कुंडेश्वर धाम B212
श्री कुंडेश्वर धाम (सिद्धतीर्थ अतिप्राचीन तपस्थली)🚩
श्री कुंडेश्वर धाम में पाताल से स्वयं भू-प्रकट महाशिवलिंग अपने प्राकृतिक रूप में स्थापित है । किंवदन्ती है कि चावल-चावल भर प्रतिवर्ष शिवलिंग का आकार बढ़ता है । शास्त्रसम्मत और लोकमत के अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी दन्तकथाओं लोक धारणाओं से श्री कुंडेश्वर धाम कि कहानी बाणासुर राक्षस से भी सम्बंधित है । कई विद्वानों का मत है कि 'केदारनाथ से दक्षिण में एक सौ किलोमीटर की दूरी पर स्वामी कार्तिकेय की जन्म स्थली माना जाने वाला स्थान रुद्रपुर (शोणितपुर /तेजपुर) जगह दानयेन्द्रवलि के ज्येष्ठ पुत्र बाणासुर ने जन्म ले तपस्या से भगवान् शिव (केदारनाथ) को प्रसन्न कर अपनी अभिलाषा की –“काश में सुन्दर, विपुल बाहुओं से युक्त वीर बनकर सदैव शिव के समीप ही विहार करूँ.. माँ पार्वती का पुत्र कहाऊँ, मेरी ध्वजा मयूरांकित हो और मैं अजर-अमर हो सकूँ... इसके अनुसार एक सहस्र भुजाएँ वरदान में प्राप्त कीं... 'ध्वजा की रक्षा करते हुए बाण, माता कोटरा, पत्नी लोहित, पुत्र-पुर ,इंद्र , दमन... आदि तथा भ्राता कुम्भनाद ...आदि को साथ लेकर ३१४० ई० पू० (आज से लगभग ५१४० वर्ष पूर्व) मध्यदेश में जामनी नदी के तट पर अपने नाम का नगर बसा, ध्वजा को स्थापित कर रहने लगा। जो आज भी बाणपुर (बानपुर) के नाम से प्रसिद्ध है। ... काल निर्धारण हेतु यथार्थ अभिलेख, वेद-पुराण, इतिहास, शिलालेख आदि ही साक्ष्य होते हैं। किन्तु विडम्बना तो यह है कि पुराण एवं इतिहास में वर्णित तथ्यों में समानता नहीं है और दृश्य और श्रव्य जनश्रुतियों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती।(अस्तु – बाणासुर - पार्थिव पूजन करते समय दैनन्दिन पाँच सौ अंजलि जल से अभिषेक किया करता था, तब उस समय नदी का प्रवाह रुक जाने से आने-जाने का मार्ग बन जाता था। अतः वह स्थान – जामनी नदी में वाणघाट (बाँड़ा घाट) के नाम से प्रसिद्धि पा गया। ) अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग की ही भाँति भगवान् शिव(केदारनाथ) परम भक्त-बाणासुर की अर्चना से संतुष्ट हो स्वयं-भू ज्योतिर्लिंग के रूप में यमविड़ार (जमडार) नदी के तट पर प्रकट हुए। श्री कुण्डेश्वर भगवान् के प्राकट्य के बारे में आज भी यहाँ का 'लोक' पुरखों से सुनते हुए दन्तकथाएँ एवं जन-श्रुतियों में बहुत कुछ कहने में समर्थ है। सर्वाधिक प्रचलित दन्तकथा में कहा गया है कि–“बाणासुर इसी खैराई के उस ओर जामनेर नदी के किनारे वानपुर में रहता था। उसकी राजकुमारी ऊषा नित्य ही रात्रि में जामनेर को पार करके इस खैराई (खदिरवन) के भयावह मार्ग से यहाँ आती थी। यहाँ जमड़ार (यमदंष्ट्रा) नदी ने एक गहरा कुण्ड बनाया था। इस कुण्ड का पानी दो फाड़ होकर फट जाता और ऊषा को कुण्ड के भीतर प्रवेश हेतु मार्ग बन जाता था। एक बार ऊषा के पिता बाणासुर ने अपनी पुत्री का पीछा किया, परन्तु वह कुण्ड में प्रवेश नहीं कर सका। वह पूरी रात अपनी कन्या ऊषा के वापस आने की प्रतीक्षा इस कुण्ड के किनारे करता रहा। प्रातः ब्राह्म मुहूर्त्त में जब ऊषा कुण्ड से बाहर आई, तो उसने अपने पिता को वहाँ खड़े देखा। पिता-पुत्री में परस्पर स्वाभाविक वार्तालाप हुआ और तब बाणासुर को यह विदित हुआ कि आदि देवों में महादेव - शिव इसी कुण्ड के भीतर निवास करते हैं। राजकुमारी ऊषा शिवाराधन हेतु नित्य कुण्ड के भीतर आती-जाती है। तो बाणासुर ने भी वहाँ एक पैर पर खड़े होकर कठिन तप किया। अन्त में शिव प्रसन्न होकर बाणासुर को दर्शन देने स्वयं कुण्ड से बाहर आकर शिवलिंग रूप में प्रकट हुए। तभी से इस शिवलिंग का पूजन प्रारम्भ हो गया । भू-गर्भशास्त्रियों के मतानुसार इस शिवलिंग की वैज्ञानिक शोध करने पर शिवलिंग की आयु पांच दस हजार वर्ष पुराना नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों वर्ष पुराना माना जा सकता है । बाणासुर का रुद्रपुर (शोणितपुर) से टीकमगढ़(कुंडेश्वर धाम छः कि. मी.) यहां आगमन३१४० ई. पू. वर्तमान से लगभग ५१४० वर्ष पूर्व माना जाए तो बाणासुर काल में लगभग४२८० वर्ष तक बाणासुर द्वारा पूजित शिव मंदिर भी वनाच्छादित व अंधेरे में ही रहा मतलब की सर्वथा मनुष्य की पकड़ से बाहर था । वर्तमान में सिद्ध तीर्थ श्री कुंडेश्वर धाम में वर्ष भर मेला-उत्सव लगा रहता है । यहां पर अन्य दर्शनीय स्थल हैं - बाइस भुजाधारी नृत्य गणेश जी , सहस्त्रकूट चैत्यालय , कुम्हेड़ी की अंजनी माता , बल्देवगढ़ , पपौरा जी , अहार जी , सूर्य मंदिर रानी की बावड़ी । इत्यादि मंदिरों का दर्शन कर भक्तगण सु-फल का लाभ प्राप्त करेंगे । श्री कुंडेश्वर धाम खैराई नामक उपवन कैसे पहुंचे:-
बुन्देलखण्ड की देशी रियासतों में सबसे बड़ी रियासत ओरछा राज्य की अन्तिम राजधानी ग्राम टेहरी को विकसित कर 'टीकमगढ़' नगर बसाया गया था। जो वर्तमान में मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा जिला है और जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से ललितपुर जाने वाले स्टेट हाईवे पर टीकमगढ़ से मात्र छह किलोमीटर की दूरी पर कुण्डेश्वर धाम स्थित है। इस ग्राम को आज कुण्डेश्वर अथवा शिवपुरी नाम से जाना जाता है जबकि इस ग्राम का पूर्व नाम प्रतापगंज था।
पहुँचने का साधन :-
१. जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से बस, तिपहिया वाहन एवं टैक्सी जैसे साधन उपलब्ध है।
२. निकटतम रेलवे स्टेशन-झाँसी - भोपाल रेल लाइन (मध्य रेलवे ) पर स्थित ललितपुर से मात्र ५१ कि० मी० की दूरी है। बस सेवा उपलब्ध है ।
३. झाँसी से मानिकपुर होते हुए इलाहाबाद रेल लाइन मऊरानीपुर एवं निवाड़ी स्टेशनों से भी बस सेवा उपजब्ध है ।
४. सड़क मार्ग से सागर, छतरपुर, जबलपुर, दमोह, झाँसी, ललितपुर से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। ॐ कुंडेश्वर नमः🔱
लेखक :- प्रशांत जे. के. शर्मा (भक्त भोलेनाथ) 🔱🚩
०१-०१-२०२४ राष्ट्रीय हिंदी समाचार पत्र स्पष्ट आवाज़ , लखनऊ - गोरखपुर - ललितपुर संस्करण, लेख:- प्रशांत जे के शर्मा (लेखक)
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