Glory of prasad B215









प्रसाद की महिमा :-

प्रसाद वह है जो शान्ति प्रदान करे । कीर्तन, पूजा, हवन और आरती में भगवान् को बादाम, किशमिश, दूध, मिठाइयाँ और फल आदि अर्पित किये जाते हैं, वे भगवान् को अर्पित करने के पश्चात् घर के सदस्यों या मन्दिर में भक्तों के मध्य वितरित कर दिये जाते हैं। बिल्व-पत्र, पुष्प, तुलसी, विभूति आदि से पूजा की जाती और बाद में इन्हें प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है । भस्म भगवान् शिव का प्रसाद है। यह मस्तक पर लगायी जाती है और थोड़ी खायी जाती है। कुंकुम श्री देवी या शक्ति का प्रसाद है। इसे दोनों भौंहों के मध्य (आज्ञा या भ्रूमध्य) में लगाते हैं। तुलसी भगवान् विष्णु, राम या कृष्ण का प्रसाद है। इसे खाते हैं। ये सभी पूजा और हवन के समय बोले जाने वाले मन्त्रों से गुप्त शक्तियों से आवेशित हो जाते हैं । भोग अर्पित करने वाले भक्त का भगवान् के प्रति जो मानसिक भाव होता है, उसका सर्वाधिक प्रभाव होता है। यदि कोई लगनशील ईश्वर का भक्त भगवान् को कुछ अर्पित करे और वह प्रसाद लिया जाये, तो यह नास्तिक लोगों के मन पर भी बड़ा प्रभाव डालता है और उन्हें परिवर्तित कर देता है। प्रसाद से की कृपा प्राप्त होती है ।) नारद का चरित्र पढ़िए । आप भगवान् के प्रसाद तथा उच्च साधकों और सन्तों की महानता को जान जायेंगे। यदि सच्चे हृदय से भगवान् को भोग अर्पित किया जाये, तो भगवान् मानव-रूप धारण कर उसे ग्रहण करते हैं। नामदेव ने भगवान् को चावल आदि का भोग लगाया और प्रभु ने नामदेव के साथ ही उसे ग्रहण भी किया। अन्य स्थितियों में प्रभु अर्पित भोज्य पदार्थों के सूक्ष्म सार को ग्रहण करते हैं और बचा हुआ भोजन प्रसाद होता है। जब महात्माओं और निर्धनों की भोजन कराया जाता है, तो शेष बचे भोजन को प्रसाद की भाँति लिया जाता है। (जब यज्ञ किया जाता है, तो इसमें भाग लेने वाले प्रसाद को आपस में बाँट लेते हैं। यह भगवान् का आशीर्वाद प्रदान करता है । जब ( राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि ( पुत्र की कामना से) यज्ञ कराया, तो अग्नि भगवान् ने उन्हें खीर से भरा एक पात्र प्रसाद रूप में दिया, जिसे राजा ने अपनी रानियों को दे दिया । इसे ग्रहण करने के बाद वे गर्भवती हो गयीं बाद में उन्हें श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न पुत्र रूप में प्राप्त हुए । प्रसाद भक्त के लिए अत्यन्त पवित्र वस्तु होता है ।  प्रसाद ग्रहण करने में समय, स्थान और स्थिति का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। प्रसाद सदा शुद्ध करने वाला है।  प्रसाद और चरणामृत से प्राप्त होने वाले लाभों का वर्णन करना सम्भव नहीं है। उनमें मनुष्य के जीवन के प्रति दृष्टिकोण को पूर्णतया परिवर्तित करने की सामर्थ्य होती है ।(प्रसाद और चरणामृत में रोग-मुक्ति तथा यहाँ तक कि मृत व्यक्ति को जीवन प्रदान करने की सामर्थ्य होती है। हमारी पवित्र भूमि में पूर्व-काल में ऐसी अनेक घटनाएँ हुई हैं जो प्रसाद की शक्ति और प्रभाव की साक्षी हैं। प्रसाद समस्त दु:खों और पापों का नाश करता है । यह कष्टों, दर्द और चिन्ता की अचूक औषधि है । इस वाक्य की प्रामाणिकता के परीक्षण हेतु पूर्ण आस्था का होना सबसे अधिक आवश्यक है। आस्थाविहीन लोगों में इसका अत्यन्त कम प्रभाव होता है। जो आधुनिक शिक्षा और संस्कृति में पले-बढ़े हैं, वे प्रसाद की महिमा को विस्मृत कर बैठे हैं। बहुत से अँगरेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति उस प्रसाद का महत्त्व भी नहीं समझते जो उन्हें किसी महात्मा से प्राप्त होता है । यह गम्भीर भूल है। प्रसाद महान् शुद्धिकारक है। चूँकि वे पश्चिमी लोगों की भाँति जीवन जीते हैं और वे पश्चिमी लोगों के भावों का अनुकरण करते हैं, इस कारण वे प्राचीन काल के ऋषियों की सच्ची सन्तानों के स्वभाव को भूल गये हैं। एक सप्ताह तक वृन्दावन या अयोध्या या वाराणसी अथवा पण्ढरपुर में निवास कीजिए, आप प्रसाद के महत्त्व और अद्भुत प्रभावों को पहचान लेंगे।(प्रसाद से बहुत से असाध्य रोग ठीक हो गये) बहुत से लगनशील भक्तों को प्रसाद मात्र से आश्चर्यजनक आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हुए। प्रसाद रामबाण औषधि है। प्रसाद आध्यात्मिक रसायन है। प्रसाद भगवान् की कृपा है। प्रसाद सबकी औषधि है। प्रसाद शक्ति का साकार रूप है। प्रसाद प्रकट रूप में देवत्व है। प्रसाद शक्ति का संचार करता, प्राण डाल देता है, स्फूर्ति प्रदान करता है और भक्ति अनुप्राणित करता है। प्रसाद सभी को उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु, शान्ति और समृद्धि प्रदान करता है। प्रसाद की महिमा महान् है जो शान्ति और आनन्द का दाता है। धन्य हैं प्रसाद के भगवान् जो अमरता और स्थायी आनन्द के दाता हैं। 

जय श्री कृष्ण जय जगन्नाथ महाप्रभु 🙏🚩

प्रशांत जे के शर्मा (लेख) 21 जनवरी 2024 , राष्ट्रीय हिंदी समाचार पत्र स्पष्ट आवाज़ ।





Comments

Popular posts from this blog

don't(Curse) श्राप ना दें ? B227

Sri.Kedarnath dham yatra B224

JOURNEY OF SHRI JAGANNATH DHAM PURI B183