SACCHA MITRA B62
सच्चा मित्र- ( एक कड़वी सच्चाई ) :-
वर्तमान में मित्र की परिभाषा क्या है ? क्या आप सभी ने कभी सोचा है सच्चा मित्र कौन है ? आप कहेंगे कि मित्र - साथ में पढ़ने वाला है , साथ में खेलने वाला है , शोशल मीडिया पर रहने वाला , मेरा मित्र है । कार्यालय में साथ में काम करने वाला मेरा मित्र है , कहीं किसी नए नगर में गये वहाँ पर किसी ने सहायता कर दी वह मेरा मित्र बन गया । किसी ने कुछ भेंट कर दिया वह मित्र बन गया ।
ये जो मित्र शब्द है इसे हम बड़े आसानी से परिभाषित कर देते हैं । ये मित्र नही होते हैं ये समय समय पर मतलब, परिस्थिति ,वर्तमान समय की मांग कह लें, कभी कभार आपके लिए किसी परिस्थिति पर खड़े हो जाएं बस आपके काम आ जाएं तो हम समझ लेते हैं की क्या मित्र है । ऐसा व्यक्ति मित्र नही बस एक जान पहचान वाला व्यक्ति कहलाता है और कुछ नहीं ।यह एक कड़वी सच्चाई है परन्तु इनमें से कई लोग मेरी बातों से सहमत न हो किन्तु कहानी के अंत तक आते आते मन के किसी कोने में मेरी बातों से सहमत तो होंगे लेकिन इसे प्रकट नहीं करेंगे ।
सबसे पहले साथ में पढ़ने वाला मित्र। वह मन ही मन आप से प्रतिस्पर्धा रखता है आप से ज्यादा नम्बर पाने के युक्ति में लगा रहता है ।वह आप से ज्यादा पढ़ता है ,आप से ज्यादा तैयारी करता है और जब आप उससे पूछते हैं कि क्या मित्र कितनी तैयारी किये हो । क्या आपको पता है ? - ज्यादा तर मामलों में एक ही उत्तर आता है पढ़े तो हैं मित्र देखते है क्या होता है ? । वैसे तुमने भी तो तैयारी की होगी रात भर , तुरंत दूसरा मित्र बोलता है अरे कहाँ रात भर सो गया था । आँख लग गई थी । है सच्चाई एकदम उल्टा जोकि उसने रात भर पढ़ाई की थी । इसका मतलब कहीं न कहीं यह स्वार्थ स्वरूप मित्र का रिश्ता है । एक मित्र दूसरे मित्र से ज्यादा कामयाब होकर उसे अपने से नीचा ही देखना चाहता है , कामयाब मित्र हमेशा आपको दया (मर्सी) पर आपसे बात करता है जब कभी आप उससे ज्यादा कामयाब होते हैं तो देखिये धीरे धीरे पहले वाला कामयाब मित्र आपसे कही न कही कन्नी काटने लगता है । यह सत्य है की कई लोग कहते है कि अरे नही ये मेरा मित्र मेरे प्रत्येक आवश्यकताओं पर खड़ा रहता है । वह मेरी बहुत सहायता करता है । मैं मानता हूँ एकदम सही कह रहे हैं। वह मित्र आपके हर जरूरत पर मौजूद रहता है ।वह आपकी सहायता करता है । 90% मामलों में प्रायः ऐसा नहीं होता है। वर्तमान समय में कोई भी व्यक्ति आपसे बिना स्वार्थ के सम्बंध नही रखेंगा । उसे रुपयों की आवश्यकता होगी , किसी वस्तु की आवश्यकता होगी , तन ,मन ,धन पाने की लालसा होगी , तभी व्यक्ति आप से सम्वन्ध रखेंगा । अन्यथा नमस्ते । हाँ एक बात और जिस दिन से आपका समय अच्छा न हो । देखिये वह मित्र धीरे-धीरे आप से दूरी बना लेगा । यह एक कटु सत्य है- जब तक आप प्रभावशाली होंगें तब तक ही वह आप के साथ खड़ा रहेगा ।
क्रिकेट टीमों को देख लिजिये सभी देशों की टीम को लेकर राजनीति छुपी नहीं है । खिलाड़ियों का आपसी टीम में गुट बाजी किसी से छुपी नहीं है । सब स्वार्थ के मित्र है। न की स्वस्थ प्रतियोगिता के मित्र ? ।
"स्पर्धा सदैव व्यक्ति को अन्धा बना देती है "। सोशल मीडिया द्वारा वर्तमान में रोज नए नए मित्र बन रहे है । यही मित्र सोशल मीडिया के द्वारा पहले मित्र बनते है फिर उसी के साथ अपराध करते है। मित्र तभी तक मित्र रहता है , जब तक की आपके ग्रह नक्षत्र अच्छे रहते हैं । जहाँ आप उसी मित्र से रुपये , उसका वाहन , अन्य वस्तुओं को मांगने लगते हैं एवं यह सिलसिला जारी रखते हैं देखिए वही मित्र या तो आपको मना कर देगा या कोई बहाना बना देगा । या शीघ्र से शीघ्र आपसे किनारा कर लेगा । आप का फ़ोन उठाना बंद कर देगा । आप से मिलना जुलना बन्द कर देगा । कुल मिलाकर गायब ।
सच्चा मित्र का , मेरे अनुसार दो ही उदाहरण है - बाकी सब स्वार्थ के मित्र हैं , यह एक कटु सत्य है ।
पहला - भगवान श्री कृष्ण एवं सुदामा जी
दूसरा - महारथी महादानी दानवीर कर्ण एवं युवराज दुर्योधन ।
भगवान श्री कृष्ण एवं सुदामा जी की मित्रता को कौन नही जानता । एक राजा तो दूसरा दिन हीन दुखी व्यक्ति जिसका समय , ग्रह , नक्षत्र , सभी समय के विपरीत चल रहा हो। इसके बावजूद भगवान होकर श्री कृष्ण जी ने सुदामा जी से मित्रता नहीं छोड़ी एवं जब भी सुदामा जी श्री कृष्ण जी से भेंट करते , भगवान (राजा) होते हुए भी श्रीकृष्ण जी सुदामा जी के पैरों को धुलकर पोछ कर उन्हें सम्मान देते थे । भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी के थैले में जबरन हाथ डालकर उसमें से लइया - मुरमुरा निकालकर बड़े चाव से खाते थे एवं एक समय की घटना है कि सुदामा जी का भव्य घर भगवान श्री कृष्ण जी ने बनवा दिया। यह बात सुदामा जी को नहीं पता थी , जब सुदामा जी अपने घर वापस गये तो उन्हें लगा यहां तो मेरी झोपड़ी थी । लगता है , मैं किसी दूसरे स्थान पे आ गया हूँ। यह सोचते-सोचते वह वापस लौटने लगे । तभी सुदामा जी की पत्नी ने आवाज लगाई अरे कहाँ जा रहे हैं। यह अपना ही घर है । तब सुदामा जी को पता चला बिना बताए श्री कृष्ण जी मेरे सखा ने मेरा घर बनवा दिया। धन धान्य से परिपूर्ण कर दिया। वर्तमान में कोई ऐसा उदाहरण नही है । जिस मनुष्य का ग्रह , नक्षत्र , समय विपरीत हो , दिनहीन गरीब हो उससे क्या कोई मित्रता निभाएगा ? उसके साथ एक समय के बाद समाज ,तो क्या परिवार तक उसका साथ नही देगा ।
दूसरा उदाहरण महारथी दानवीर कर्ण एवं युवराज दुर्योधन का हैं। कर्ण का भाग्य जन्म से ही विपरीत चल रहा था। माता कुंती ने जन्म दिया तो लोक लाज के कारण कर्ण का त्याग कर दिया। फिर वह माँ गंगा कि गोद में बहते हुए जा पहुंचे राजसारथी के घर फिर वह कहलाये सूतपुत्र कर्ण । वासन्तिक पौर्णिमा के दिन हस्तिनापुर में प्रतिस्पर्धा थी। कर्ण ने भी स्पर्धा में सम्मिलित होने के लिए प्रतिस्पर्धा स्थल पर जा पहुंचे परन्तु सूतपुत्र कहकर उन्हें स्पर्धा से बाहर किया जाने लगा लेकिन तभी युवराज दुर्योधन ने कर्ण को अंगराज (अंगदेश का राजा) बनाकर प्रतिस्पर्धा में भाग दिलवाया। समय के विपरीत परिस्थितियों में दुर्योधन ने कर्ण का साथ दिया । युवराज दुर्योधन को यह ज्ञात था की कर्ण का भाग्य कभी भी धोखा दे सकता है । कर्ण ने यह बात स्वयं दुर्योधन को कई बार बतलायी थी फिर भी दोनों की मित्रता कम न हुई । कर्ण के पास एक मात्र ब्रम्हास्त्र था जिसे अर्जुन के लिए बचा रखा था परन्तु दुर्योधन के कहने पर घटोत्कच पर चलाना पड़ा । कर्ण का कवच कुंडल भी इन्द्र भगवान ने दान में मांग लिया था । ये तमाम बातें दुर्योधन को पता थीं , परन्तु दोनों की मित्रता इतनी घनिष्ठ थी की समय के विपरीत जा कर दोनों एक थे। पितामह भीष्म के विरोध के बावजूद कर्ण को कौरव सेनापति घोषित किया । कर्ण ने भी समय के विपरीत जा कर , धर्म के विरुद्ध जाकर दुर्योधन का साथ दिया । दुर्योधन के लिए धर्म के विरुद्ध रणक्षेत्र में कर्ण खड़े रहे।यह होती है मित्रता । वर्तमान समय में जब आपका ग्रह ,नक्षत्र , खराब हो , काल का समय विपरीत चल रहा हो कोई साथ देगा ? वर्तमान में स्वार्थी मित्र अत्यधिक मात्रा में मिलेंगे । समाज परिवार में आपने कई व्यक्तियों को स्वार्थी बनते देखा होगा । @Copyright - प्रशान्त जे के शर्मा
🌹।। जय श्री कृष्ण ।।🌹
लेखक :- प्रशांत शर्मा
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