श्री बाबा कीनाराम B68
🌹अघोराचार्य बाबा कीना राम जी महाराज🌹
अघोराचार्य बाबा कीनाराम (जन्म:१६९३-१७६९, काशी) अघोर सम्प्रदाय के अनन्य आचार्य थे। इनका जन्म सन् १६९३ भाद्रपद शुक्ल को चंदौली के रामगढ़ गाँव में अकबर सिंह के घर हुआ। बारह वर्ष की अवस्था में विवाह अवश्य हुआ पर वैराग्य हो जाने के कारण गौना नहीं कराया। ये देश के विभिन्न भागों का भ्रमण करते हुए गिरनार पर्वत पर बस गये। कीनाराम सिद्ध महात्मा थे और इनके जीवन की अनेक चमत्कारी घटनाएं प्रसिद्ध हैं। सन् १७६९ को काशी में ही इनका निधन हुआ।
जीवन परिचय संपादित है :-
बाबा किनाराम उत्तर भारतीय संत परंपरा के एक प्रसिद्ध संत थे, जिनकी यश-सुरभि परवर्ती काल में संपूर्ण भारत में फैल गई। वाराणसी के पास चंदौली जिले के ग्राम रामगढ़ में एक कुलीन रघुवंशी क्षत्रिय परिवार में सन् 1601 ई. में इनका जन्म हुआ था। बचपन से ही इनमें आध्यात्मिक संस्कार अत्यंत प्रबल थे। तत्कालीन रीति के अनुसार बारह वर्षों के अल्प आयु में, इनकी घोर अनिच्छा रहते हुए भी, विवाह कर दिया गया किंतु दो तीन वर्षों बाद द्विरागमन की पूर्व संध्या को इन्होंने हठपूर्वक माँ से माँगकर दूध-भात खाया। ध्यातव्य है कि सनातन धर्म में मृतक संस्कार के बाद दूध-भात एक कर्मकांड है। बाबा के दूध-भात खाने के अगले दिन सबेरे ही वधू के देहांत का समाचार आ गया। सबको आश्चर्य हुआ कि इन्हें पत्नी की मृत्यु का पूर्वाभास कैसे हो गया। अघोर पंथ के ज्वलंत संत के बारे में ऐक कथानक प्रसिद्ध है,कि ऐक बार काशी नरेश अपने हाथी पर सवार होकर शिवाला स्थित आश्रम से जा रहे थे,उन्होनें बाबा किनाराम के तरफ तल्खी नजरों से देखा,तत्काल बाबा किनाराम ने आदेश दिया दिवाल चल आगे,इतना कहना कि दिवाल चल दिया और काशी नरेश की हाथी के आगे - आगे चलने लगा। तब काशी नरेश को अपने अभिमान का बोध हो गया और तत्काल बाबा किनाराम जी के चरणों में गिर गये।
🌹जय बाबा कीनाराम जी महाराज की जय 🌹
कीनाराम सिद्ध संत, अघोरपंथी और विरक्त महात्मा थे। वह बचपन से ही रामनाम में खोए रहते थे। किशोरावस्था में वैराग्य ले लिया और रामानुजी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध महात्मा बाबा शिवराम से दीक्षा ले ली। इसके बाद कीनाराम भ्रमण के लिए निकल पड़े। उनकी सिद्धियों ने उन्हें बहुत लोकप्रिय बना दिया। रामनाम उनका प्राण मंत्र था- अमर बीज विज्ञान को कह्यौ समुझिकर लेहु।ड्ढr ऊं सो मंत्र विचारि कै रामनाम चित देहु।।ड्ढr भ्रमण करके लौटे तो वाराणसी में केदार घाट श्मशान पर डेरा डाला। वहीं प्रसिद्ध अघोरी संत कालूराम से उनकी भेंट हुई। कालूराम ने कीनाराम को साधना-क्षेत्र की बड़ी उच्च स्थिति में पाया। फिर भी उन्होंने कीनाराम की कई तरह से परीक्षाएं लीं। उन्होंने कीनाराम को अपनी सिद्धियों का सुपात्र पाकर, सभी सिद्धियां उन्हें दे दीं। कीनाराम के पास पहले से ही काफी सिद्धियां थीं। उन्होंने पूर्व सिद्धियों का अहं त्याग कर कालूराम की दी सिद्धियां ग्रहण कीं। उन्होंने कहा-ड्ढr कीना कीना सब कहैं कालू कहै न कोय।ड्ढr कालू कीना एक भए राम कर सो होय।।ड्ढr कीनाराम कहते थे कि अत्यंत अगाध और अगम निर्वाण पद की प्राप्ति गुरु की कृपा के बिना संभव नहीं है। कीनाराम का मानना था कि ‘ऊं’ मंत्र की सिद्धि रामनाम में ही प्रतिष्ठित है। उन्होंने यह भी कहा कि सत्य पुरुष ‘सत्य नाम’ में स्थित है। वह कहते थे कि सर्वत्र व्याप्त चिदानंद सुखधाम आत्माराम की ही वंदना करनी चाहिए।ड्ढr व्यापक व्याप्य प्रकाश महांस चिदानन्द सुखधाम।ड्ढr बहिरंतर जहं-तंह प्रगट बन्दौ आत्माराम।। बाबा कीनाराम की वाणी पर कबीर का बहुत प्रभाव था। वह भी खरी बात कहते थे। उनका कहना था- ‘मैं देवालय और देवता, पूजा और पुजारी हूं, मैंने ही वृन्दावन में कृष्ण रूप में गोपी और ग्वालों के साथ नृत्य किया था। मैंने ही हनुमान के रूप में राम का हित कार्य किया।’ इससे बाबा कीनाराम के चिंतन में विद्यमान एकात्मबोध का ज्ञान होता है। जय श्री बाबा कीनाराम 🙏🌹🌹🌹🌹🌹🙏
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