीन कृषि कानूनों का एम.एस.पी. के साथ कोई संबंध नहीं है। सरकार को इस तथ्य से लाभ हुआ कि भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून द्वारा संरक्षित नहीं है। किसान अपने उत्पादों को निजी निगमों सहित किसी भी संगठन को बेचने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्होंने एम.एस.पी. पर सरकार से औपचारिक प्रतिबद्धता की मांग की है क्योंकि उन्हें चिंता है कि एक निगम के बिना एम.एस.पी. का दुरुपयोग शुरू हो जाएगा। एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) की मंडियों के साथ साथ निजी कंपनियों को भी किसानों के साथ अनुबंधीय खेती, खाद्यान्नों की ख़रीद और भंडारन के अलावा बिक्री करने का अधिकार होगा.विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों को इस बात की आशंका है कि सरकार किसानों से गेहूं और धान जैसी फसलों की ख़रीद को कम करते हुए बंद कर सकती है और उन्हें पूरी तरह से बाज़ार के भरोसे रहना होगा. किसानों को इस बात की आशंका भी है कि इससे निजी कंपनियों को फ़ायदा होगा और न्यूनतम समर्थन मूल्य के ख़त्म होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी. इन क़ानूनों के तहत किसान अपने कृषि उत्पादों की ख़रीद बिक्री एपीएमसी मंडी से अलग खुले बाज़ार में भी कर सकते हैं. किसान इसी मुद्दे पर सबसे ज़्यादा विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि अगर वे एपएमसी की मंडियों से बाहर बाज़ार दर पर अपना फसल बेचते हैं तो हो सकता है कि उन्हें थोड़े समय तक फ़ायदा हो लेकिन बाद में एम.एस.पी. की तरह निश्चित दर पर भुगतान की कोई गारंटी नहीं होगी. प्रदर्शन कर रहे किसानों को इस बात की आशंका भी है कि इन क़ानूनों के रहते हुए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाएगा. हालांकि सरकार का कहना है कि 'कृषि क़ानून एमएसपी सिस्टम और एपीएमसी मंडियों को प्रभावित नहीं करते हैं'. नए क़ानूनों के तहत अनुबंधीय खेती को मंजूरी दी गई है. यानी अब किसान थोक विक्रेताओं, प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज और प्राइवेट कंपनी से सीधे अनुबंध करके अनाज का उत्पादन कर सकते हैं. इसमें फसल की क़ीमत पर बात तय करके अनुबंध किया जा सकता है. सरकार का दावा है कि इस प्रावधान से किसानों को पूरा मुनाफ़ा होगा, बिचौलियों को कोई हिस्सा नहीं देना होगा. लेकिन किसान अनुबंधीय खेती का विरोध कर रहे हैं. इसको लेकर किसानों की दो प्रमुख चिंताएं हैं- पहली चिंता तो यही है कि क्या ग्रामीण किसान निजी कंपनियों से अपने फसल की उचित क़ीमत के लिए मोलभाव करने की स्थिति में होगा? और दूसरी चिंता, उन्हें आशंका है कि निजी कंपनियां गुणवत्ता के आधार पर उनके फसल की क़ीमत कम कर सकते हैं, ख़रीद बंद कर सकते हैं. भले ही एम.एस.पी. दशकों से मौजूद है लेकिन किसी भी कानून में एम.एस.पी. की धारणा का उल्लेख नहीं है । सरकार साल में दो बार MSP की घोषणा करती है किंतु इसके लिए कोई आवश्यक कानून उपलब्ध नहीं है । सरकार के लिए एम.एस.पी. पर फसल खरीदने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है और ना ही निजी व्यपारियों को भी बाध्य कर सकते हैं । नए क़ानूनों की मदद से सरकार ने दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा चुकी है. निजी कंपनियों के आने से सरकार अनाज की ख़रीद कम कर सकती है या बंद कर सकती है, इस आशंका के चलते ही पंजाब के किसानों ने इन क़ानूनों के विरोध में  प्रदर्शन शुरू कर रहे हैं । हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि एम.एस.पी. को समाप्त नहीं किया जाएगा और सरकारी ख़रीद भी जारी रहेगी. लेकिन सरकार यह भरोसा लिखित में देने को तैयार नहीं है ।

हिंदी दैनिक राष्ट्रीय समाचार पत्र स्पष्ट आवाज़ , 15 फरवरी 2024 , लेख:- एम. एस. पी. पर किसान आंदोलन क्यों ? लेखक:- प्रशांत शर्मा







लेख :- प्रशांत शर्मा 




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