PRACHIN BHARAT Part-1 B205
महर्षि भृगु वरुण पुत्र हैं परंतु ब्रह्मा जी के विचारों के अनुसार स्वयं को ढ़ालने के कारण ब्रह्मा जी ने महर्षि भृगु को अपने पुत्र के समान गौरव प्रदान किया है ।इस कारण भृगु ऋषि ब्रम्हा जी के मानस पुत्र हैं । भृगु ऋषि के वंशजों का साम्राज्य पश्चिमी भारत वर्ष में था जो कि वर्तमान का और्वदेश (वर्तमान का अरब देश) है यहां से ,सिन्धु से ,पश्चिम तक का भारत अर्थात भूमध्यसागर से लेकर पूर्व का भूभाग , कश्यपसागर से अरलसागर तक का विस्तृत भूभाग और सिन्धु नदी के बीच का समस्त भूभाग "वारुण भारतवर्ष" कहलाता था । इसे "बाल्हीक प्रदेश" भी कहा जाता है । वर्तमान में यूनान , कतर , तुर्की , मेसोपोटामिया , ईरान , ईराक , अफगानिस्तान , पाकिस्तान देश "वारुण भारतवर्ष" था , ऐसा पं. मधुसूदन ओझा विरचित"इन्द्रविजय:" वैदिक मंत्रों के आधार पर माना गया है ।और अत्रि ऋषि के पुत्र चंद्रमा की संतति की वंश परंपरा आगे चल कर हैहयजाति चंद्रवंशी कहलाये जिन्होंने राजा बाहु जोकि आगे चलकर इन्हीं के वंश ईश्वाकुवंश में राजा रघु , राजा दशरथ ,राजा भगवान श्री राम जी ने जन्म लिया था । भगवान श्री राम के समय ईश्वाकुवंश सूर्यवंशी कहलाये । हैहयजाति के चंद्रवंशीयों ने राजा बाहु को परास्त कर दिया था । राजा बाहु के पुत्र का नाम था सगर , सगर अर्थात विषयुक्त । राजा बाहु ने यह नाम इस कारण रखा था कि वह अपने खोए हुए राज्य के अपमान के विष को सदा स्मरण रख सके ।
हैहयवंश चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं । महर्षि अत्रि के पुत्र चंद्र , चंद्र के पुत्र बुध और बुध के पुत्र पुरुरवा के वंशज नर्मदा घाटी की समीपवर्ती भूमि पर अपना अधिकार किया था । इन्हीं हैहयवंश के एक उत्तराधिकारी माहिष्मत ने अपने नाम के आधार पर माहिष्मती (माहेश्वरी , माहेश्वर नामक राजधानी की स्थापना की थी । इसी स्थान को आगे चलकर महारानी अहिल्याबाई होलकर ने नर्मदा के तट पर अपनी राजधानी बनाई थी । नर्मदा नदी के तट पर वर्तमान में अहिल्या कालीन घाटों , मंदिरों , साधारण स्वयं का राजप्रासाद(घर) आज भी अपने समय को दर्शाता है । वर्तमान में भी यह नगर अपने माहेश्वरी साड़ियों के लिए जाना जाता है ।
- प्रशांत शर्मा
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