Importance of Temple B217


मन्दिर का महत्व :-

भगवान् ( ईश्वर, देवता , ऋषि , संत गण ) का मन्दिर इस कलियुग और दिन-प्रतिदिन के जीवन के व्यस्त भौतिक संसार में ध्यान और भक्ति  द्वारा मनुष्य के विकास व मोक्ष हेतु महान् अवसर उपलब्ध कराता है। स्वामी शिवानन्द ने कहा है कि मन्दिर का परिसर इतना पवित्र होता है और शान्ति प्रदान करता है जो और किसी वातावरण में नहीं मिल सकती। सम्पूर्ण क्षेत्र में दिव्य तरंगें होती हैं। दिन के तीनों कालों में नियमित पूजा, वेदों के पवित्र विशेष मन्त्रों के उच्चारण से मन्दिर का मंगलकारी वातावरण दिन-प्रतिदिन श्रेष्ठ और श्रेष्ठ होता जाता है और यह मानव की आत्मा को बहुत ऊपर उठा देता है। मनुष्य जिस शांति की खोज में लगा है उसका प्रारम्भिक चरण यही से प्रारम्भ होता है । वह मन्दिर जहाँ परमेश्वर की प्रतिमा स्थापित है, वह एक पवित्र स्थान है और यह एक शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रभाव फैलाता है जो लोगों के मनों को उच्चतम पवित्रता की स्थिति में रूपान्तरित कर देता है। प्रार्थना, जागरण, अभिषेक और अर्चना के द्वारा मन्दिर में जो नित्य पूजा की जाती है, वह सारे वातावरण को पवित्रता तथा वैभव से युक्त कर देती है और जब मन्दिर में प्रवेश करते हैं, तो यह सबके मन में पूज्य भाव, करुणा और भक्ति की भावना उत्पन्न करती है। लेकिन मन्दिर में देवता की पूजा के लिए जो नियम हैं, उनका पालन, आन्तरिक और बाह्य दोनों पवित्रता बनाये रखना अत्यावश्यक है। मन्दिर की पवित्रता का सावधानीपूर्वक ध्यान रखना आवश्यक है। मंदिर में शांति बनाई रखी जाती है जिससे कि मन शुद्ध होता है । मन्दिर भगवान् के विराट् स्वरूप शरीर का दृश्यमान प्रस्तुतिकरण है और मन्दिर में किये जाने वाले पूजा के कृत्य आध्यात्मिक साधना की सम्पूर्ण विधि को व्यक्त करने की वास्तविक क्रियाएँ हैं। जिस अन्तर्यामी ईश्वर की मन्दिर में पूजा की जाती है, जिसने इस ब्रह्माण्ड को व्याप्त किया है, मन्दिर उसी ईश्वर का लघु प्रतिरूप है। श्रुतियों के, स्मृतियों और तन्त्रों के शक्तिशाली मन्त्रों द्वारा भगवान् का आह्वान किया जाता है और मन्दिर में मूर्ति देवत्व की शक्ति का प्रकट स्वरूप बन जाती है और यह समर्पित अर्चक की योग्य जिज्ञासा को पूर्ण करने में समर्थ होती है। सर्वशक्तिमान् के प्रति प्रेम के विकास हेतु अर्चना सरलतम और सुरक्षित साधन है। इसके लिए यह ईश्वर और संसार के मध्य एक सेतु का कार्य करती है। अर्चना भक्ति की यह विशेषता है कि यह भक्तिपूर्वक अर्पित किये जाने वाले भौतिक साधनों (जो कि ईश्वर का ही प्रकट रूप हैं) के द्वारा मनुष्य में धार्मिक चेतना के सूक्ष्म रूपों का आह्वान करने का प्रयास करती है। अर्थात् अर्चना वह नींव है जिस पर आध्यात्मिक प्रयत्न और साक्षात्कार का भव्य प्रासाद खड़ा होता है। भगवान् की पूजा प्रबल आस्था और लालसा के साथ करें। भगवान् अवश्य ही आप पर कृपा करेंगे। वे सभी धन्य हैं जिनके कारण मन्दिर बना, जिन्होंने मन्दिर का निर्माण किया, जिन्होंने इसमें सहायता की, जो इसमें पूजा करते हैं, जो स्वयं इसके सामने आस्था से नमन करते हैं तथा इसमें स्थित ईश्वर को लगन और प्रेम से सजाते हैं। भगवान् सर्वत्र हैं और वे सभी प्राणियों के प्रति अपनी करुणा के कारण भक्तों के लिए स्वयं मंदिर में उपस्थित रहते  हैं। जब मनोकामनाएं सम्पूर्ण होती है ,शांति मिलती है तब हमें इसका अनुभव होता है । 

जय श्रीराम🚩जय श्रीकृष्ण🚩

लेख:-  प्रशांत शर्मा




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