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Showing posts from July, 2022

SANKAT MOCHAN MANDIR B150

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      🌷 श्री गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा स्थापित मंदिर🌷        🌷श्री संकटमोचन मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश 🌷 श्री गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म श्री आत्माराम दुबे जी , सरयूपारीण ब्राह्मण के घर हुआ था । "रामचरितमानस" के रचयिता व श्री हनुमान चालीसा , हनुमानाष्टक १२ रचनाओं सहित इनके हिंदी साहित्य में भारतीय संस्कृति , कला का अप्रतीम रूप दिखाई पड़ता है । इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। श्री गोस्वामी तुलसीदास जी को कोटि कोटि प्रणाम  । 🙏🙏 श्री तुलसीदास जी ने अपने जीवनकाल का अधिकतम समय वाराणसी में बिताया था । गंगा नदी के किनारे स्थित तुलसी घाट का नाम इन्हीं के नाम पर रक्खा गया है । श्री तुलसीदास जी ने वाराणसी में श्री हनुमान जी के   "संकटमोचन मंदिर"   की स्थापना भी की थी । जनमानस का मत है कि श्री तुलसीदास जी ने इसी स्थान पर श्री हनुमान जी के साक्षात् दर्शन किए थे । 🌷।।जय श्री राम।। जय श्री हनुमान।।जय श्री कृष्ण।।🌷

TULSIDAS JI B149

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गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म-समय , जन्म- स्थान , के विषय में कई मतभेद हैं । कुछ विद्वान तुलसीदास जी का जन्म वर्ष १४९७ में कुछ का मत वर्ष १५११ उत्तरप्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुरग्राम में हुआ था । वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि तुलसीदास जी का जन्म वर्ष१५३२ में कासगंज(एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था । इनके जन्म के विषय में सर्वाधिक प्रामाणिक मत श्री रामचंद्र शुक्ल द्वारा प्रतिपादित श्रावण शुक्ल सप्तमी १५५४ वर्ष को माना जाता है । इनके पिता श्री आत्माराम दुबे सरयूपारीण ब्राम्हण थे , इनकी माता श्रीमती हुलसी देवी धार्मिक महिला थीं ।कहा जाता है कि जन्म के समय तुलसीदास जी के मुंह में सम्पूर्ण दांत थे ।इनके जन्म के दूसरे दिन ही माता का देहांत हो गया था । तत्पश्चात पिता द्वारा पुत्र को अशुभ मानकर त्याग दिये जाने के कारण संत श्री नरहरिदास ने काशी में तुलसीदास जी का पालन-पोषण किया था । श्री तुलसीदास जी अपनी पत्नी से अत्यंत प्रेम करते थे । एक बार इनकी पत्नी श्रीमती रत्नावली अपने मायके गई थीं , तुलसीदास जी भी कुछ दिन के पश्चात मूसलाधार वर्षा ऋतु में ससुराल पत्नी से मिलने के लिए चल पड़े , उस रात भारी...

SUNDERKAND B148

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सुंदरकांड में श्री तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम के परमभक्त श्री हनुमान जी की लीलाओं का अतिसुन्दर वर्णन किया है। इस कारण रामायण (रामचरित मानस) में तुलसीदास जी ने इसे "सुंदरकांड" का नाम दिया है । "सुंदरकांड" के पाठ से श्री महावीर हनुमानजी अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं एवं मनोवांछित फल , आत्मा की शांति , घर में सुख-समृद्धि , सफलता की प्राप्ति कराते है । तुलसीदास को संस्कृत के आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का रूप अवतार माना गया है। "रामचरितमानस" का कथानक महर्षि वाल्मीकि जी की रचना "रामायण" से ही लिया गया है ऐसा बताया जाता है । "रामचरितमानस" का ७ कांडों (अध्यायों ) में वर्णन किया गया है । "सुंदरकांड" रामचरितमानस का एक सबसे महत्वपूर्ण कांड है । सुंदरकांड में श्री हनुमान जी ने अपने प्रकांड साहस , महावीर बल , प्रकांड बुद्धिमता से सीता माता को खोज निकाला था । इस कारण यह कांड हनुमानजी की सफलता एवं सुंदरकांड के पाठ करने से भक्तों को सत्कार्य करते हुए जीवन में सफलता प्राप्त होती है । 🚩सुंदरकांड विजयी भवः🚩 का प्रतीक है। "रामचरितमानस" के ७...