TULSIDAS JI B149


गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म-समय , जन्म- स्थान , के विषय में कई मतभेद हैं । कुछ विद्वान तुलसीदास जी का जन्म वर्ष १४९७ में कुछ का मत वर्ष १५११ उत्तरप्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुरग्राम में हुआ था । वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि तुलसीदास जी का जन्म वर्ष१५३२ में कासगंज(एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था । इनके जन्म के विषय में सर्वाधिक प्रामाणिक मत श्री रामचंद्र शुक्ल द्वारा प्रतिपादित श्रावण शुक्ल सप्तमी १५५४ वर्ष को माना जाता है ।

इनके पिता श्री आत्माराम दुबे सरयूपारीण ब्राम्हण थे , इनकी माता श्रीमती हुलसी देवी धार्मिक महिला थीं ।कहा जाता है कि जन्म के समय तुलसीदास जी के मुंह में सम्पूर्ण दांत थे ।इनके जन्म के दूसरे दिन ही माता का देहांत हो गया था । तत्पश्चात पिता द्वारा पुत्र को अशुभ मानकर त्याग दिये जाने के कारण संत श्री नरहरिदास ने काशी में तुलसीदास जी का पालन-पोषण किया था ।

श्री तुलसीदास जी अपनी पत्नी से अत्यंत प्रेम करते थे । एक बार इनकी पत्नी श्रीमती रत्नावली अपने मायके गई थीं , तुलसीदास जी भी कुछ दिन के पश्चात मूसलाधार वर्षा ऋतु में ससुराल पत्नी से मिलने के लिए चल पड़े , उस रात भारी वर्षा हो रही थी नदी में बाढ़ आ गया था , तुलसीदास जी को नदी पार करना था तो वे रात के अंधेरे में एक बहती हुई लाश को नाव समझकर उस पर बैठ कर नदी पार कर ससुराल पहुंच गए। ससुराल पहुंचने पर भारी बारिश के आवाज के कारण घर का द्वार न खुलने से खपड़ैल (छत) पर रात के अंधेरे में लटके हुए साँप को रस्सी समझ कर , साँप को पकड़ कर आंगन में जा कूदे द्वार खटखटाने पर पत्नी रत्नावली ने द्वार खोला । सब घटना को समझते हुए पत्नी ने तुलसीदास जी से कहा क्या हाड़ मांस के शरीर से इतना प्रेम करते हैं । इतनी रात गए भयंकर आंधी तूफान में ऐसी अवस्था बनाकर पहुंचे हैं सभी लोग क्या कहेंगे पत्नी रत्नावली की फटकार से आहत होकर तुलसीदास जी घर संसार से विरक्त होकर तन- मन से भगवान श्री राम की भक्ति में लीन हो गये ।

श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित "रामचरितमानस" का हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रमुख स्थान है । तुलसीदास जी को भारतीय व वैश्विक साहित्य का महान कवि माना जाता है । विश्व के श्रेष्ठतम १०० ग्रंथों में रामचरितमानस ४६वें स्थान पर है । रामचरितमानस - गोस्वामी जी की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है इसमें श्री गोस्वामी जी ने श्रीराम कथा का गायन विस्तार किया है इसमें रचनाकाल का स्पष्ट उल्लेख मिलता है - रचनाकाल संवत १६३१ का है । इसमें लिखा है , संवत सोलह सौ इकतीसा । करहुं कथा हरिपद धरि सीसा । नौमी भौमवार मधुमासा , अवधपुरी यह चरित प्रकासा , यह अवधी भाषा में है । 

श्री रामचरितमानस की कथा सात कांडों में है , इसकी रचना दोहा और चौपाई में हुई है । श्री रामचरितमानस की रचना में २  वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था ।

श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित १२ रचनायें अत्यंत लोकप्रिय हैं , इनमें ६ मुख्य और ६ छोटी रचनायें हैं । भाषा के आधार पर इन्हें दो भागों में विभाजित करते हैं:-

अवधी रचनायें :- रामचरितमानस , रामलाल नहछू , बरवै रामायण , पार्वती मंगल , जानकी मंगल , और रामाज्ञा प्रश्न ।

ब्रज रचनायें :- कृष्ण गीतावली , गीतावली , साहित्य रत्न , दोहावली , वैराग्य संदीपनी , एवं विनय पत्रिका ।

इन १२ रचनाओं के अतिरिक्त श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित ४ और  रचनायें प्रसिद्ध हैं । १- हनुमान चालीसा , २-हनुमानाष्टक , ३- हनुमान बहुक ( कवितावली ) ४- तुलसी सतसई सम्मलित हैं ।

हिंदी साहित्य में श्री तुलसीदास जी जैसा कोई साहित्य जगत में पैदा नहीं हुआ । इनके साहित्य से मानव जाति को सूर्य के प्रकाश के समान ज्ञान की प्राप्ति हुईं , ईश्वर के दर्शन करने का मार्ग दिखलाया । सम्पूर्ण विश्व को अपने साहित्य से प्रकाशमान किया है। "रामचरितमानस" में श्री राम जी को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में दिखाया है । श्री राम , श्री लक्ष्मण जी , माता सीता , श्री भरत जी , श्री हनुमान जी आदि के स्वरूप में ऐसे आदर्श चरित्रों का सुंदर व स्पष्ट रूप से सजीव साकार चित्रण किया है , जो सम्पूर्ण विश्व , भारत के जनमानस का सदैव मार्गदर्शन करते रहेंगे ।

वर्ष १६२३ श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन श्री तुलसीदास जी ने अपने कार्यों का समापन कर भगवान श्रीराम के पास चले गए ।श्री तुलसीदास जी के निधन की तिथि भी विवादास्पद है ,अधिकतर विद्वानों ने इनके निधन को संवत१६८० ही स्वीकार किया है मूल गोसाईं चरित में दोहा मिलता है जो इनकी निधन तिथि को प्रमाणित कर देता है :- संवत सोलह सौ अस्सी , असी गंग के तीर , श्रावण श्यामा तीज शनि तुलसी तज्यों शरीर ।

🌷जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण🌷

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