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Showing posts from January, 2022

स्वास्तिक का महत्व B143

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                          🕉️हिन्दू संस्कार🕉️                       🕉️स्वस्तिक का महत्व 🕉️ *स्वास्तिक का चिन्ह किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य सफल होता है। स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक भी माना जाता है। स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना जाता है। यहां ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ से तात्पर्य है होना। अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’, ‘कल्याण हो’।* *शुभ कार्य यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य के दौरान स्वास्तिक को पूजना अति आवश्यक माना गया है। लेकिन असल में स्वस्तिक का यह चिन्ह क्या दर्शाता है, इसके पीछे ढेरों तथ्य हैं। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है।* *चार रेखाएं मान्यता है कि यह रेखाएं चार दिशाओं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह...

शुभकामनाएं संक्रान्ति B142

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     2022  🌺जय श्री कृष्ण🌺

कण कण में ईश्वर B 141

 🚩  औघड़ वाणी  🚩  🌷आपके सामने से ही आपका देवता अनेकों बार रोज गुजर जाता है । भगवान सदाशिव, वह अक्षोभ्य अघोर भैरव बार-बार गुजरते हैं, वह शिव और पार्वती बार-बार गुजरते हैं आपके सामने से । आपको हर सुबह और हर  शाम आपके बाल-बच्चे, परिवार और परिजन या आपके घर में जो जीव-जन्तु हैं उनसे तथ मिलने-जुलने वालों से आपको हरदम संकेत मिलता रहता है । मगर उनका संकेत सुनने-समझने के लिये आपके पास फुर्सत नहीं होती है ।  🌷 🌿 अपने को खाली न रखकर आपने अपने अन्दर इतना कूड़ा-कर्कट इकट्ठा कर रखा है, आपके मस्तिष्क में इतना धूल-गुब्बार भरा हुआ है कि आप समझ नहीं पाते हैं ।  🌿 🌷जय श्री कृष्ण🌷 .                             ......अघोर वचन शास्त्र ( पृ क्र 281 )

संस्कृति B140

कवि  का नाम नहीं  पता पर जिसने भी लिखा , लिखा आज का कड़वा सच है :- एक दिन...! मेरे परदादा, संस्कृत और हिंदी जानते थे।  माथे पे तिलक, और सर पर पगड़ी बाँधते थे।।  फिर मेरे दादा जी का, दौर आया।  उन्होंने पगड़ी उतारी, पर जनेऊ बचाया।। मेरे दादा जी, अंग्रेजी बिलकुल नहीं जानते थे। जानना तो दूर, अंग्रेजी के नाम से कन्नी काटते थे।।  मेरे पिताजी को अंग्रेजी, थोड़ी थोड़ी समझ में आई।  कुछ खुद समझे, कुछ अर्थ चक्र ने समझाई।। पर वो अंग्रेजी का प्रयोग, मज़बूरी में करते थे। यानि सभी सरकारी फार्म, हिन्दी में ही भरते थे।। जनेऊ उनका भी, अक्षुण्य था। पर संस्कृत का प्रयोग, नगण्य था।।  वही दौर था, जब संस्कृत के साथ, संस्कृति खो रही थी। इसीलिए संस्कृत, मृत भाषा घोषित हो रही थी।। धीरे धीरे समय बदला, और नया दौर आया।  मैंने अंग्रेजी को पढ़ा ही नहीं, अच्छे से चबाया।। मैंने खुद को, हिन्दी से अंग्रेजी में लिफ्ट किया।  साथ ही जनेऊ को, पूजा घर में सिफ्ट किया।। मै बेवजह ही दो चार वाक्य, अंग्रेजी में झाड जाता हूँ। शायद इसीलिए समाज में, पढ़ा लिखा कहलाता हूँ।।  और तो और, मैं...